नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी की महत्वपूर्ण कार्यों की लिस्ट में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ बिल भी है। इस बिल को बीते दिन मोदी कैबिनेट ने मंजूरी भी दे दी थी। वन नेशन वन इलेक्शन बिल को सोमवार को लोकसभा में पेश किया जाना था। अब सोमवार की लोकसभा की कार्यसूची से वन नेशन वन इलेक्शन बिल को पेश करना हटा दिया गया है। हालांकि, सदन के बाकी कामकाज होने के बाद भी सरकार इसे पेश कर सकती है। संसद का मौजूदा शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर तक ही चलना है। ऐसे में सरकार के पास वन नेशन वन इलेक्शन बिल पेश करने के लिए इस सत्र में 5 दिन ही हैं।
सूत्रों ने पहले बताया था कि वन नेशन वन इलेक्शन का बिल पेश करने के बाद इसे संसद की जेपीसी के पास भेजा जाना है। मोदी सरकार सभी दलों में आमराय बनाकर वन नेशन वन इलेक्शन का बिल पास कराना चाहती है। जेपीसी में विपक्ष के भी सांसद होते हैं। ऐसे में वहां वन नेशन वन इलेक्शन बिल पर गहन चर्चा के बाद आमराय बनने की संभावना होती है। हालांकि, विपक्ष इसे लोकतंत्र को नुकसान और केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार के फायदे वाला बताकर विरोध जता रहा है। विपक्ष ये सवाल भी उठा रहा है कि अगर केंद्र या किसी राज्य में कोई सरकार गिर गई, तो फिर वन नेशन वन इलेक्शन कानून बनने पर किस तरह शासन व्यवस्था चलेगी?
वन नेशन वन इलेक्शन पर सुझाव देने के लिए मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। कमेटी ने इस साल मार्च में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को सौंपी थी। इसके बाद मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन संबंधी रिपोर्ट को हरी झंडी दे दी थी। वन नेशन वन इलेक्शन कमेटी ने लोकसभा के साथ ही सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की है। इन चुनावों के 100 दिन में देश भर के सभी निकायों के चुनाव एकसाथ कराने की सिफारिश भी वन नेशन वन इलेक्शन रिपोर्ट में की गई है। बता दें कि साल 1967 तक देश में लोकसभा के साथ ही विधानसभाओं के चुनाव भी एक साथ होते रहे हैं।