नई दिल्ली। आज वैलेंटाइंस डे है। प्रेमी-प्रेमिका इस मौके पर एक-दूसरे को महंगे गिफ्ट देते हैं, लेकिन ये सारे गिफ्ट बिहार के गया जिले में रहने वाले दशरथ मांझी की तरफ से अपने पत्नी के प्रेम में दिए गए गिफ्ट के सामने छोटे पड़ सकते हैं। दशरथ मांझी को अपनी पत्नी से इतना प्रेम था कि उन्होंने पहाड़ का सीना चीर दिया था। आज दशरथ मांझी जीवित नहीं हैं, लेकिन पत्नी के प्रति उनके प्रेम की ये मिसाल जीवित है और लोग अब भी दशरथ मांझी के प्रेम के प्रतीक की हमेशा चर्चा करते रहते हैं। दशरथ मांझी गया के करीब गहलौर गांव के रहने वाले थे। वो गरीब मजदूर थे। रोज काम करते और जो थोड़ा बहुत पैसा हाथ आता, उससे रोज का काम चलता था।
दशरथ मांझी की पत्नी का नाम फाल्गुनी देवी था। दशरथ एक दिन अपने गांव के पास स्थित गेहलौर के पहाड़ के दूसरी तरफ लकड़ी काटने गए थे। उनकी पत्नी दोपहर में भोजन पहुंचाने जा रही थीं। अचानक फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिरीं और इससे चोटिल हो गईं। पत्नी को अस्पताल ले जाने में यही पहाड़ बाधा बन गया। जब तक फाल्गुनी को दशरथ मांझी लंबे रास्ते से अस्पताल ले जाते, उनकी मौत हो गई। अपनी पत्नी से प्रेम करने वाले दशरथ मांझी को बड़ा झटका लगा। उन्होंने पाया कि इसी पहाड़ की वजह से अत्री और वजीरगंज के बीच लंबी दूरी थी। पत्नी की मौत ने दशरथ को ऐसा झकझोरा कि उन्होंने तय कर लिया कि इस पहाड़ का सीना वो चीर देंगे।
दशरथ मांझी ने पत्नी फाल्गुनी की मौत के बाद छेनी और हथौड़ी उठा ली। वो रोज पहाड़ को तोड़ने लगे। लोगों ने उनका खूब मजाक भी उड़ाया, लेकिन दशरथ अपने काम में जुटे रहे। गेहलौर के पहाड़ को वो रोज काटते। 1960 से 1982 तक 22 साल दशरथ लगातार छेनी और हथौड़ी चलाते रहे। नतीजे में गेहलौर के पहाड़ के बीच से 30 फुट चौड़ा और 360 फुट लंबा रास्ता बन गया। इससे अत्री और वजीरगंज के बीच की दूरी 55 किलोमीटर से घटकर महज 15 किलोमीटर रह गई। दशरथ मांझी का नाम माउंटेन मैन भी पड़ा। उनके इस काम की जमकर सराहना की गई। डायरेक्टर केतन मेहता ने दशरथ मांझी के बारे में माउंटेन मैन नाम से फिल्म भी बनाई। आज वैलेंटाइन डे पर दशरथ मांझी के इस जज्बे को हर कोई सलाम कर रहा है।