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Maratha Reservation: जानिए कौन हैं मराठा आरक्षण की मांग कर रहे मनोज जरांगे, जिनकी दी समयसीमा खत्म होने पर कल से आंदोलन तेज होने के आसार

manoj jarange

मुंबई। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की आग कल से भड़क सकती है। मराठा समुदाय को आरक्षण देने की मांग के लिए आज तक की समयसीमा आंदोलनकारियों ने एकनाथ शिंदे सरकार को दी है। अगर रात तक शिंदे सरकार ने फैसला नहीं किया, तो ये आंदोलन कल से तेज हो सकता है। मराठा आंदोलन की मांग कर रहे लोगों का नेतृत्व मनोज जरांगे कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि अगर मांग न मानी गई, तो 25 अक्टूबर से वो भूख हड़ताल एक बार फिर शुरू करेंगे और इस बार या तो आरक्षण मिलेगा या उनकी शव यात्रा निकलेगी। पहले आपको बताते हैं कि मनोज जरांगे कौन हैं। मनोज जरांगे की उम्र 40 साल है। वो 2014 से मराठा आरक्षण की मांग जोरशोर से उठा रहे हैं। जालना जिले में उनकी मांग काफी जोर दिखाती रही। महाराष्ट्र में कई जगह मराठा आरक्षण की मांग के कारण हिंसा भी भड़की थी। मनोज जरांगे मूलरूप से पाटिल हैं। वो बीड के रहने वाले हैं। एक होटल में काम करते थे। कांग्रेस में रहने के बाद अलग हुए और शिवबा संगठन बनाया।

मनोज जरांगे ने जब शव यात्रा की बात कहकर मराठा आरक्षण के लिए समयसीमा दी, तो उसके अगले दिन 19 अक्टूबर को एक कार्यकर्ता सुनील कावले का शव मुंबई के बांद्रा में बिजली के खंबे से लटकता मिला था। सुनील ने सुसाइड नोट में मराठा आरक्षण देने की मांग की थी। मराठा आरक्षण मांग रहे जरांगे ने कुनबी जाति प्रमाणपत्र देकर ओबीसी कोटे से आरक्षण की मांग की। सीएम एकनाथ शिंदे ने उनसे मिलकर आरक्षण देने की मांग पूरी करने का आश्वासन भी दिया था। जिसके बाद मनोज जरांगे ने 14 सितंबर को अपना अनशन खत्म किया था। मनोज जरांगे का शिवबा संगठन सरकारी नौकरियं और शिक्षा में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण मांग रहा है। मराठा आरक्षण का आंदोलन 1 सितंबर से चल रहा था। आरक्षण समर्थकों का कहना है कि 1948 तक निजाम के शासन के दौरान उनको कुनबी माना जाता था। फिर वो कुनबी जाति का सर्टिफिकेट चाहते हैं और ओबीसी का दर्जा देने की भी मांग कर रहे हैं।

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय काफी ताकतवर है। अब तक मराठा समुदाय के 12 सीएम यहां हो चुके हैं। एकनाथ शिंदे भी मराठा समुदाय के हैं। महाराष्ट्र में करीब 33 फीसदी मराठा समुदाय की आबादी है। मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए साल 2014 में तब के सीएम पृथ्वीराज चव्हाण ने नारायण राणे आयोग की रिपोर्ट के बाद मराठा को 16 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था। इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ। फिर बंबई हाईकोर्ट ने इस आरक्षण को सरकारी नौकरी में 13 और शिक्षा में 12 फीसदी किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया। जिसके बाद अब फिर बड़े पैमाने पर आंदोलन हो रहा है।

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