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Javed Akhtar: ‘शिवसेना’ को दिखा जावेद अख्तर में वीर सावरकर का अक्स, मुखपत्र ‘सामना’ में बांधे तारीफों के पुल

jawed akhtar and shivsena

नई दिल्ली। हर मसले पर अपनी बेबाक राय रखने वाले मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने नासिक में साहित्य सम्मलेन के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी पर अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान उन्होंने अभिव्यक्ति के क्षेत्र में लेखकों के समक्ष में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए इनके समाधान भी सुझाए। इसके इतर उन्होंने सम्मेलन में शिरकत करने वाले लेखकों से अभिव्यक्ति की मशाल उठाकर आगे बढ़ने का आहान किया। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि आज की तारीख में अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता खतरे में है। कई पत्रकारों को दबाया जा रहा है। कमलकारों की कलम गुलाम हो चुकी है। कई मीडिया संगठनों पर ताला लग चुका है और बाकी के पत्रकारिय संगठन दबाव में काम करने पर मजबूर हैं और हैरानी तो इस बात को लेकर होती है कि हमारे समाज के कुछ लोग इस दबावतंत्र के नाम तारीफों के कसीदे पढ़ते हैं। वे खुद कई बार दबावतंत्र का शिकार हो चुके हैं, जिसका दर्द उनका जुबां पर साफ झलकता हुआ दिखा।

वहीं, जावेद अख्तर द्वारा इस सम्मेलन में दिए गए उनके वक्तव्यों को प्रकाशित करते हुए ‘सामना’ ने अपने लेख में उनके नाम तारीफों के पुल बांधे। ‘सामना’ ने जावेद अख्तर के संदर्भ में लिखा कि वे एक वाक्पटु किस्म के इंसान हैं। बता दें कि जावेद अख्तर ने अपने सम्मेलन में कहा था कि, “जो बात कहने से डरते हैं सब, तू वो बात लिख, इतनी अँधेरी थी न पहले कभी रात लिख।” सामना ने जावेद अख्तर के इस संबोधन को वीर सावरकर की सच्चाई श्रद्धांजली बताया है। स्वतंत्रता से पहले वीर सावरकर के उद्धरणों का जिक्र किया गया है। लिखा गया है कि उसी तरह आज जावेद अख्तर नेतृत्व कर रहे हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह वही सामना है  जिसने जावेद को आरएसएस और विश्व हिंदू परषिद की तुलना में तालिबानियों से करने पर उनकी आलोचना की थी  और  आज यही सामना उनके गुणगान गा रहा है।

इस बीच उन्होंने सम्मेलन में साहित्य की दुनिया में मराठा साहित्य की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए मराठी लेखकों को अपनी कलम में धार देने का आह्वान किया। जावेद साहब ने कहा कि मराठा कमलकारों के बिना साहित्य की कल्पना करना हिमाकत ही है। लिहाजा मैं सभी मराठी लेखकों से कहता हूं कि वे बंधक से आजादी पाते हुए हर मसले पर बेबाकी से अपनी राय दे। बेशक समस्याओं का अंबार अभी हमारे समक्ष मौजूद है, लेकिन हमें इन सभी से परे हटकर अपनी बेबाकी दिखानी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी देश के लोकतंत्र को मजबूत करने में कलमकारों की निर्णायक भूमिका रही हैं। लेखकों की महत्ता को कम नहीं आंका जा सकता है।

उन्होंने मराठी लेखकों से आह्न करते हुए कहा कि 100 दिन बकरी की तरह जीने से अच्छा है कि एक दिन शेर की तरह जीओ। उन्होंने मराठी साहित्यकारों को बेबाकी से हर मसले पर अपनी राय रकने का आहान किया है। स्वतंत्रता-पूर्व काल में सावरकर के अंदर के लेखक ने स्पष्ट लिखा था कि ‘कलम तोड़ो और हाथ में बंदूक उठा लो!’ लेकिन सावरकर के अलावा किसी ने बंदूक नहीं उठाई। जब लिखने और बोलने पर प्रतिबंध लगता है, तब लेखक मंडली सबसे पहले बचाव मुद्रा में आ जाती है और हम अपनी सीमा में हैं व तटस्थ हैं, ऐसा दिखाते हैं। श्री अख्तर ने साहित्यकारों की इसी नीति पर प्रहार किया है। पहले खरी-खरी बोलनेवालों को खतरनाक कहा जाता था। अब उन्हें देशद्रोही ठहराया जाता है। गौरतलब है कि जावेद अख्तर हर मसले पर अपनी बेबाक रखने के लिए जाने जाते हैं।

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