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Congress On Seat Sharing: विपक्षी दलों के बीच सीटों के बंटवारे में कांग्रेस की गणित क्या? मल्लिकार्जुन खरगे के इस बयान से समझिए

Opposition meeting

नई दिल्ली। अब तक ये चर्चा हो रही थी कि 28 दलों का विपक्षी गठबंधन बनने के बाद भी 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में इन पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा क्यों नहीं हुआ? सीट बंटवारे के इसी मुद्दे पर बीते दिनों सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर जोरदार निशाना साधा था और कहा था कि यूपी में भी कांग्रेस के हिसाब से सपा उससे बात करेगी। अखिलेश यादव के इस बयान पर कांग्रेस के आलाकमान ने चुप्पी साधे रखी। अब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने विपक्षी दलों के गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर चुप्पी तोड़ी है। मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि पहले 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे आ जाएं, उसके बाद सीट बंटवारे पर गठबंधन में चर्चा होगी। मल्लिकार्जुन खरगे के इस बयान से साफ है कि कांग्रेस जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती और हालात देखकर आगे की राह चुनेगी।

मल्लिकार्जुन खरगे का ताजा बयान ये भी साफ कर रहा है कि कांग्रेस का आलाकमान ये देखना चाहता है कि 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसकी स्थिति कैसी रहती है। सियासत के जानकारों के मुताबिक कांग्रेस अगर चुनाव को बड़े अंतर से जीतती है और राजस्थान व छत्तीसगढ़ में लगातार दूसरी बार सरकार बना लेती है, तो सीट बंटवारे की चर्चा के दौरान वो अन्य विपक्षी दलों से अपनी बात मनवाने की हालत में रहेगी। वहीं, अगर चुनाव में कांग्रेस को सफलता न मिली, तो वो विपक्षी दलों से सीट बंटवारे को लेकर अलग तरह से बात करेगी। हालांकि, कांग्रेस ने विपक्षी दलों के गठबंधन नेताओं की बैठक में पहले ये बात नहीं कही थी। अब जबकि सपा ने उसपर निशाना साधा और मध्यप्रदेश में जेडीयू ने भी उम्मीदवार उतारे, तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे का सीट बंटवारे पर ये अहम बयान सामने आया है।

जब विपक्षी दलों का गठबंधन बना था, तब उसके नेताओं में शामिल नीतीश कुमार ने सुझाव दिया था कि हर जगह बीजेपी के मुकाबले विपक्ष का साझा उम्मीदवार चुनाव लड़े। इसके बाद ही गठबंधन के दलों के बीच सीटों के बंटवारे की बात होने लगी थी। कांग्रेस और बाकी दलों ने सीट बंटवारे पर हल्की-फुल्की चर्चा तो की, लेकिन कुछ तय नहीं हो सका। जबकि, विपक्षी गठबंधन की पटना, बेंगलुरु और मुंबई में बैठक हो चुकी है। दरअसल, दिक्कत क्षेत्रीय दलों से है। ये दल अपने-अपने राज्यों में मजबूत हैं और कांग्रेस की हालत ऐसे राज्यों मसलन बंगाल और यूपी में पतली है। अब देखना ये है कि सीट बंटवारे पर विपक्षी दलों की बातचीत किस मोड़ पर पहुंचती है।

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