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Rajasthan: 97 साल का वृद्ध सैनिक..द्वितीय विश्व युद्ध में गवां बैठा था अपना पैर, लेकिन अब तक नहीं मिली कोई आर्थिक सहायता

soldier

नई दिल्ली। यह कहानी है उस सैनिक की, जिसने अपनी जिंदगी में न जाने कितने ही दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे। यह कहानी है उस सैनिक की जिसकी वीरता के आगे बड़े-बड़े खौफनाक दुश्मन घुटने टेक देने में ही अपनी भलाई समझते थे। यह कहानी है, उस सैनिक की जिसके कदमों की आवाज को सुनकर खौफ में आ जाते थे दुश्मन, लेकिन आपको यह जानकर अफसोस होगा कि देश की सेवा में अपना सर्वत्र न्योछावर कर देने वाला यह सैनिक आज लाचार, बेबस, बदहाल और गुरबत की जिंदगी जीने को मजबूर है। पराए तो पराए, बल्कि अब तो अपने भी नजरें चुराने लगे हैं। कल तक सैनिकों की वीरता के नाम बड़े–बड़े जनसभाओं में भाषण देने वाले सियासी नुमाइंदे भी लाचार नजर आ रहे हैं। जी हां…इन सियासी सूरमआओं के लिए लाचारी शब्द बिल्कुल मफीद रहेगा। आखिर क्यों…? तो इसके बारे में हम  आपको बताएंगे सब कुछ…वो भी पूरे तफसील के साथ…लेकिन उससे पहले आइए हम आपको उस वीर सैनिक से तारूफ कराते चलते हैं।

एक कहानी जिसने बदल दी कहानी

वो जवानी ही क्या जिसकी कोई कहानी न हो..  जी हां.. इस वीर सैनिक की जिंदगानी को बयां करने के लिए यह कथन बिल्कुल मुनासिब नजर आती है। इस वीर सैनिक का नाम बलवंत सिंह है। आज बलवंत सिंह पूरे 97 साल के हो चुके हैं और जिंदगी के इस पड़ाव पर आकर यह वीर सैनिक आज लाचारी, बेबसी, बदहाली और गुरबत की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं। 1943 में ये पंजाब रेजिमेंट में शामिल थे। इसके बाद 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ये अपना बांया पैर गंवा बैठे थे। अब यह चलने की क्षमता खो चुके हैं। अपना बायां पैर खोने के बाद इन्हें 1947 में पंजाब रेजिमेंट में शामिल कर दिया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपना पैर गंवा देने वाले बलवंत सिंह अगर आज बदहाल हैं, तो इसके पीछे की वजह अगर कोई है, तो वो राजस्थान की गहलोत सरकार है।

बता दें कि साल 1982 में केंद्र सरकार ने उन सभी सैनिकों को पेंशन देने का ऐलान किया था, जो युद्ध के दौरान लाचार हो गए थे। सैनिकों के हितों को ध्यान में रखते हुए पूरे देश में यह व्यवस्था लागू की गई थी, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इतने साल बीते जाने के बावजूद भी अभी तक उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। युद्ध के दौरान उन्होंने भी अपना पैर गंवाया था, लेकिन सरकार द्वारा शुरू किए गए इस महत्वाकांक्षी योजना का लाभ अब तक इनको नहीं मिल पाया। ऐसा नहीं है कि इन्होंने कभी कोशिश नही की, बल्कि कई कई मर्तबा व केंद्र समेत राज्यों सरकारों के आगे दर पर दस्तक दे चुके हैं,  लेकिन अब तक उनके हाथ छूछे ही रहे हैं। नतीजा यह हुआ है कि अर्थ के अभाव में यह वीर जवान अपनी वृद्धावस्था में बदहाल जिंदगी जीने पर मजबूर हो चुका है।

इस संदर्भ में बलवंत के वकील ने कहा कि, सरकार ने युद्ध विकलांगता पेंशन का प्रावधान किया है, जो कि 1947 के बाद की लड़ाई में घायल हुए लोगों और दुनिया में लड़ने वाले भारतीय सैनिकों को दिए जाने वाले अंतिम वेतन का 100% है। बलवंत सिंह की विकलांगता 100% है क्योंकि उन्होंने अपना बायां पैर खो दिया था। लेकिन चूंकि एएफटी में कोई न्यायाधीश नहीं है, इसलिए मामला लंबित है। सामान्य विकलांगता पेंशन सामान्य से सिर्फ 30% हैपेंशन, लेकिन उन्हें युद्ध विकलांगता पेंशन दी जानी चाहिए जैसा कि गढ़वाल के एक सैनिक के मामले में लखनऊ एएफटी द्वारा किया गया था।” वहीं, वीर जवान के पुत्र सुभाष सिंह ने कहा कि  हमने इस संदर्भ में कई मर्तबा राजस्थान सरकार से गुजारिश की है, लेकिन दो युद्ध लड़ने के बाद भी मेरे पिताजी को अब तक सरकार की तरफ से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी विश्व युद्ध भी लड़ चुके हैं। वे राजस्थान के सबसे वयोवृद्ध लोगों में से एक हैं, लेकिन राजस्थान सरकार का भेदभावपूर्ण रवैया आप देख सकते हैं। इससे बड़ी विडंबना और कुछ नहीं हो सकती है कि वयोवृद्ध सैनिक को अब तक किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं मिल पाई है।

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