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Jammu & Kashmir: आखिर कश्मीर में क्यों है इतनी खामोशी, अलगाववादी हैं चुप, पाकिस्तान है परेशान

Kashmir Lockdown

नई दिल्ली। 21 मई का दिन हमेशा से आम कश्मीरियों के लिए दुख भरा दिन होता था। क्योंकि इस दिन अलगाववादियों द्वारा न केवल बंद का आह्वान किया जाता था बल्कि आम कश्मीरी के लिए दूध की बोतल के लिए भी घर से बाहर निकलना मुश्किल होता था। इस दिन कई अलगाववादी संगठन प्रदेश में विरोध प्रदर्शन करते थे, पाकिस्तान के झंडे फहराते थे और घाटी में विभिन्न कोनों से अनगिनत पथराव की घटनाएं सामने आती थी। लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। पूरी घाटी खामोश है। अलगाववादी संगठन कोई प्रदर्शन नहीं कर रहा है। इससे पाकिस्तान भी परेशान है कि आखिर घाटी में इस दिन इतनी शांति क्यों है।

इससे पहले घाटी में विरोध प्रदर्शन की व्यवस्था सैयद अली गिलानी समूह, मीरवाइज उमर फारूक समूह, अंद्राबी समूह और अन्य अलगाववादी नेता करते रहते थे। लेकिन जब नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली तो इन नेताओं के लिए जमीनी हालात मुश्किल होने लगे, मोदी ने न केवल इन नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज करना सुनिश्चित किया बल्कि सभी जेलों में बंद हैं। यही वजह है कि अब पिछले कुछ वर्षों से इस तरह का कोई विरोध, संगोष्ठी या अन्य चीजें घाटी में नहीं देखी जा रही हैं।

आज यानि 21 मई को ही घाटी में ऐसा क्यों होता था तो आपको बता दें कि आज अवामी एक्शन कमेटी के पूर्व चेयरमैन मीरवाइज फारूक अहमद और पीपुल्स कांफ्रेंस के संस्थापक चेयरमैन अब्दुल गनी लोन की बरसी है। लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है की घाटी में कोई हड़ताल या रैली नहीं हो रही है। पूरी तरह से अलगाववादी चुप्पी साधे बैठे हैं। सोशल मीडिया पर तो इन दोनों नेताओं का कहीं-कहीं जिक्र हो रहा है लेकिन घाटी की जमीन पर पूरी शांति है। अब ऐसे में घाटी में पसरी खामोशी पाकिस्तान की चिंता को लगातार बढ़ा रही है। इन दोनों नेताओं मीरवाइज फारूक अहमद और अब्दुल गनी लोन के परिवार की तरफ से भी किसी तरह की रैली या जलसे का आयोजन नहीं किया गया है।

इस खामोशी को लेकर जानकार बताते हैं कि घाटी में खामोशी के लिए कोरोना का बहाना बनाया गया हो लेकिन असली हकीकत ये है कि एनआइए और प्रवर्तन निदेशालय ने जिस तरह से अलगाववादियों के खिलाफ घाटी में कार्रवाई की है, यह उसका ही असर है। अलगाववादी नेताओं में एक किस्म का खौफ है वह दिल्ली के तिहाड़ जेल तक नहीं पहुंचना चाहते हैं क्योंकि इसके पहले जो वहां पहुंचे हैं वह बाहर आने को तरस रहे हैं। वहीं कश्मीर मामले पर पाकिस्तान के सुर भी नरम पड़ रहे हैं।

आपको बता दें कि कश्मीर में पसरी यह खामोशी किसी तुफान के आने का सूचक नहीं है बल्कि यह घाटी में धीरे-धीरे मजबूत होते लोकतंत्र का परिचायक है। इससे स्पष्ट हो गया है कि कश्मीर में शनै-शनै अलगाववाद की दुकान पर ताला लगता जा रहा है।

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