जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन कानून 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार से संबंधित एक जिला जज की ओर से पारित आदेश को खारिज करते हुए जिला जज की फाइलों का निरीक्षण करने और जिला जज के कामकाज के बारे में एक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। जस्टिस अग्रवाल ने निर्देश देते हुए कहा कि अगर विद्वान चतुर्थ जिला जज ने कानून की धारा 64 के तहत प्रावधानों को पढ़ा होता, तो ऐसा आदेश पारित नहीं देते। जस्टिस विवेक अग्रवाल ने मामले को संबंधित जिला जज को 30 दिन की अतिरिक्त अवधि के भीतर आवेदन पर उसके गुण-दोष के आधार पर फैसला लेने के लिए भेजा है।
ये याचिका जिला जज के उस आदेश से के कारण दायर की गई थी जिसमें कानून की धारा 64 के तहत एक आवेदन पर विचार करने से मना कर दिया गया था। जिला जज ने कहा था कि कलेक्टर ने संदर्भ नहीं दिया है और ऐसा न होने के कारण याचिका सुनवाई के लायक नहीं है। जबकि, कानून में प्रावधान है कि अधिग्रहण का मुआवजा न लेने वाला व्यक्ति मांग कर सकता है कि कलेक्टर की तरफ से मामले को प्राधिकरण के फैसले के लिए भेजा जाए। कानून की धारा 64 के अनुसार मुआवजे के मामले में कलेक्टर को 30 दिन के भीतर उपयुक्त प्राधिकरण को संदर्भ देना होगा। ऐसा न करने पर आवेदक प्राधिकरण को आवेदन कर सकता है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने उचित प्राधिकारी से तभी संपर्क किया था जब कलेक्टर ने 30 दिन के भीतर उसके आवेदन पर कार्रवाई नहीं की। हाईकोर्ट ने कहा कि इस आवेदन को सिर्फ इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता था कि कलेक्टर ने कोई संदर्भ नहीं दिया था। जस्टिस विवेक अग्रवाल ने आगे कहा कि अधिनियम की धारा 37(2) के तहत दी गई सूचना के 6 हफ्ते में कलेक्टर के समक्ष आवेदन दिया गया था। इसलिए जिला जज धारा 64 में के तहत दिए गए प्रावधान को पढ़ने में नाकाम रहे और आदेश पारित कर दिया। इसके साथ ही मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जिला जज के विवादित आदेश को खारिज कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ता के आवेदन पर फैसला लेने के लिए जिला जज को निर्देश दिया।