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SC Verdict On Kejriwal Govt Vs LG: दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग केजरीवाल सरकार का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

lg vinay saxena and arvind kejriwal

नई दिल्ली। दिल्ली सरकार के तहत अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर तय किया कि अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग में दिल्ली की केजरीवाल सरकार का आदेश चलेगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने इस साल 18 जनवरी को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था। संविधान पीठ ने एकराय से फैसला सुनाया। इस फैसले को चीफ जस्टिस ने लिखा। इससे पहले जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के विवाद पर फैसला दिया था। तब अफसरों पर नियंत्रण के मसले पर आगे फिर सुनवाई के लिए कहा था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वो साल 2018 जस्टिस अशोक भूषण के फैसले से सहमत नहीं हैं। तब भूषण ने दिल्ली पर केंद्र सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने ये भी कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियों से ज्यादा केंद्र के अधिकार पर भी विचार किया गया। दिल्ली सरकार के पास दूसरे राज्यों से कम शक्तियां हैं। दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। उन्होंंने फैसला सुनाते हुए कहा कि कुछ मामलों में एलजी के पास ज्यादा शक्तियां हैं। उन्होंने कहा कि जमीन, कानून और व्यवस्था छोड़कर अन्य अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को होना चाहिए और एलजी को दिल्ली मंत्रिमंडल की सिफारिशों पर काम करना चाहिए।

14 फरवरी 2019 को अफसरों पर नियंत्रण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण ने अलग-अलग फैसला सुनाया था। ऐसे में मसला संविधान पीठ के सामने गया। दिल्ली सरकार ने कोर्ट में कहा था कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जमीन और पुलिस संबंधी मामले छोड़कर उसे अन्य मामलों में अधिकार है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार का कहना था कि प्रशासन चलाने के लिए अफसरों पर उसका नियंत्रण होना चाहिए। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चलने के दौरान ही दिल्ली सरकार पर नियंत्रण संबंधी कानून में संशोधन करा लिया। केंद्र सरकार का कहना था कि दिल्ली देश की राजधानी है। यहां की सरकार को अन्य राज्य जैसे अधिकार नहीं दिए जा सकते। उसकी कोर्ट में ये भी दलील थी कि केजरीवाल सरकार अपरिपक्व है और इसी वजह से विवाद बनाए रखना चाहती है।

इससे पहले  18 जनवरी को सुनवाई के आखिरी दिन केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले को 9 जजों की बेंच में भेजने के लिए अर्जी दी थी। संविधान पीठ ने इस पर हैरानी जताई, लेकिन केंद्र को आवेदन की मंजूरी दे दी थी। केजरीवाल सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र की इस अर्जी का विरोध किया था। वहीं, सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि देश की राजधानी को अराजकता में नहीं डाला जा सकता है।

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