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Scheduled Caste Status: धर्म बदलने वाले दलितों को भी मिल सकता है अनुसूचित जाति का दर्जा, मोदी सरकार ने बनाया आयोग

सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि धर्म बदल चुके दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का मुद्दा ऐतिहासिक और मौलिक तौर पर जटिल है। सरकार इसे इसे सार्वजनिक महत्व का मसला मानती है। सरकार ने कहा है कि ऐसे में इसकी संवेदनशीलता और असर के बारे में जानकारी जुटाया जाना जरूरी है।

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नई दिल्ली। धर्म बदल चुके दलितों के लिए अब केंद्र की मोदी सरकार बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है। सरकार ने पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया है। ये आयोग धर्म बदल चुके दलितों को अनुसूचित जाति SC का दर्जा देने के मामले में अपनी सिफारिश सरकार को देगा। अगर आयोग धर्म बदल चुके दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की सिफारिश करता है, तो सरकार को संविधान संशोधन करना होगा। संविधान में कहा गया है कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा किसी और धर्म को मानने वाले शख्स को अनुसूचित जाति का नहीं माना जा सकता।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक तीन सदस्यों का आयोग बनाया गया है। इस आयोग में जस्टिस बालाकृष्णन के अलावा रिटायर्ड आईएएस डॉ. रविंदर कुमार जैन और यूजीसी की मेंबर प्रोफेसर सुषमा यादव को भी जगह मिली है। आयोग ये भी देखेगा कि धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को अगर एससी में शामिल किया जाता है, तो अभी अनुसूचित जाति में जिनको रखा गया है, उनपर इसका कोई असर पड़ेगा या नहीं। आयोग ये भी देखेगा कि इन लोगों के अन्य धर्मों में जाने के बाद उनके रीति-रिवाजों, परंपराओं, सामाजिक भेदभाव और अभाव की हालत में बदलाव आया है या नहीं। इसके अलावा जरूरी समझने पर आयोग अन्य मुद्दों पर भी विचार कर सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि धर्म बदल चुके दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का मुद्दा ऐतिहासिक और मौलिक तौर पर जटिल है। सरकार इसे इसे सार्वजनिक महत्व का मसला मानती है। सरकार ने कहा है कि ऐसे में इसकी संवेदनशीलता और असर के बारे में जानकारी जुटाया जाना जरूरी है। बता दें कि आयोग के अध्यक्ष केजी बालाकृष्णन सुप्रीम कोर्ट के पहले दलित चीफ जस्टिस थे। वो मानवाधिकार आयोग के भी अध्यक्ष रह चुके हैं। जबकि, प्रोफेसर सुषमा यादव खुद पिछड़ी जाति से आती हैं।

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