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West Bengal: पश्चिम बंगाल में विधान परिषद गठन पर फंस सकता है पेच, क्या बचेगी दीदी की कुर्सी?

Mamata and PM Modi

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में 2 जुलाई से विधानसभा सत्र का आगाज हो गया है। जिसमें ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार ने विधान परिषद का गठन करने का वादा किया था। इसे लेकर ममता बनर्जी ने सदन में प्रस्ताव पेश किया जिसे राज्य विधानसभा में पारित किया जा चुका है। प्रस्ताव के पक्ष में सदन के 196 सदस्यों ने वोट दिए, हालांकि 69 वोट सरकार के इस फैसले के खिलाफ पड़ा। बता दें कि राज्य में विधानसभा की 294 सीटें है। जिनमें से 98 यानी इसकी एक तिहाई सीटों वाली विधान परिषद का गठन हो पाएगा। लेकिन यहां देखने लायक होगा कि जितनी आसानी से ममता बनर्जी ने विधानसभा में यह प्रस्ताव पारित करवा लिया है, क्या उतनी ही आसानी से राज्य में विधान परिषद का गठन हो पाएगा?

फंस सकता है पेच

भले ही विधानसभा में ममता बनर्जी का यह प्रस्ताव पारित हो गया है, लेकिन इसके बाद भी राज्य में विधान परिषद बनाना दीदी के लिए आसान नहीं होगा। विधानसभा में प्रस्ताव पास होने के बाद इसे संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा में भी बहुमत से पास कराना होगा। यानी राज्य में परिषद बनाने के लिए टीएमसी को केंद्र की मोदी सरकार से मंजूरी लेनी होगी। जोकि ममता बनर्जी के लिए आसान नहीं है। गौरतलब है कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा और टीएमसी में कांटे की टक्कर देखी गई थी।

बंगाल में पहले भी थी विधान परिषद

बंगाल में पहले भी विधान परिषद थी जिसका गठन आजादी के बाद 5 जून 1952 को किया गया था। 51 सदस्यों वाली उस विधान परिषद को 21 मार्च 1969 में खत्म कर दिया गया था। वहीं साल 2011 में बंगाल की सत्ता में आते ही ममता बनर्जी ने विधान परिषद के गठन करने का वादा किया था।

विधान परिषद में सदस्य

फिलहाल देश के 6 राज्यों में विधान परिषद है, जिनमें बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के नाम शामिल हैं। एक विधान परिषद में सदस्यों की संख्या विधानसभा के सदस्यों से एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है। वहीं पश्चिम बंगाल में विधानसभा की 294 सीटें हैं। इस लिहाज से बंगाल में यदि विधान परिषद का गठन होता है तो उसमें 98 सदस्य हो सकते हैं।

बता दें कि बंगाल में हाल ही में हुए चुनाव में ममता बनर्जी नंदीग्राम सीट से अपने प्रतिद्वंद्वी सुवेंदु अधिकारी से हार गई थीं। जिसके बाद उनके हाथ से विधानसभा की सदस्यता चली गई। वहीं अब अपने मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए उन्हें छह महीने के अंदर विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य होना जरूरी है।

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