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Gurugram: पत्रकार से स्टार्टअप ओनर बनीं गुरुग्राम की स्मृति, गुड़िया बनाने में 100 महिलाओं को भी दिया रोजगार

गुरुग्राम। उम्र कोई भी हो, कुछ करने की चाहत आपको सफलता दिला सकती है। कुछ ऐसा ही किस्सा गुरुग्राम की स्मृति लमैक का भी है। 41 साल की स्मृति ने लोगों को फिर गुड्डे-गुड़िया की याद दिला दी है। मार्केट में महंगी गुड़िया तो तमाम मिलती हैं, लेकिन स्मृति ने इन्हें कम पैसों में उपलब्ध कराया है। स्मृति ने सिर्फ इतना ही नहीं किया है। खिलौनों का स्टार्टअप शुरू कर उन्होंने 100 महिलाओं को रोजगार भी मुहैया कराया है। सोशल मीडिया के जरिए वह अपने स्टार्टअप में बनी गुड़ियों की मार्केटिंग भी कर रही हैं। स्मृति के पति फाइनेंस फील्ड में हैं। बच्चे तमिलनाडु के कोडईकनाल में पढ़ते हैं। फरवरी में जब कोरोना फैला, तो स्मृति और उनके पति कोडईकनाल में रहने लगे। अब कोडईकनाल में स्मृति सोचने लगीं कि खाली बैठने से बेहतर है कि कुछ किया जाए। यहां बच्चों के कपड़े सिलवाने में उन्हें दिक्कत भी हुई। फिर एक सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिला टेलर ने उनका काम किया। ये महिला कपड़ों से सॉफ्ट टॉय भी बनाती थी। स्मृति को पता चला कि लॉकडाउन के कारण सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाओं के पास काम नहीं है।

इस पर उन्होंने रैग डॉल्स बनाना तय किया। उन्होंने अपनी कंपनी बनाई। जिसका नाम thesmritsonian है। लोकल कारीगरों के बनाए रैग डॉल्स को बच्चों तक पहुंचाने के लिए महिला शख्सियतों को इनसे जोड़ा। फूलन देवी, पहली पायलट सरला ठकराल और पहली महिला जज बेडर गिन्सबर्ग के चेहरे वाली गुड़िया के अलावा स्मृति ने प्रोस्थेटिक लेग वाली गुड़िया बनाकर दिव्यांगों को भी सम्मान दिया।

वह अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला, शिक्षाविद सावित्रीबाई फुले, लेखिका माया एजेंलो और कलाकार फ्रीडा कोहलो की गुड़िया भी बना चुकी हैं। उनकी हर गुड़िया करीब 1500 रुपए कीमत की होती है। इसके साथ वह किताब, पेंसिल, तकिया या स्लीपिंग बैग भी देती हैं। मसलन, कल्पना चावला वाली गुड़िया के हाथ में रॉकेट थमाया गया है। उनके इस काम से 100 महिलाएं जुड़ी हैं। रैग डॉल्स को वो सोशल मीडिया के जरिए बेचती हैं। विदेश से भी इन गुड़ियों के लिए ऑर्डर आते हैं। स्मृति अपने काम का दायरा बढ़ाने जा रही हैं। इससे वह और महिलाओं की मदद करने के सपने भी देख रही हैं।

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