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President Election: ममता की बातों में आ कर राष्ट्रपति चुनाव लड़ने पर अब यशवंत सिन्हा को हो रहा होगा पछतावा, हार तो तय थी लेकिन इतनी फजीहत होगी इसकी उम्मीद…

PRESIDENT ELECTION

नई दिल्ली। चलिए, थोड़ा फ्लैश बैक में चलते हैं। जरा याद करिए उन दिनों को जब देश में राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रत्याशियों को लेकर चर्चाओं का बाजार गुलजार था। चर्चा इस बात को लेकर कि आखिर NDA की ओर से कौन होगा राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार? चर्चा इस बात को लेकर कि आखिर UPA की ओर से कौन होगा राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार? चर्चा इस बात को लेकर कि आखिर इस राष्ट्रपति चुनाव में कौन किसको देगा मात? खैर, इनमें से कुछ सवालों के जवाब तो हमें मिल चुके हैं, लेकिन कुछ सवाल के मिलना अभी-भी बाकी हैं, जिनके उत्तर तभी पता लगेंगे, जब राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा होगी। अभी तक की राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि राष्ट्रपति पद के चुनाव होने से पहले ही विपक्षी दलों ने अपनी दुर्गति करवा ली है। वो कैसे तो चलिए अब आपको सबकुछ विस्तार से बताते हैं। जरा उन दिनों को याद करिए जब विपक्ष ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का ऐलान किया था। नाम सुनकर सभी चौंक गए थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी यशवंत सिन्हा का नाम जब बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में विपक्ष की ओर से पेश किया गया, तो सभी के होश फाख्ता हो गए। लगा कि बाजी तो अब विपक्ष के पाले आ चुकी है, और सत्तारूढ दल की दुर्गति तय है।

जरा यह भी ध्यान रखिए कि विपक्षी दलों की तरफ यशवंत सिन्हा का नाम बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में कोई यकायक निर्णय का नतीजा नहीं था, बल्कि लंबी कयावद के परिणामस्वरूप उनके नाम पर मुहर लगी थी। शायद आपको याद ना हो कि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार के नाम पर सहमति बनाए रखने के लिए एक नहीं, बल्कि कई मर्तबा विपक्षी कुनबों की बैठक बुलाई थी।

जिसमें पहले राकांपा प्रमुख शरद पवार, फिर फारुख अब्दुल्ला, फिर मोहम्मद आरिफ खान के नाम को भी बतौर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाया गया था, लेकिन संयोग देखिए कि इन तीनों ने ही राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने से साफ इनकार कर दिया था। अब ऐसे में विपक्षी दल के समक्ष चुनौती थी कि आखिर बतौर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में किस नाम पर अंतिम मुहर लगाई जाए। खैर, सीएम ममता की अगुवाई में फिर बैठक बुलाई गई जिसमें यशवंत सिन्हा के नाम पर मुहर लगाई गई। यशवंत का नाम बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार सार्वजनिक करने के बाद विपक्ष को उम्मीद थी कि सभी विपक्षी दलों का साथ मिलेगा, लेकिन उससे पहले विपक्षी दलों के लिए भी यह जान लेना जरूरी था कि आखिर केंद्र सरकार की तरफ से बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार किस नाम को सार्वजनिक किया जा रहा है।

हालांकि, केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति उम्मीदवार का नाम ऐलान करने में ज्यादा देर नहीं लगाई। अब इसे केंद्र सरकार की रणनीति कहे या फिर कुछ और की विपक्षी दलों की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के ऐलान के तुरंत बाद ही केंद्र सरकार की तरफ से द्रौपदी मूर्मु के नाम पर सहमति व्यक्त की गई है। द्रौपदी झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी हैं और आदिवासी समुदाय से भी ताल्लुक रखती हैं। ऐसे में केंद्र सरकार ने विपक्षी दलों के समक्ष तरुप का इक्का फेंक दिया है।

जिस तरह केंद्र सरकार की तरफ से द्रौपदी मूर्मु के नाम का ऐलान बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में किया गया है, उसे लेकर चर्चाओं का बाजार गुलजार हो चुका है। माना जा रहा है कि विपक्ष चुनाव लड़ने से पहले ही अपनी दुर्गति करवा बैठा और इस समर में सबसे ज्यादा दुर्गति किसी की हुई है, तो वो हैं ममता बनर्जी। जी हां…ममता बनर्जी की रहनुमाई में ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए यशवंत सिन्हा के नाम का ऐलान किया गया था। लेकिन मोदी सरकार ने द्रौपदी मूर्मु के नाम का ऐलान कर जिस तरह से विपक्ष की किलेबंदी की है, उसमें सभी विपक्षी बुरे फंस चुके हैं। सियासी पंडितों की ओर से कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव होने से पहले विपक्षी ने अपनी दुर्गति की पटकथा खुद अपने हाथों से लिख ली है, अब बस इसे हमें जीवन्त होते हुए देखना होगा।

बता दें कि वर्तमान में सभी राजनीति दल सामने आकर दौपद्री मूर्मु को समर्थन करने का ऐलान कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले हेमंत सोरेने ने भी शाह से मुलाकात के दौरान मूर्मु को समर्थन करने का ऐलान किया था। इतना ही नहीं, शिवसेना ने भी मूर्मु को समर्थन करने का ऐलान कर दिया है, जबकि बीते दिनों उद्धव ठाकरे कांग्रेस और राकांपा के साथ मिलकर सरकार संचालित कर रहे थी। बहरहाल, अब आगामी दिनों में राष्ट्रपति चुनाव में कौन किसको मात देता है। यह देखना दिलचस्प रहेगा, लेकिन अभी तक के सियासी समीकरणों ने यह साफ जाहिर कर दिया है कि विपक्षी बाजी हार ही चुका है, बस अधिकृत ऐलान करना बाकी है।

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