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PEGASUS: फुस्स पटाखा साबित हुई पत्रकारों की जासूसी की कहानी, सरकार और व्हाट्सएप पहले ही कर चुके खारिज

Pegasus spyware

नई दिल्ली। दुनिया के 16 मीडिया संस्थानों का Pegasus स्पाईवेयर के जरिए नजरदारी करने का मिलाजुला पटाखा आखिर फुस्स हो गया। इस पटाखे में लगातार 36 घंटे तक बारूद भरने और माचिस दिखाने की सारी कोशिशें बेकार गईं, क्योंकि पटाखा बुरी तरह सीला हुआ था। इस इजरायली सॉफ्टवेयर के सहारे पत्रकारों की जासूसी की जो कहानी बुनी गई, उसका कोई आधार ही नहीं मिला। सिर्फ पत्रकारों का नाम छापकर ये दावा किया गया कि उनके वाट्सएप चैट्स और कॉल्स की जासूसी की गई।

इस जासूसी में हुआ क्या ? कौन से तथ्य इस्तेमाल किए गए ? किसके खिलाफ इस्तेमाल किए गए ? कब इस्तेमाल किए गए ? स्टोरी लिखने वाले तमाम विदेशी अखबार और विदेशी चंदे पर चलने वाली देशी वेबसाइट एक भी सवाल का जवाब न दे सकी। खास बात यह भी कि पत्रकारों की लिस्ट में जिनका नाम शामिल है, उनमें से ज्यादातर एक खास विचारधारा के समर्थक हैं। ये अधिकतर मोदी विरोधी पत्रकार हैं, जो इस लिस्ट के सामने आने के बाद बल्लियों उछल रहे हैं।

लिस्ट में अपना नाम पाकर इन सबकी बांछें खिल गई हैं। वे अपने ट्विटर हैंडल पर अपनी ही तारीफ के पुल बांध रहे हैं। खुद को इस कदर महत्वपूर्ण बता रहे हैं कि आखिर सरकार को उनकी जासूसी करानी पड़ गई। इनमें से अधिकतर वे पत्रकार हैं, जो अपनी बीट की खबर तक न रखने के लिए कुख्यात रहे हैं। इस कहानी में एक ट्विस्ट यह भी है कि सरकार ने पहले ही इसके तथ्यों को खारिज कर पूरी की पूरी सच्चाई बयां कर दी थी।

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री के अतिरिक्त सचिव डॉ. राजेंद्र कुमार ने वॉशिंगटन पोस्ट की इंडिया चीफ जोआन्ना स्लेटर के मेल के जवाब में इस फर्जी जासूसी की थ्योरी की धज्जियां उड़ा दीं। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने साफ लिखा कि वाशिंगटन पोस्ट की ओर से भारत सरकार को भेजे गए सवाल न सिर्फ तथ्यों से परे हैं, बल्कि इनमें पहले से तय निष्कर्ष शामिल हैं। वाशिंगटन पोस्ट एक साथ तीन तरह की भूमिका निभा रहा है जो जांचकर्ता, वकील और जज की है। वाशिंगटन पोस्ट की ओर से भेजे गए सवाल इस कदर हास्यास्पद और सतही थे कि डॉ. राजेंद्र कुमार को यहां तक लिखना पड़ा कि अखबार ने बेहद ही सतही स्तर की रिसर्च की है और जमीन पर जरा भी काम नहीं किया है।

सबसे खास बात यह है कि जिस पेगासस सॉफ्टवेयर के नाम पर वॉशिंगटन पोस्ट और अन्य मीडिया हाउस नई-नई कहानियां प्लांट कर रहे हैं, उसके बारे में भारत सरकार सूचना के अधिकार के तहत जवाब दे चुकी है और ये सब सार्वजनिक जानकारी में है। यहां तक कि सरकार इस बारे में संसद तक में बयान दे चुकी है कि सरकारी एजेंसियों की ओर से कोई भी अनाधिकृत स्नूपिंग नहीं की गई। यह स्थापित तथ्य है कि राष्ट्रीय हितों की सूरत में ऐसी किसी भी जरूरत पर उच्चाधिकारियों की अनुमति के बाद ही कोई कदम उठाया जाता है। खास बात यह भी है कि पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए जासूसी की इस कहानी को खुद व्हाट्सएप देश के सुप्रीम कोर्ट में खारिज कर चुका है।

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