नई दिल्ली। 5 राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए दुखदायी बन गए हैं। कांग्रेस को राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार रिपीट होने की उम्मीद थी। कांग्रेस को ये भी उम्मीद थी कि मध्यप्रदेश की सत्ता से वो बीजेपी को उखाड़ फेंकेगी। वहीं, मिजोरम में कांग्रेस की जीत के दावे राहुल गांधी और पार्टी के अन्य नेताओं ने किए थे, लेकिन कांग्रेस सिर्फ तेलंगाना के विधानसभा चुनाव ही जीत सकी। उसने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी के हाथ सत्ता गंवा दी। मध्यप्रदेश में भी बीजेपी को उखाड़ फेंकने के राहुल गांधी के दावे गलत साबित हुए और अब मिजोरम में भी कांग्रेस की वोटरों ने दुर्दशा जारी रखी है। ऐसे में निश्चित तौर पर राहुल गांधी और कांग्रेस के तमाम बड़े नेता ये विचार जरूर कर रहे होंगे कि आखिर पार्टी से कहां गलती हुई।
कांग्रेस की असली दिक्कत अब शुरू हो सकती है। विपक्षी दलों के I.N.D.I.A. गठबंधन में उसकी स्थिति अब शायद उतनी मजबूत न रह जाए, जितनी राहुल गांधी और पार्टी के नेताओं ने पहले सोचा था। लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को अब या तो विपक्षी गठबंधन से मिलने वाली सीटों से ही संतोष करना होगा, या इस गठबंधन से अलग होकर अकेले लोकसभा चुनाव लड़ना पड़ेगा। अकेले दम पर लोकसभा चुनाव को कांग्रेस 2014 और 2019 में हार चुकी है। यूपी जैसे 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में कांग्रेस की हालत बहुत खराब है। पिछली बार यूपी से कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर सिर्फ सोनिया गांधी ही जीत सकी थीं। अमेठी को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, लेकिन 2019 में राहुल गांधी अमेठी सीट को बीजेपी की स्मृति इरानी ने हरा दिया था।
विधानसभा चुनाव में घनघोर पराजय के बाद अब कांग्रेस के खेमे में हलचल है। 6 दिसंबर को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने विपक्षी गठबंधन की बैठक बुलाई है। इस बैठक से पहले ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना, नेशनल कॉन्फ्रेंस, शरद पवार, टीएमसी और जेडीयू ने कांग्रेस को झटके देने वाले बयान दिए हैं। टीएमसी के नेता कुणाल घोष ने तो ये तक कहा है कि अब एकजुट विपक्ष का चेहरा ममता बनर्जी को बनाया जाना चाहिए। इससे साफ है कि 6 दिसंबर की बैठक में काफी गहमागहमी रह सकती है और कांग्रेस के साथ ही राहुल गांधी का भविष्य भी इसमें तय हो सकता है।