पटना। बिहार में बीजेपी से एक बार फिर नीतीश कुमार ने दामन छुड़ा लिया है और लालू यादव की आरजेडी और कांग्रेस के खेमे में दोबारा लौट गए हैं। अचानक नीतीश ने ये फैसला क्यों किया, जबकि हाल ही में हुए राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनाव में वो बीजेपी के साथ थे? ये सवाल सियासत के जानकारों को मथ रहा है। हालांकि, अब ये संकेत भी मिलने लगे हैं कि नीतीश ने काफी पहले से ही बीजेपी से अलग होने की प्लानिंग बना ली थी। वो शायद मौके का इंतजार कर रहे थे। हालांकि, बीजेपी को भी शायद इसका अंदाजा नहीं होगा कि जिन लोगों को नीतीश ने भ्रष्टाचारी और न जाने क्या क्या बताकर साथ छोड़ा था, उनके ही साथ दोबारा चले जाएंगे।
बहरहाल, हम बता रहे हैं कि आखिर ये संकेत कैसे मिले कि नीतीश लंबे वक्त से बीजेपी को किनारे करने की योजना बना रहे थे। इसके संकेत मिले लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप के कल यानी मंगलवार को दिए एक बयान से। तेजप्रताप ने रात को मीडिया से बात करते हुए कहा कि हम पहले ही कह रहे थे कि डेढ़ साल में ‘खेला’ होगा। तेजप्रताप की इस बात पर गौर करें, तो ये अब हकीकत लगता है। नीतीश के रंग-ढंग काफी पहले से ही बदले बदले नजर आ रहे थे। खासकर रोजा इफ्तार में लालू के घर जाकर वहां तेजस्वी और राबड़ी देवी के साथ हंसना बोलना, फिर हाल के दिनों में बीजेपी के बड़े नेताओं और यहां तक कि पीएम नरेंद्र मोदी के बुलावे को भी अनदेखा कर देना। ये सारे संकेत बीजेपी पढ़ने में नाकाम रही। सुनिए तेजप्रताप ने क्या कहा।
BREAKING NOW: @TejYadav14, son of Lalu drops bombshell; spills beans on @NitishKumar
To @TheNewIndian_in’s @Anand_Journ
“1.5 saal se Khela hobe ki taiyari mai the
Did @NitishKumar play with emotions of @AmitShah @sanjayjaiswalMP @narendramodi on corruption war? Or a revenge? pic.twitter.com/8VyKMnyXz4
— Rohan Dua (@rohanduaT02) August 9, 2022
नीतीश ने पटना पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह की बैठक में हिस्सा नहीं लिया। फिर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विदाई भोज में नहीं आए। राष्ट्रपति चुनी गईं द्रौपदी मुर्मू के शपथग्रहण में भी न्योता मिलने के बाद न आना और नीति आयोग की बैठक में भी वो शामिल नहीं हुए। बताया कि कोरोना के कारण स्वास्थ्य ठीक नहीं है, लेकिन अब जानकार मान रहे हैं कि नीतीश दरअसल पटकथा लिख चुके थे और वो मौके की तलाश में थे। हालांकि, उन्होंने संकेत दिए, लेकिन बीजेपी का नेतृत्व गफलत में पड़ा रहा। नतीजा सबके सामने है।