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Bhagat Singh Birthday: भगत सिंह के जन्मदिन पर जानिए शहीद-ए-आजम से जुड़ी कुछ खास बातें

नई दिल्ली। देश भर में  आज बुधवार यानी 28 सितंबर को आजादी के मतवाले और मुस्कुराते हुए फांसी पर झूल जाने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती मनाई जा रही है। भारत माता के इस वीर सपूत की जयंती के उपलक्ष्य में देश भर में तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित हो किए जा रहे हैं। इस दिन को खास बनाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से भी लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। चंडीगढ़ हवाई अड्डे का नाम बदल कर ‘भगत सिंह अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट’ कर दिया गया है। आज के दिन लोग शहीद भगत सिंह को याद करते हुए आपस में उनके विचार शेयर कर रहे हैं। इस खास मौके पर आइए आपको भगत सिंह से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में बताते हैं…

1.शहीद भगत सिह का जन्म पंजाब में लायपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर, 1907 को हुआ था।

2.उनके पिता का नाम किशन सिंह और मां का नाम विद्यावती था।

3.भगत सिंह के पिता किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे।

4.शहीद भगत सिंह की शिक्षा लाहौर के डीएवी हाई स्कूल में हुई।

5.13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन हुए जलियांवाला बाग ने 12 साल के भगत सिंह पर इतना गहरा असर पड़ा था कि उन्होंने जलियांवाला बाग की रक्त रंजित धरती की कसम खाते हुए शपथ की थी कि वो अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आजादी की आग लगाएंगे। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़कर ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना कर डाली थी।

6.भगत सिंह ने स्वतंत्रता सेनानी सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को भी अंजाम दिया था।

7.उन्होंने राजगुरु और चन्द्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ ऑफिसर जेपी सांडर्स को भी मारा था।

8.उन्होंने 8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में अंग्रेज़ सरकार को नींद से जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे।

9.सिख होने के बावजूद अपनी योजना को अंजाम देने के उद्देश्य से अपनी पहचान छिपाने के लिए भगत सिंह ने दाढ़ी और बाल काट लिए थे।

10.भगत सिंह द्वारा दिया गया नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ ने आजादी की लड़ाई में युवाओं में खूब जोश भरा। इसका जिक्र वो अपने हर भाषण और लेख में करते थे।

11.7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई थी।

12.भगत सिंह को 24 मार्च 1931 को फांसी देने का निर्णय लिया गया था, लेकिन अंग्रेज इतना डरे हुए थे कि उन्हें तय समय से 11 घंटे पहले ही यानी 23 मार्च 1931 को 7:30 बजे उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया था।

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