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Rajasthan: रिटायर्ड श्यामवीर एवं पत्नी विजेन्द्री बने बेसहारा श्वानों के देवदूत, 34 वर्ष से श्वानों की सेवा में तत्पर

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नई दिल्ली। श्वान एक ऐसा जीव है, जो शुरू से ही इंसानों के बीच रहा है। जहां इंसान, वहीं श्वान। श्वान को इंसान का सबसे अच्छा दोस्त बताया जाता है। पहली रोटी गाय की और अंतिम रोटी श्वान की ऐसी परम्परा हिंदुस्तान में शुरू से थी, लेकिन अब यह कुछ हद तक धूमिल होने लगी है। बढ़ते आधुनिक युग में कई लोगों को श्वान की उपस्थिति नागवार गुजरती है, फिर भी ऐसे कई उदाहरण हैं, जो इंसानियत को जिंदा रखे हुए हैं और बेजुबानों की निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं। कोटा राजस्थान के 65 वर्षीय राजकीय सेवा से रिटायर्ड श्यामवीर एवं 66 वर्ष उनकी पत्नी वैद्य विजेन्द्री विगत तीन दशकों से ज्यादा लगातार बेजुबान श्वानों की सेवा में तत्पर हैं। श्यामवीर मिलने वाली पेंशन का 80% भाग श्वानों पर खर्च करते हैं, वो एवं उनकी पत्नी रोजाना 100-110 रोडसाइड श्वानों का पेट भरने के लिए 8 किलो आटा, 3.5 किलो पेडिग्री(डॉग फ़ूड),15 अंडे एवं 5 लीटर दूध से उनका भोजन बनाते हैं और कार में लेकर उन्हें खिलाने निकल जाते हैं। उन्होंने अब तक 250 से ज्यादा श्वानों का विधि विधान से अंतिम संस्कार भी किया है, जिसे वो उनका अधिकार बताते हैं. श्यामवीर ने गंभीर बीमारी से ग्रसित कुछ श्वानों को जिनको हमेशा देखरेख की जरूरत है, को अपने घर में ही स्थान दे रखा है। इस तरह 10-12 श्वान उनके घर पर हमेशा रहते हैं।

उनका कहना है कि” जब रोड पर आवारा श्वानों कि स्थिति देखता हूं, जिसमे वो भूख कि वजह से गोबर खाते हुए दिखाई देत हैं, कभी अगर श्वान गाड़ी से दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से तड़पते हैं, तो उन्हें घाव हो जाता है, तो कई के कीड़े पड़े होते हैं, तो इस दर्द से बहुत दुखी होता हूं। इसके अलावा उनकी बढ़ती जनसंख्या पर भी कोई नियंत्रण नहीं रहता जिस वजह से जिस भी मोहल्ले में वो होते हैं, वहां उनको खाने के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ता है, इसलिए जितना हो सकता है इन बेजुबानों के लिए अपनी तरफ से भोजन एवं दवाओं के रूप में सहायता मुहैया करवाता हूं। इससे दिल को सुकून मिलता है।” आवारा श्वानों को जरुरत के समय अस्पताल लेकर जाना, उनकी नसबंदी करवाना, ताकि उनकी जनसंख्या में इजाफा न हो, डॉग लवर के द्वारा मदद मांगने पर बिल देखकर वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाने को यह अपना धर्म मानते हैं। श्यामवीर एवं उनकी पत्नी वैद्य विजेन्द्री देवी की पूरी दिनचर्या ही इन श्वानों की सेवा में निकल जाती है। उनका पॉश इलाके में जो घर है, में कदम रखते ही श्वानो के पिंजरे, जिसमें आकस्मिक रूप से बीमार लाये जाने वाले श्वान से शुरु होता है और 11 वर्षीय अपंग व्ह्यटी श्वान पर खत्म होता है। सीढ़ियों से छत तक अलग-अलग स्थान पर श्वान मिल जायेंगे. जिस रसोई में श्वानो का खाना बनता है, उसी में बुजुर्ग दंपत्ति का भी बनता है। श्यामवीर एवं उनकी पत्नी वर्ष 1987 से श्वानो की सेवा में लगे हैं।

