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कृषि विधेयक पर गुमराह करने वाले विपक्षी पार्टियों को पीएम मोदी ने सुनाई खरी-खरी, कही ये बात

PM Narendra Modi

नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) सोमवार को राज्य को एक और बड़ा तोहफा दिया है। पीएम मोदी ने बिहार को करीब 14 हजार करोड़ रुपये की सौगात दी है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य के46 हजार गांवों को ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ने वाली सेवा ‘घर तक फाइबर प्रोजेक्ट’ का भी उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने एक बार फिर कृषि विधेयक पर गुमराह करने वाले विपक्षी पार्टियों को जमकर खरी खोटी सुनाई। कृषि बिल के मुद्दे पर पीएम मोदी ने कहा कि कल देश की संसद ने, देश के किसानों को नए अधिकार देने वाले बहुत ही ऐतिहासिक कानूनों को पारित किया है। मैं देश के लोगों को, देश के किसानों, देश के उज्ज्वल भविष्य के आशावान लोगों को भी इसके लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। ये सुधार 21वीं सदी के भारत की जरूरत हैं।

अहम बातें-

बीते 5 साल में जितनी सरकारी खरीद हुई है और 2014 से पहले के 5 साल में जितनी सरकारी खरीद हुई है, उसके आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। मैं अगर दलहन और तिलहन की ही बात करूं तो पहले की तुलना में, दलहन और तिलहन की सरकारी खरीद करीब 24 गुणा अधिक की गई है।

मैं देश के प्रत्येक किसान को इस बात का भरोसा देता हूं कि MSP की व्यवस्था जैसे पहले चली आ रही थी, वैसे ही चलती रहेगी। इसी तरह हर सीजन में सरकारी खरीद के लिए जिस तरह अभियान चलाया जाता है, वो भी पहले की तरह चलते रहेंगे।

कृषि क्षेत्र में इन ऐतिहासिक बदलावों के बाद, कुछ लोगों को अपने हाथ से नियंत्रण जाता हुआ दिखाई दे रहा है। इसलिए अब ये लोग MSP पर किसानों को गुमराह करने में जुटे हैं। ये वही लोग हैं, जो बरसों तक MSP पर स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को अपने पैरों की नीचे दबाकर बैठे रहे।

जहां डेयरी होती हैं, वहां आसपास के पशुपालकों को दूध बेचने में आसानी तो होती है, डेयरियां भी पशुपालकों का, उनके पशुओं का ध्यान रखती हैं। इन सबके बाद भी दूध भले ही डेयरी खरीद लेती है, लेकिन पशु तो किसान का ही रहता है। ऐसे ही बदलाव अब खेती में भी होने का मार्ग खुल गया है

बहुत पुरानी कहावत है कि संगठन में शक्ति होती है। आज हमारे यहां ज्यादा किसान ऐसे हैं जो बहुत थोड़ी सी जमीन पर खेती करते हैं। जब किसी क्षेत्र के ऐसे किसान अगर एक संगठन बनाकर यही काम करते हैं, तो उनका खर्च भी कम होता है और सही कीमत भी सुनिश्चित होती है।

कृषि मंडियों के कार्यालयों को ठीक करने के लिए, वहां का कंप्यूटराइजेशन कराने के लिए, पिछले 5-6 साल से देश में बहुत बड़ा अभियान चल रहा है। इसलिए जो ये कहता है कि नए कृषि सुधारों के बाद कृषि मंडियां समाप्त हो जाएंगी, तो वो किसानों से सरासर झूठ बोल रहा है।

मैं यहां स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि ये कानून, ये बदलाव कृषि मंडियों के खिलाफ नहीं हैं। कृषि मंडियों में जैसे काम पहले होता था, वैसे ही अब भी होगा। बल्कि ये हमारी ही एनडीए सरकार है जिसने देश की कृषि मंडियों को आधुनिक बनाने के लिए निरंतर काम किया है।

नए कृषि सुधारों ने देश के हर किसान को आजादी दे दी है कि वो किसी को भी, कहीं पर भी अपनी फसल, अपने फल-सब्जियां बेच सकता है। अब उसे अगर मंडी में ज्यादा लाभ मिलेगा, तो वहां अपनी फसल बेचेगा। मंडी के अलावा कहीं और से ज्यादा लाभ मिल रहा होगा, तो वहां बेचने पर भी मनाही नहीं होगी।

हमारे देश में अब तक उपज बिक्री की जो व्यवस्था चली आ रही थी, जो कानून थे, उसने किसानों के हाथ-पांव बांधे हुए थे। इन कानूनों की आड़ में देश में ऐसे ताकतवर गिरोह पैदा हो गए थे जो किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे। आखिर ये कब तक चलता रहता?

21वीं सदी का भारत, 21वीं सदी का बिहार, अब पुरानी कमियों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ रहा है। आज देश में Multimodal Connectivity पर बल दिया जा रहा है। अब हाईवे इस तरह बन रहे हैं कि वो रेल रूट को, एयर रूट को सपोर्ट करें। रेल रूट इस तरह बन रहे हैं कि वो पोर्ट से इंटर-कनेक्टेड हों।

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