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Rajasthan Politics : मल्लिकार्जुन खड़गे को अब चुभने लगे अध्यक्ष के ताज में लगे कांटे, सचिन पायलट की जिद या अशोक गहलोत, क्या हैं विकल्प ?

नई दिल्ली। बीते महीने कांग्रेस पार्टी में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को चुना गया था। वो कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे तो कहा गया था कि उन्हें कांटों भरा ताज मिला है। अध्यक्षी मिले एक महीना भी नहीं बीता है कि इस ताज के कांटे अब उन्हें चुभने लगे हैं। इसकी शुरुआत राजस्थान से हुई है, जहां एक बार फिर से सचिन पायलट कैंप ने सीएम बदलने की मांग तेज कर दी है। सचिन पायलट ने बुधवार को साफ कहा कि केसी वेणुगोपाल ने एक या दो दिन में बदलाव की बात कही थी, लेकिन अब तो महीना बीत गया है।

वहीं पार्टी की गाइडलाइंस का हवाला देते हुए अशोक गहलोत ने उन्हें चुप रहने की नसीहत दे डाली। अब तक मल्लिकार्जुन खड़ने ने इस मसले पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन सचिन पायलट ने अपनी मांग में सीधा उन्हें ही संबोधित किया है। वही कांग्रेस राजस्थान की तरफ से भीतर मानी कई बार यह बयान भी सामने आए हैं गांधी परिवार को अशोक गहलोत से इतना प्रेम क्यों है यह सचिन पायलट को समझ नहीं आता। सचिन पायलट कई बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मुखर होकर विरोध कर चुके हैं।

इस समय खड़गे के पास मौजूद हैं कितने विकल्प ?

जब राजस्थान में सचिन पायलट के खेमे की तरफ से अंदरूनी बगावत की आवाज आने लगी है, तो ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे का अध्यक्ष का ताज कांटो भरा नजर आने लगा है। ऐसे में सवाल उठता है कि अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खड़गे के पास राजस्थान के संकट से निपटने के लिए क्या विकल्प मौजूद हैं। फिलहाल मल्लिकार्जुन खड़गे के पास कई विकल्प हैं। इनमें पहला तो यही है कि अशोक गहलोत पर दिसंबर तक चुप्पी साधे रहें। इसकी वजह यह है कि भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान पहुंचने वाली है और हिमाचल एवं गुजरात के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में किसी भी तरह से माहौल खराब करना इन राज्यों में कांग्रेस की संभावनाओं पर असर डाल सकता है। मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से अशोक गहलोत को जीवनदान और उनके करीबियों को माफी भी दी जा सकती है।

क्या फिर से राजस्थान में विधायक दल की मीटिंग बुलाएंगे मलिकार्जुन खड़गे?

बेशक कांग्रेस सरकार की तरफ से अशोक गहलोत को राजस्थान में खुली छूट दी गई है, लेकिन अशोक गहलोत को पूरी तरह से क्लीन चिट और वरदान देना फायदे का सौदा भी नहीं है। इसकी वजह यह है कि इससे हाईकमान के कमजोर होने का संदेश जाएगा। कांग्रेस के आंतरिक सर्वे में माना जा रहा है कि अगले साल नवंबर में होने जा रहे चुनाव में अशोक गहलोत की लीडरशिप में भाजपा वापस नहीं लौटेगी। इस बीच खड़गे के पास दूसरा विकल्प है कि वह जयपुर में एक बार फिर से पर्यवेक्षक भेजें।

इस कदम में भी खतरे और संभावनाएं दोनों हैं। यदि खड़गे इसमें फेल होते हैं तो उनकी अध्यक्ष के तौर पर बोहनी खराब होने का खतरा होगा। इसकी वजह यह है कि गहलोत के समर्थक आज भी पीछे हटने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। वही आपको बता दें कि भारतीय जनता पार्टी और दूसरे विपक्षी दल राजस्थान सरकार में इस तरह की अंदरूनी बगावत को देखते हुए अपने लिए मौके तलाशने में लगे हैं।

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