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Martial Law Imposed In South Korea : दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति यून सुक योल ने किया मार्शल लॉ का ऐलान, विपक्ष पर गंभीर आरोप

नई दिल्ली। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल ने आज (3 दिसंबर 2024) देश में आपातकालीन मार्शल लॉ लागू करने की घोषणा की। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह संसद को नियंत्रित करने, उत्तर कोरिया के साथ सहानुभूति रखने और सरकार को कमजोर करने वाली गतिविधियों में शामिल है। यह घोषणा राष्ट्रपति द्वारा एक टेलीविज़न ब्रीफिंग के दौरान की गई, जो देश में जारी राजनीतिक संकट की गंभीरता को उजागर करती है।

राष्ट्रपति यून सुक योल, जो मई 2022 में पदभार संभालने के बाद से विपक्ष-नियंत्रित नेशनल असेंबली की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, ने इस कदम को “संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा के लिए आवश्यक” बताया। हालांकि, इस कदम से शासन और लोकतंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर चिंता जताई जा रही है।

विपक्ष ने लगाए थे आरोप

इस घोषणा से पहले, विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ कोरिया ने राष्ट्रपति यून पर सत्ता का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ महाभियोग की मांग की थी। विपक्ष का कहना है कि मार्शल लॉ की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा महाभियोग से बचने के लिए की गई है। विपक्षी नेता ली जे-म्युंग ने इसे “पूर्ण तानाशाही” का मार्ग प्रशस्त करने वाला कदम करार दिया।

यून ने विपक्ष पर झूठ फैलाने का लगाया आरोप

राष्ट्रपति कार्यालय ने विपक्ष के इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे “मनगढ़ंत प्रचार” बताया। यून का कहना है कि विपक्ष जनता की राय को प्रभावित करने के लिए झूठ फैला रहा है। प्रधानमंत्री हान डक-सू ने भी इन आरोपों का खंडन किया और कहा कि दक्षिण कोरियाई लोग लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन करते हैं और इस तरह के दुष्प्रचार को स्वीकार नहीं करेंगे।

राष्ट्रपति यून और विपक्ष के बीच तनाव 1987 के बाद से चरम पर है। यून ने नए संसदीय कार्यकाल के उद्घाटन समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया था, जिससे उनके और विपक्ष के बीच संबंध और बिगड़ गए। राष्ट्रपति कार्यालय ने इसे विपक्ष द्वारा चल रही जांच और महाभियोग की धमकियों का परिणाम बताया था।

लोकतंत्र के लिए बड़ा सवाल

मार्शल लॉ की यह घोषणा दक्षिण कोरिया के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ हो सकती है। जहां एक ओर इसे देश की सुरक्षा और संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा के लिए आवश्यक बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसे लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता के लिए खतरा माना जा रहा है।

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