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चलिए, जानते हैं ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास, बताते हैं आपको कैसे शुरू हुआ विवाद  

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नई दिल्ली। अगर आप इतिहास के विधार्थी रहे हों, तो आपको ये पता ही होगा कि भारत का इतिहास कितना विध्वंसकारी है और शायद ज्ञानवापी मस्जिद भी उसी विध्वंसतीयता की परिणीति है। जी… ज्ञानवापी मस्जिद जिसे लेकर अभी बहस का सिलसिला जारी है। वहीं ज्ञानवापी मस्जिद जिसे लेकर अभी सियासी गलियारों में सियासी नेताओं के बीच जुबानी जंग छिड़ी हुई है। जिसे लेकर सभी एक-दूसरे पर वार-प्रतिवार करने में जुटे हुए हैं, तो अगर आप हर रोज सुबह गर्मागर्म चाय की चुस्कियों के साथ अखबारों की सुर्खियों को पढ़ने का शगल रखते हैं, तो आप ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ी हर छोटी-बड़ी गतिविधियों से अवगत होंगे ही। अगर नहीं तो पहले इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े अभी तक की ताजा अपडेट के बारे में और फिर इससे जुड़ी उस ऐतिहासिक गतिविधि के बारे में जिसने इस विवाद को जन्म दिया है। तो पहले यह जान लीजिए कि हिंदू पक्षों का कहना है कि जिस जगह पर वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद है, वहां कालांतर में मंदिर था, जिसे अपने समय के क्रूर शासकों की फेहरिस्त में शुमार औरंगजेब के फरमान के बाद ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कर दिया गया था। जिसे लेकर अब हिंदू पक्षों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के उपरांत उक्त मस्जिद का सर्वे करने का निर्देश दिया। तीन दिनी सर्वे के उपरांत मस्जिद में कई ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जिसके देखते हुए उक्त स्थल पर मंदिर होने की पुष्टि हो रही है। लेकिन मुस्लिम पक्ष  द्वारा इन दावों को सिरे से खारिज किया जा रहा।

वहीं, आज तीसरे दिन सर्वे के आखिरी दिन मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे किए गए हैं। लेकिन एक बार फिर से मुस्लिम पक्ष द्वारा इसे नकार दिया गया है। अब कमिश्नर अब तक के हुए सर्वे के संदर्भ में कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करेंगे। इसके बाद कोर्ट ही तय करेगी कि आखिर ज्ञानवापी मस्जिद का सच क्या है। लेकिन फिलहाल इस पूरे मसले को लेकर सियासी गलियारों में सियासी नेताओं के बीच तनातनी देखने को मिल रही है। सभी एक-दूसरे पर वार प्रतिवार कर रहे हैं। सभी सूरमा अपने-अपने दावों को विश्वनियता को मजबूत करने की जद्दोजहद में मसरूफ हैं। अब ऐसी स्थिति में यह पूरा माजरा आगे चलकर क्या कुछ रुख अख्तियार करता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। लेकिन आइए जरा पहले ज्ञानवापी मसले को एक बार इतिहास के चश्मों से देखते हैं और आपको बताते हैं कि आखिर इस विवाद का जन्म कब  और कैसे हुआ था।

तो कैसे हुआ इस विवाद का जन्म

पौराणिक दृष्टिकोण से देखें तो हिंदू पुराणों के अनुसार काशी में विशालकाय मंदिर आदिकाल के रूप में अविमुक्तश्वर शिवलिंग स्थापित था। इसके बाद ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचंद्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोंद्धार करवाया था, उसका सम्राट विक्रमादित्य ने निर्माण करवाया था। यहां तक तो सब कुछ दुरूस्त रहा, लेकिन मुगल राज्य के सर्वाधिक क्रूर शासक मोहम्मद गोरी ने मंदिर को लूटने के ध्येय से इसे ध्वस्त करवा दिया था। इसके बाद 1447 में स्थानीय लोगों ने अपनी आस्था को सहेजने के लिए इसका निर्माण फिर से करवाया था। लेकिन बाद में इसे जौनपुर के शार्की सुल्तान महमूद शाह ने तोड़ दिया था और यहां मस्जिद का निर्माण करवाया गया। हालांकि, ये और बात है कि इसे लेकर आज भी इतिहासकारों के मध्य मतभेद हैं। खैर, बाद में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण के निर्देश पर मंदिर का निर्माण करवाया गया था।

लेकिन 1632 में शाहाजहां के आदेश पर इसे ध्वस्त कराने का निर्देश दे दिया गया। मगर हिंदुओं के प्रबल विरोध के नतीजतन मुगलिया शासक इसे तोड़ने में नाकाम रहे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी खुन्नस निकालने के लिए काशी के 63 अन्य मंदिरों को जमींदोज कर दिया। इसके बाद 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के निर्देश पर मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इसके बाद इसी वर्ष मंदिर तोड़ने के उपरांत मस्जिद निर्माण का आदेश दिया गया था। लेकिन मंदिर के ध्वस्त किए जाने के 125 सालों तक किसी भी मंदिर का निर्माण नहीं किया गया था। हालांकि, इन तमाम घटनाओं के मद्देनजर आज तक ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद नहीं गरमाया था। लेकिन आज पहली बार यह विवाद इतना तूल पकड़ रहा है। अब ऐसे में देखना होगा कि यह पूरा माजरा आगे चलकर क्या कुछ रुख अख्तियार करता है।

आपको बता दें कि साल 1936 में दायर की गई याचिका में इस मस्जिद को ज्ञानवापी मस्जिद के तौर पर स्वीकार करने की मांग की गई थी। इसके बाद 1984 में विश्व हिंदू परिषद समेत अन्य हिंदू संगठनों ने यहां मंदिर निर्माण का निर्देश दिया है। हिंदू पक्ष की ओर से कोर्ट में याचिका दाखिल कर उक्त जगह पर मंदिर निर्माण की मांग की गई थी। 1991 में संसद में इसे लेकर उपासना स्थल कानून बनवाया गया था। इस कानून में प्रावधान किया गया था कि 1947 के बाद से अस्तित्व में आए धर्म स्थलों को उनके पुराने अस्तित्व में नहीं बदला जाएगा। जिसके बाद वर्ष 1993 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने यथास्थिति रखने का निर्देश दिया था। 1998 में कोर्ट ने मस्जिद के सर्वे की अनुमति दी थी। 2019 में इस पूरे मामले को लेकर वाराणसी कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। इसके बाद साल 2021 में कुछेक महिलाओं इस मसले को फिर से उठाते हुए कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जिसे लेकर अब सुनवाई का सिलसिला जारी हो चुका है। फिलहाल तीन दिनों के सर्वे के उपरांत मस्जिद से कई ऐसे साक्ष्य मिलने के दावे किए जा रहे हैं।  वहीं, अब तक सर्वे के दौरान संग्रहित हुए साक्ष्यों के आधार पर कोर्ट आगामी दिनों में क्या कुछ  निर्णय देती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। तब तक के लिए आप देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों से रूबरू होने के लिए पढ़ते रहिए। न्यूज रूम पोस्ट .कॉम

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