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Economic Crisis in China: भारत से पंगा लेने वाले चीन की हुई बुरी दुर्गति, दूसरे देशों को कर्जा देते-देते क्या हो गया कंगाल? हो सकती है श्रीलंका जैसी हालत

नई दिल्ली। यह दुर्भाग्य है कि कभी-कभी किसी लोकतांत्रिक देश में भी सरकार अपने जेहन में यह मुगालते पाल बैठती हैं कि उनका शासन शाश्वत रहने वाला है, लिहाजा अब उन्हें अधिकार मिल गया है, कोई भी फैसला लेने का। उन्हें अधिकार है, देश की आर्थिक व्यवस्थाओं का पलीता लगाने का। उन्हें अधिकार है, लोगों के अधिकारों को कुचलने का। उन्हें अधिकार है, लोगों के भविष्य के साथ खेलने का। लेकिन वो कहते हैं ना कि किसी भी राजनीतिक व्यवस्था में अंतिम शासन व्यवस्था शक्ति अगर किसी के पास होती है, तो वो जनता होती है, लिहाजा अगर जनता का रोष अपने चरम पर पहुंच गया, तो जलजला उठाना तय माना जाता है, जैसा कि बीते दिनों श्रीलंका में देखने को मिला था। श्रीलंका में सरकार की कूनीतियों के खिलाफ जनता सड़क पर आ गई। सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नतीजा यह हुआ रानिल विक्रमसिंघे से लेकर गोटबाया राजपक्षे तक को अपनी सत्ता गंवानी पड़ गई।

अब आप बतौर पाठक यह सब कुछ पढ़ने के बाद मन ही मन सोच रहे होंगे कि आखिर आप हमें श्रीलंका की आर्थिक दुश्वारियों से क्यों रूबरू करवा रहे हैं। तो आपको बता दें कि श्रीलंका जैसी स्थिति अब चीन में भी देखने को मिल सकती है। विशेषज्ञों की मानें तो कई देशों को आर्थिक मदद देते-देते अब चीन का आर्थिक खजाना अब खत्म होने की कगार पर आ चुका है। हालात अब ऐसे हो चुके हैं कि चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भी खत्म हो चुका है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर चीन में यह सिलसिला यूं ही जारी रहा, तो आगामी दिनों में चीन में भी श्रीलंका जैसी स्थिति देखने को मिल सकती है। हालांकि, अभी-भी चीन के कई इलाकों में शी जिनपिंग सरकार की कूनीतियों के खिलाफ मोर्चा खोला जा चुका है। आइए, हम आपको कुछ उन प्रोजेक्ट्स के बारे में विस्तार से बताते हैं, जो कि चीन को आर्थिक गर्त में ढकलने में अहम माने जा रहे हैं।

आपको बता दें कि चीन में 1949 में बीआरआई सबसे बड़ी योजना थी। इस योजना के अंतर्गत चीनी सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की थी। जिसका कथित तौर पर मुख्य मकसद देश में विकास की बयार बहाना था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस योजना के अंतर्गत चीनी सरकार ने कई देशों को आर्थिक मदद मुहैया कराई थी। चीन सरकार का मानना था कि ऐसा करके वो दूसरे देशों के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ कर सकता है। हालांकि, 2013 में इस योजना को पहली बार प्रस्तावित किया गया था। इसके बाद इस योजना के अंतर्गत कई विकासशील देशों को 800 बिलियन से भी अधिक की अदायगी की गई थी। वहीं, न्यूयॉर्क स्थित एक रिसर्च ग्रुप रोहडियम की मानें तो चीन के बैंकों ने साल 2020 और 2021 में 52 बिलियन डॉलर का कर्ल दिया था। पहले दो वर्षों की तुलना में ये 16 फीसदी ज्यादा था।

उधर, अगर चीन के बैंकों की बात करें, तो वे अपने ग्राहकों को पैसे देने की स्थिति में नहीं हैं। बीते दिनों चीन के हेनान प्रांत में लंबी कतारें देखने को मिली थी। ये सभी लोग अपना रकम लेने की जद्दोजहद में लगे हुए थे, लेकिन बैंक इनके पैसे वापस देने की स्थिति में नहीं दिख रहा था। जिसकी वजह से कई ग्राहकों ने बैंक के खिलाफ अपने रोष का प्रदर्शन भी किया। उधर, चीन की कई कंपनियों में ताले जड़े जा चुके हैं। बेरोजगारी अपने चरम पर पहुंच चुकी है। लोगों के पास नौकरियां नही हैं। वहां रहने वाले युवाओं को अपना भविष्य अब अंधकारमय नजर आ रहा है। कई जगहों पर शी जिनपिंग के खिलाफ युवाओं में रोष भी देखने को मिल रहा है। कई जगहों पर युवा वर्ग खुलेआम शी जिनपिंग सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए नजर आ रहे हैं। लेकिन, चीन में बदहाल स्थिति यथावत जारी है। अब ऐसे में सरकार आगामी दिनों में वहां की बदहाल स्थिति को दुरूस्त करने की दिशा में क्या कुछ कदम उठाती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।

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