नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी यूं तो मोदी विरोध का झंडा बुलंद किए हुई हैं और विपक्ष की एकता की बात करती हैं, लेकिन विपक्ष के बड़े दल कांग्रेस को चोट पहुंचाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। कांग्रेस के नेताओं को टीएमसी में शामिल कराने से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से दिल्ली आने के बावजूद मुलाकात न करना इसमें शामिल है। तो सवाल ये है कि कांग्रेस को चोट पहुंचा रहीं दीदी यानी ममता आखिर चाहती क्या हैं ? क्या वो कांग्रेस से अपनी अपमानजनक विदाई का बदला ले रही हैं ? बीते कुछ समय में ममता ने कांग्रेस खेमे में तोड़फोड़ मचाई है। गोवा के पूर्व सीएम लुइजिन्हो फलेरो, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी, सिलचर से कांग्रेस की पूर्व सांसद सुष्मिता देव और यूपी में कांग्रेस के विधायक ललितेशपति त्रिपाठी को उन्होंने टीएमसी में शामिल कराया है। इसके अलावा कांग्रेस के ही कीर्ति आजाद और पूर्व सांसद अशोक तंवर ने भी ममता का दामन थामा है। बुधवार देर रात मेघालय के 18 में से 12 कांग्रेस विधायकों ने भी टीएमसी के साथ जाने का एलान किया है।
ममता पिछले तीन दिन से दिल्ली में हैं। बावजूद इसके उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं की है। इस बारे में सवाल पूछे जाने पर ममता ने कहा कि इसकी कोई योजना नहीं है, क्योंकि सोनिया पंजाब चुनाव में व्यस्त हैं। साथ ही उन्होंने यह कहकर चौंकाया कि हमें हर बार सोनिया से क्यों मिलना चाहिए ? यह संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है। उनकी टिप्पणी उनकी पार्टी के एक बड़े विस्तार की होड़ के बीच आई है।
बता दें कि ममता बनर्जी अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के विस्तार में जुटी हैं। ममता पहले सोनिया गांधी के साथ अच्छे समीकरण साझा करने के लिए जानी जाती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। बंगाल के कांग्रेस नेताओं की ममता की तरफ उदासीनता ने दोनों दलों के बीच एक दरार पैदा की है। ये दरार अगर और चौड़ी होती है, तो कांग्रेस को परे खिसकाकर ममता बनर्जी विपक्ष की सर्वमान्य नेता बन सकती हैं। शायद दीदी का इरादा भी यही है।