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ADJ Sacked from the post: दहेज के लिए पत्नी की हत्या करने वाले को दी छोटी सी सजा तो छिन गया जज साहिबा का पद, सुप्रीम कोर्ट ने भी जमकर सुनाई खरी-खोटी

supreme court

नई दिल्ली। काम, काम होता है…चाहे फिर वो कितना ही छोटा हो या फिर कितना ही बड़ा। सभी को अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिए। काम से साथ अगर बेईमानी की जाती है तो उसका परिणाम क्या होता है ये तो सभी जानते हैं। आज हम आपको ऐसा ही मामले से रूबरू कराएंगे जिससे कि आप अपने काम को लेकर पहले के मुकाबले ज्यादा सजग रहेंगे। दरअसल, एडिशनल सेशंस जज (ADJ) लीना दीक्षित को अपने एक गलत फैसले के कारण पद छोड़ने तक की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। लीना दीक्षित की रिट पिटिशन को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही उनके जज के पद पर रहने की जो संभावनाएं थी वो खत्म हो गई हैं। बता दें, एक मामले में हत्या के आरोपी को नाम मात्र सजा देने के फैसले के कारण उन्हें पद से हटाने को लेकर सिफारिश की गई जिसे मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फुल कोर्ट से स्वीकृति मिल गई है। लीना ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट गई थीं, लेकिन उन्हें यहां से भी उनके हाथ निराशा ही लगी है।

हत्या का है दोषी, लेकिन सजा नाम मात्र

हुआ कुछ यूं है कि लीना दीक्षित के एडीजे कोर्ट में एक युवक द्वारा अपनी पत्नी को जिंदा जलाने का मामला सामने आया था। इस मामले में पत्नी ने दम तोड़ने से पहले इस सारी घटना का खुलासा कर दिया था। घटना स्थल से केरोसिन तेल की मौजूदगी को लेकर भी पुष्टि हो चुकी है और ये भी तय हो गया था कि युवक ने ही पत्नी की निर्ममता से जान ली है। बतौर एडीजे लीना दीक्षित ने आरोपी पति को दफा 302 के तहत हत्या का दोषी तो ठहराया लेकिन सजा केवल 5 वर्ष की जेल सुनाई। जबकि सीआरपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति को मृत्यु दंड या फिर उम्रकैद की सजा सुनाई जानी चाहिए थी।

अपराध और सजा में तालमेल नहीं

जब अपराध की गंभीरता और सजा में दी गई नरमी के मामले ने जोर पकड़ा तो लीना ने खुद ही अपने जजमेंट की समीक्षा की और दफा 302 के बदले दफा 304 ए के तहत आरोपी युवक को दोषी करार दिया। इस धारा के तहत ज्यादा से ज्यादा दो साल की सजा होती है। जबकि देखा जाए तो दहेज हत्या का मामला दफा 304 बी के तहत आता है और इसमें कम-से-कम सात साल की सजा सुनाई जाती है जो कि अधिकतम उम्रकैद तक बढ़ाई जा सकती है।

अब समिति ने लिया है ऐक्शन

इस मामले में प्रशासकीय समिति ने एडिशनल सेशंस जज (ADJ) लीना दीक्षित के इस व्यवहार को पद की गरिमा के विरूद्ध मानते हुए उन्हें हटाने की सिफारिश की है। समिति ने अपनी सिफारिश में ये साफ तौर पर कहा है कि लीना दीक्षित ने एक ऐसी गलती की है जिसका बचाव नहीं किया जा सकता है। ऊपर से गलत तरीके से 302 की दफा को बदलकर 304ए कर देना, नीम पर करेला चढ़ने जैसा है। ऐसे में ये साफ है कि लीना दीक्षित जज के गरिमामय पद के काबिल नहीं है और उन्हें हटाया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में लीना ने दी है ये दलील

अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में लीना का केस जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एसआर भट और जस्टिस एस धूलिया की बेंच के पास गया। अपने बचाव में लीना ने ये दलील दी कि ये उनकी पहली गलती है और बार बार कहा कि चूंकि ये उनकी पहली और एकमात्र गलती है। ऐसे में उन्हें पद से हटाना गलत है। हालांकि लीना की इन दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच सहमत नहीं हुआ। बेंच ने कहा, ‘…आप किसी व्यक्ति को हत्या का दोषी ठहराकर पांच साल की जेल की सजा कैसे दे सकती हैं? और, फिर आपने दोष की दफा बदलकर 304ए कर दिया। ऐसा करते वक्त आपने यह भी नहीं सोचा कि आपको अपना फैसला बदलने का अधिकार है भी या नहीं। आप धारा 302 और 498 ए (दहेज प्रताड़ना) का मतलब जानती हैं।’

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