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Uyghur Muslims: चीन अब ऐतिहासिक ग्रंथों को लेकर ढा रहा है कहर, लिख रहा जुल्म की नई इबारत

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नई दिल्ली। वैसे तो हम सभी चीन की उइगर मुसलमानों के प्रति अत्याचार से भली-भांति परिचित हैं। आए दिन हम इससे संबंधित खबरें सुनते रहते हैं, लेकिन अब खबर है कि चीन ने उनपर अत्याचार का नया तरीका ढूंढ निकाला है। वह अब उइगर मुसलमानों को ऐतिहासिक ग्रंथों को रखने के लिए निशाना बना रहा है। इसी को लेकर चीन ने पिछले साल एक व्यक्ति को उम्रकैद की सजा दी थी, क्योंकि उसके पास 1940 के दशक के दो चित्र मिले थे। आप सोच रहे होंगे कि इतनी छोटी बात के लिए चीन ऐसा क्यों करेगा..तो जनाब आइए जानते हैं कि बात क्या है?

चीन की आत्मसातवादी नीति

चीन द्वारा ऐतिहासिक ग्रंथों को लेकर अपनाई गई कठोरता इस बात की ओर इशारा है कि वह उइगर मुसलमानों को नियंत्रित करना चाहता है। वह उन्हें नए आकार में ढालना चाहता है। यह उसी आत्मसातवादी नीति का हिस्सा है, जिसके मुताबिक वह मंगोलियाई, तिबत्तन, और विभिन्न नृजातीय समूहों को साधता रहा है। बहुत सारे मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक चीन ने करीब 10 लाख से भी अधिक उइगर मुसलमानों को डिटैंशन कैंप में बंद किया है, और वहां उनपर पुनर्शिक्षण के नाम पर कठोरता बरत  रहा है। शिंझियांग प्रांत में चीन पर यह आरोप लगता रहता है, कि वह उइगर मुसलमानों का नरसंहार करता  है। हालांकि, वह इससे इंकार करता है।

बदली नीति के नाम पर ज्यादती

चीन ने अपने छात्रों को ऐतिहासिक ग्रंथों, धरोहरों को देखने, सुनने, और उसपर मनन करने से वंचित किया हुआ है। चीन ने अपना इतिहास भी बदल दिया है। छात्र वही सब पढ़ समझ सकते हैं, जो चीनी सरकार चाहती है। ऐसे में, ऐतिहासिक ग्रंथों को निशाना बनाना चीन का मकसद रहता है। और जिसके पास भी यह मिलता है, उसकी खैर नहीं रहती। समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, चीन ने जिस व्यक्ति को उम्रकैद की सजा दी थी, वह चीन के पुरातन विचारों का समर्थक था। उसके पास से 1940 के दशक के दो चित्र मिले थे, जो सरकार के लिए हानिकारक हो सकते थे।

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