1987 में रोनू से हुई थी शुरुआत

जनवरी 1987 की सर्दी में रात को एक पिल्ला जो श्यामवीर के घर के बाहर शायद अपने परिवार से बिछड़ कर आ गया और कांपता हुआ जोर-जोर से रोने लगा। उसकी आवाज सुनकर श्यामवीर का बेटा उसे घर ले आया और पिताजी से उसको घर पर रखने की जिद करने लगा। श्यामवीर ने पहले तो मना किया, लेकिन बाद में मान कर उसको रख लिया और उसका नाम रोनू रखा। धीरे-धीरे रोनू उनके परिवार का सदस्य हो गया और कुछ समय बाद रोनू के साथ गली की दो फीमेल श्वान उसके साथ घर में रहने लगी। इस तरह से रोनू के बाद उनके घर के आस-पास लगभग 40 संख्या में श्वान हो गए। यह सब श्वान श्यामवीर की कॉलोनी में ही आस-पास निवास करने लगे और उनके बेहतर खाने से लेकर हर बीमारी के लिए श्यामवीर अपने पुरे परिवार के साथ तत्पर रहते। धीरे-धीरे यह कारवां 150 तक हो गया और फिर श्यामवीर ने इस बढ़ती आबादी को रोकने के लिए सभी फीमेल श्वान की अपने ही खर्चे पर नसबंदी करवाई, लेकिन मौजूदा 150 श्वानों के लालन पालन का जिम्मा अपने सर से हल्का नहीं किया। सेवा निवृत होने के बाद श्यामवीर कॉलोनी छोड़कर दूसरे स्थान पर शिफ्ट हो गए, किन्तु अब वो एवं उनकी पत्नी रोजाना अपनी कार से उन श्वानों के लिए भोजन पानी लेकर जाते हैं। इसके अलावा नए निवास स्थान पर एक फीमेल श्वान जिसके बच्चो को बड़ी बेरहमी से पत्थर से कुचल कर मार दिया गया को इन्होंने घर में जगह दी। इस तरह अब इनके घर पर 1-1 करके 10-12 श्वान हो गए।

8 किलो आटा, 3.5 किलो पेडिग्री(डॉग फ़ूड), 15 अंडे एवं 5 लीटर दूध से रोजाना बनता है श्वानो का खाना

श्यामवीर राज्य सरकार से प्राप्त मासिक पेंशन का अधिकतम भाग श्वानों की सेवा में लगा देते हैं और उनके खुद के खर्चे के लिए पुत्र-पुत्री वित्तीय सहायता करते हैं. हर महीने 40-45 हजार रुपये, तो नियमित रूप खर्च होते ही हैं। इसके अलावा अन्य रोड साइड श्वानों के लिए भी वो मेडिकल सहायता उपलब्ध करवाते हैं, जिनमें कई बार हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं। कई डॉग लवर जरूरतमंद डॉग के लिए मेडिकल और शेल्टर की व्यवस्था कर इनको बिल की कॉपी भेज देते हैं और श्यामवीर उसका पेमेंट कर देते हैं। श्यामवीर एवं पत्नी विजेन्द्री देवी रोजाना सुबह सभी श्वानो का खाना बनाते हैं। उनके इस काम की मदद के लिए 2 महिलाएं प्रतिमाह 5-5 हजार रुपये तनख्वाह पर आती हैं। सुबह 9.30 बजे तक खाना बनाकर कार में रख दिया जाता है, फिर दोनों पति-पत्नी पुरानी कॉलोनी में जाते हैं और उन सभी श्वानों को भोजन करवाते हैं, जो इनकी राह देखते रहते हैं। श्वान इनको देखकर ही दौड़े चले आते हैं। श्यामवीर की कार में भले कार परफ्यूम नहीं मिलेगा, लेकिन हमेशा पेडिग्री, दूध एवं रोटियों के साथ-साथ खुजली, घाव में कीड़े की दवाएं, पाउडर आदि जरूर मिलेगा।

250 श्वानों का कर चुके हैं विधि विधान से अंतिम संस्कार

श्यामवीर का कहना है कि “जैसे ही कोई मृत श्वान उनकी नजर में आता है, तो वो उसको गड्ढा खोदकर मंत्र उच्चारण कर सफ़ेद कपडे में लपेट कर नमक के साथ दफ़न करवाते हैं। अब तक उन्होंने 250 से अधिक श्वानों की इस विधान से अंतिम क्रिया की है। हर जीवित प्राणी को मोक्ष प्राप्ति के लिए तय विधान अनुसार अंतिम क्रिया प्राप्त करनी चाहिए, हम श्वानों की मोक्ष के लिए यह करते हैं।”

पीएम मोदी ने मन की बात एवं पत्र लिखकर इनके प्रयासों को सराहा है, बताया प्रेरणास्रोत 

कोरोना काल में इन बेजुबानों के लिए की गयी सेवा एवं दशकों से जारी निस्वार्थ प्रयासों को देखकर पीएम मोदी तक इनके मुरीद हो गए। उन्होंने ‘मन की बात’ में श्यामवीर एवं उनकी बेटी रिटायर्ड मेजर प्रमिला की बेसहारा पशुओं के प्रति प्रेम भावना एवं समर्पण की सराहना करते हुए इनको मिसाल के रूप में बताया और अन्य लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बताया। पीएम मोदी ने पत्र लिखकर भी इनकी सराहना की। प्रमिला ने कोरोना काल के दौरान लगे राष्ट्रीय लॉकडाउन में बेजुबानों के प्रति चिंता व्यक्त कर प्रधानमंत्री से निवेदन कर बेजुबानों के लिए भोजन पानी की व्यवस्था के लिए लोगों को प्रेरित करने को कहा था, जिसका स्वागत प्रधानमंत्री मोदी ने किया।

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