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PM Modi: डेनमार्क में पीएम मोदी के संबोधन को झूठा साबित करने की ‘वेस्टर्न साजिश’, सामने आई सच्चाई तो मुंह की पड़ गई खानी; जानें पूरा माजरा

PM Modi Address

नई दिल्ली। मुख्तलिफ मसलों को लेकर मुख्तलिफ ख्यालातों का होना लाजिमी है। लेकिन जब हर मसले पर एक सरीखी राय ही उभरकर सामने आती है, तो सवालों का सैलाब अपने उफान पर पहुंच जाता है और यह सवाल कोई और नहीं, बल्कि हमारी बिरादरी के लोग ही करते हैं। चलिए अगर कुछ चुनिंदा मसलों को लेकर एक समान राय हो, तो इसे संयोग भी मान लिया जाए, लेकिन जब मसले पर आप मुखालफत का झंडा बुलंद करने में मसरूफ हो जाए, तो सवाल पूछना तो बनता है ना, तो आज इसी कड़ी में हम सवाल करेंगे उन तथाकथित जम्महूरियत के झंडाबरदारों से जो अपने आपको जम्हूरियत का चौकीदार बताने से नहीं थकते हैं। नहीं थकते हैं अपने आपको लोकतंत्र का संरक्षक बताने से, लेकिन साहब हर निराधार मसलों पर मुखालफत का झंडा थामना। यह कहां तक वाजिब है? हमें पूरा यकीन है कि आप अभी तक कुछ भी नहीं समझ पाएं होंगे कि हम आपको क्या बताने जा रहे हैं। आखिर किस मसले से तारूफ कराने के लिए रची जा रही ये तिस्लमभरी भूमिका? यही पूछने के लिए आतुर हो रहे हैं न आप…तो फिर पूरे मसले को तफसील से समझने के लिए चलना होगा आपको हमारे साथ डेनमार्क।

जी हां…वही डेनमार्क…जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते मंगलवार को दौरे पर गए थे…कोई दो मत नहीं यह कहने में की यह यात्रा बेहद उम्दा रही…शानदार रही…कई मसलों पर बेबाक ख्यालातों का दोनों ही राष्ट्रध्यक्षों के बीच आदान-प्रदान हुआ। यूं तो दोनों ही राष्ट्रध्यक्षों ने मुख्तलिफ मसलों पर अपनी राय विश्व बिरादरी के समक्ष साझा किए, लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी कायनात को अपने ख्यालातों से तारूफ कराने के लिए माइक थामा तो खबरों की कायनात एक तबका एकाएक सक्रिय हो गया कि आखिर कब प्रधानमंत्री किसी मसले पर कुछ ऐसी राय जाहिर करें, जिसे लेकर उनकी नाकारात्मक छवि विकसित की जा सकें। कैसे भी करके वैश्विक समुदाय में उनकी विराट होती छवि ब्रेक लग सकें। कछ तो किया जाए ऐसा जिससे प्रधानमंत्री के नाम खबरों की कायनात में नाकारात्मक खबरों की बौछार की जाए। तो इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मसलों पर अपनी राय जाहिर की। लेकिन जब उन्होंने भारत में डेटा के मूल्यों पर अपनी राय रखी। तो उसमें नेगेटिव एंगल तलाश लिया गया। आइए, पहले जानते हैं कि आखिर उन्होंने क्या कहा था।

दरअसल, प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा था कि भारत में दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक सस्ती कीमत पर इंटरनेट उपलब्ध है। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी देश में भारत जितनी सस्ती कीमत पर इंटरनेट उपलब्ध नहीं है। लेकिन पीएम मोदी के बयान को झूठा साबित करने के लिए एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई। रिपोर्ट में पीएम मोदी के बयान को झूठा साबित करने के लिए कई देशों में इंटरनेट की दरों के बारे में बताकर यह बताने की पुष्टि की गई थी कि भारत में कई अन्य देशों की तुलना में सर्वाधिक महंगा इंटरनेट शुल्क है। चलिए, अब जान लेते हैं कि आखिर उक्त रिपोर्ट में क्या कुछ कहा गया है।पीएम मोदी के उक्त बयान को भ्रामक साबित करने हेतु कहा गया कि भारत में 51 रूपए जीबी डेटा है, पाकिस्तान में 45 रूपए जीबी डेटा है, चीन में 39 रूपए जीबी डेटा है, श्रीलंका में 29 रूपए जीबी डेटा है, वहीं बांग्लादेश में 45 रूपए प्रति जीबी डेटा है, लिहाजा उपरोक्त आंकड़ों से यह जाहिर होता है कि अन्य देशों की तुलना में भारत में इंटरनेट के लिए अधिक शुल्क वसूले जाते हैं। यानी की रिपोर्ट के जरिए पीएम मोदी के उपरोक्त बयान को झूठा साबित करने की कोशिश की गई है। चलिए, लेकिन अब इन आंकड़ों में कितनी सच्चाई है, क्या इसकी पड़ताल नहीं करना चाहेंगे।

तो चलिए आपको बताते हैं कि पीएम मोदी के उपरोक्त बयान के पीछे की असल सच्चाई क्या है? जिनसे आप अभी तक अनजान हैं। दरअसल, एक भारतीय रिपोर्ट में भी मुख्तलिफ देशों के इंटरनेट शुल्क का पूरा लेखा जोखा दर्ज है। उक्त भारतीय रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में  अन्यत्र देशों की तुलना में सर्वाधिक सस्ती कीमत पर इंटरनेट उपलब्ध है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में महज 7 रूपए की दर पर इंटरनेट शुल्क होने की बात कही गई है। वहीं, इजरायल में एक जीबी डेटा 8 रूपर 19 पैसे वसूले जाते हैं। उधर, अमेरिका और कनाडा में एक जीबी डेटा के लिए 8 रूपए 11 पैसे वूसले जाते हैं। इसके साथ ही अगर हमने आपको बाकी के देशों में प्रति डेटा शुल्क के बारे में बता दिया, तो आपके होश फाख्ता हो जाएंगे। ईटली में प्रति डेटा के लिए 32 रुपए वसूले जाते हैं। जबकि उत्तर कोरिया में प्रति जीबी डेटा के लिए भारतीय मुद्रा के आधार पर 814 रूपए वसूले जाते हैं। जिससे यह जाहिर होता है कि किस तरह से उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया है। लेकिन अब सच्चाई जाहिर हो चुकी है। हालांकि, यह कोई पहली मर्तबा नहीं है कि जब किसी मसले को लेकर पीएम मोदी की छवि को धूमिल करने का कथित तौर पर प्रयास किया गया है, बल्कि इससे पहले भी कई ऐसे मसले रहे हैं, जिसे लेकर उनकी छवि को खराब करने की कोशिश की जाती रही है। कोरोना सरीखे मसले से लेकर और न जाने कितने ही ऐसे मसले रहे हैं, जिसे लेकर उनकी सरकार को सवालिया कठघरे में ख़ड़ा किया जाता रहा है, लेकिन अंत में सामने आती सच्चाइयों ने उन दावों को खोखले ही साबित किया है।

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