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Russia Ukraine Conflict: ‘नींद’ में पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी, रूस की बजाय यूक्रेन से बोले- पीछे करो अपनी सेना, वार्ता के जरिए खत्म होगा युद्ध

shah mehmud kureshi

नई दिल्ली। बीते कुछ समय से रूस और यूक्रेन के बीच जारी विवाद अब युद्ध का रूप ले चुका है। दोनों देशों के बीच जंग अपने चरम पर है। हालांकि यूक्रेन की तरफ से बार-बार वार्ता का प्रस्ताव दिया जा रहा है लेकिन रूस है कि अब जुबां की बजाय जंग से बात कर रहा है। बीते हफ्ते गुरूवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आदेश पर यूक्रेन पर हमला शुरू कर दिया गया था। आज सोमवार, 2 फरवरी को इस युद्ध का पांचवा दिन है। रूसी सेना की तरफ से यूक्रेन को पूरी तरफ से घेर लिया गया है। यूक्रेन (Ukraine) को निशाना बनाते हुए रूसी सेना ने राजधानी कीव पर कब्जे करने की कोशिश करनी शुरू कर दी है। रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव को लेकर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी (Pakistan Foreign Minister Shah Mahmood Qureshi) ने एक अजीबो गरीब बात कह दी है।

दरअसल, हुआ कुछ यूं है कि दोनों देशों के बीच जारी विवाद से बीते कई महीनों पहले से ही रूसी सेना यूक्रेन की सीमा पर तैनात थी। रूसी सेना के यूक्रेन की सीमा होने पर से माना जा रहा था कि कभी भी इनमें जंग छिड़ सकती है और हुआ भी कुछ ऐसा ही। दोनों देशों के बीच जंग को आज पांचवा दिन है। लेकिन सोचने वाली बात तो ये है कि रूस, यूक्रेन पर हमला कर रहा है और पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने रूस की बजाय उलटा यूक्रेन से सेना पीछे खींचने को कह दिया है। कुरैशी के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर यूजर्स ऐसा कह रहे हैं कि क्या कुरैशी नींद में हैं जो रूस को समझाने की बजाय यूक्रेस से ही पीछे हटने के लिए कह रहा है।

आपको बता दें, पाकिस्तानी मंत्री कुरैशी ने यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा से फोन पर बातचीत की है। कुरैशी ने इस दौरान उन्होंने अपनी बातचीत में ‘डी-एस्केलेशन के महत्व’ (सैनिकों को पीछे खींचने की प्रक्रिया) को रेखांकित किया। यूक्रेन के कुलेबा के साथ पाकिस्तानी मंत्री की टेलीफोन पर बातचीत के बारे में विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘विदेश मंत्री कुरैशी ने पाकिस्तान के विचारों को साझा किया है। उन्होंने स्थिति पर गंभीर चिंता को दोहराते हुए डी-एस्केलेशन के महत्व को रेखांकित किया और कूटनीति की अनिवार्यता पर बल दिया है।’ कुरैशी ने कहा, ‘संघर्ष किसी के हित में नहीं होते और इससे हमेशा विकासशील देश आर्थिक रूप से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।’

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