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Face The Fact Rahul: अमेठी से राहुल गांधी के हारने की वजह आई सामने, क्षेत्र की जनता ने खोलकर रख दी पोल

rahul gandhi

अमेठी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट पर सबकी नजरें थीं। यहां राहुल गांधी एक बार फिर चुनाव लड़ रहे थे। अमेठी को राहुल का गढ़ कहा जाता था। 2014 के चुनाव में यहां से बीजेपी की स्मृति ईरानी हार गई थीं। वो फिर राहुल को चुनौती दे रही थीं। जब चुनाव के नतीजे आए, तो राहुल गांधी अमेठी का अपना गढ़ स्मृति से हार चुके थे। वो केरल के वायनाड से भी लड़े थे और वहां से जीतकर सांसद बने। स्मृति की जीत के बाद लोग चौंके। आज भी ये सवाल उठता है कि राहुल आखिर अमेठी का अपना पक्का गढ़ कैसे गंवा बैठे ? हिंदी अखबार ‘दैनिक हिंदुस्तान’ के रिपोर्टरों ने इसका खुलासा अब किया है। अखबार के रिपोर्टरों की टीम को अमेठी के लोगों ने ही बताया कि आखिर राहुल की जगह उन्होंने स्मृति ईरानी को क्यों चुना।

अखबार की टीम अमेठी के जगदीशपुर इलाके के एक गांव भी पहुंची। यहां के लोगों ने बताया कि राहुल गांधी ने सांसद रहते वक्त गांव को गोद लिया था। लोगों को उम्मीद थी कि राहुल की इस पहल से उनके गांव की तस्वीर बदलेगी, लेकिन राहुल कभी पलटकर यहां नहीं आए। इस गांव और आसपास न तो स्वास्थ्य सुविधाएं उन्होंने दिलवाईं और न शिक्षा की व्यवस्था की। लोगों ने राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा कि जो एक गांव को संवार नहीं सका, वो भला देश कैसे चलाएगा। एक और शख्स ने अखबार को बताया कि ग्राम पंचायत में ज्यादा बजट नहीं होता है। ऐसे में प्रधान चाहकर भी ज्यादा कुछ नहीं करा सकते। यहां आज भी हालात काफी खराब हैं। पेयजल की व्यवस्था के लिए पाइपलाइन नहीं बिछी है। गांव का पंचायत भवन खंडहर हो गया है और पंचायत सचिव पिछले 10 साल से इस ग्राम पंचायत में नहीं आए हैं।

गांव के लोगों ने रिपोर्टरों को बताया कि सांसद के तौर पर राहुल गांधी लगातार यहां से चुने जाते रहे। अगर वो चाहते, तो काफी कुछ कर सकते थे। बावजूद इसके राहुल ने उनकी बदहाली की तरफ आंखें मूंदे रखीं। एक व्यक्ति ने बताया कि जब राहुल ने गांव को गोद लिया, तो यहां की जमीन की नाप वगैरा ली गई थी, लेकिन हुआ कुछ नहीं। अब लोग मौजूदा सांसद और मोदी सरकार में मंत्री स्मृति ईरानी से काफी संतुष्ट हैं, लेकिन और सुविधाओं की उम्मीद कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि सांसद बनने के बाद स्मृति ने काफी कुछ अपने क्षेत्र के लिए किया है और करा भी रही हैं। उन्हें उम्मीद है कि एक दिन स्मृति की पहल से उनके गांव का नजारा भी बदलेगा।

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