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खलीफा बनने की कोशिश कर रहे तुर्की की निकल गई सारी हेकड़ी, आर्थिक तंगी से हुआ बुरा हाल, जनता से करनी पड़ी अपील..

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जब कोई ओहदेदार आलिम शख्स किसी चर्चित मसले पर अपनी राय देता है, तो लोगों के जेहन में उसके ख्यालों की जानने की आतुरता पैदा होती है। अमूमन, ऐसे ओहदेदारों लोगों के ख्यालात पूरे समाज को कई मोर्चों पर प्रभावित करते हैं, लिहाजा लोगों में ऐसे आलिमों द्वारा पेश किए गए ख्यालातों को जानने की आतुरता लाजिमी है। कुछ ऐसे ही ख्यालात तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोऑ की पार्टी के सांसद डेमरिबाग ने मांस खाने को लेकर दिए तो सहसा उनका विरोध शुरू हो गया। विरोधी दलों के नुमाइंदों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। दरअसल, उन्होंने तुर्की के नागरिकों को पहले की तरह ज्यादा की मात्रा में नहीं, बल्कि कम मात्रा में मांस खाने का सुझाव दिया। जिसे लेकर लोग तुर्की समेत अन्य देशों में अलग-अलग मायनों के तहत अपनी प्रतिक्रिया देते हुए नजर आ रहे हैं। हम आपको इस पूरे मसले के बारे में सब कुछ बताएंगे, लेकिन उससे पहले आइए हम आपको तफसील से बताते हैं कि आखिर इन्होंने अपने बयान क्या कहा है?

…तो तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोऑ के पार्टी के सांसद डेमरिबाग ने अपने देश के नागरिकों से मांस न खाने की अपील करते हुए कहा कि, ‘हम 1-2 किलो मांस खाने के बजाय आधा किलो मांस खाए। उन्होंने कहा कि हम अगर 2 किलोग्राम टमाटर खरीदते हैं, तो बाकी का कूड़ेदान में फेंक देते हैं। अब आप लोग सिर्फ दो ही टमाटर खरीदे। पढ़ लिया आपने पूरा बयान। तो इसे पढ़ने के बाद यही सोच रहे हैं न कि आखिर किसको कितना खाना है और क्या खाना है। आखिर यह सब तय करने वाले वे कौन होते हैं। यह तो किसी भी देश में रहने वाले नागरिकों के अपने निजी सोच  विचार के आधार पर लिया गया व्यक्तिगत फैसला होता है, तो ऐसे में कोई सरकार या सरकार का कोई मंत्री इसमें कैसे हस्तक्षेप कर सकता है। दरअसल, उनके बयान का पूरा सरोकार देश की आर्थिक व्यवस्था व अर्थव्यवस्था में पनप रही वित्तीय संकट से हैं। आइए, आगे इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

डांवाडोल हुई देश की अर्थव्यवस्था

दरअसल, वर्तमान हालात में तुर्की की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो चुकी है। सारी गतिविधियां थम चुकी है। देश के वित्तीय मंत्री के लिए आर्थिक बदहालियों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक नीतियां बनाने में कई समस्याएं आ रही है। आर्थिक मोर्चे पर देश का आर्थिक भविष्य गर्त में दिख रहा है। यह सिलसिला देश में दीर्घावधि से जारी है। अब सरकार के समक्ष में देश की आर्थिक दुश्वारियों को विराम देने की सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसी आर्थिक बदहाली के दौर में कुछ ऐसे लोग प्रकाश में आए हैं, जो देश के संसाधनों को जाया कर रहे हैं, जिसे ध्यान में रखते तनिक तल्खिया लहजे में डेमरिबाग द्वारा दिया गया बयान काफी प्रासंगिक माना जा रहा है। लेकिन कुछ तुर्की में अब डेमरिबाग द्वारा दिए गए बयान को लेकर  कुछ  लोगों की सख्त प्रतिक्रिया भी देखने को मिल रही है। उनका मानना है कि डेमरिबाग ने अपने इस बयान के जरिए देश के लोगों का मजाक उड़ाया है।

उनकी भावनाओं व उनकी दिलचस्पी के साथ खिलवाड़ किया है। इन्हीं तल्ख प्रतिक्रिया देने वालों में से मुख्य रिपब्लिकन पार्टी के प्रवक्ता फैक ओज़्ट्रैक भी हैं। उन्होंने डेमरिबाग के बयान पर अपना रोष जाहिर कर कहा कि वे लोगों को कम मात्रा में मांस व अन्य उत्पादों का उपभोग करने के सुझाव देकर उनकी आर्थिक बदहाली व देश की नीतियों का मखौल उड़ा रहे हैं। उन्होंने डेमरियाग के बयान पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि आखिर आप होते कौन हैं ये तय करने वाले कि किसको क्या खाना है और किसे क्या नहीं खाना और कितनी मात्रा में खाना है। वर्तमान में नाजुक आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए आपका पूरा फोकस इसे सबल करने पर होना चाहिए, लेकिन आप अपने उलजुलूल बयानों से यह जाहिर कर दे रहे हैं कि आप इस संवेदनशील समय में देश को शाषित करने की स्थिति में नहीं हैं।

तुर्की की आर्थिक बदहाली का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि विदेशी मुद्रा में तुर्की के बाजार में करीब 20 फीसद की गिरावट आई है। निवेश का स्तर बेहद कम हो चुका है। कलकार खानों में निवेश के अभाव में कार्यरत लोग बेहाल हो चुके हैं। ऐसे में सांसद का यह बयान बेतुका मालूम पड़ता है। तुर्की में वहाँ की मुद्रा 11, 12 और फिर 13 डॉलर की सीमा से गिर गई, जिससे उत्पादकों के लिए अपने उत्पादों की कीमत तय करना असंभव हो गया। अब ऐसी स्थिति में सरकार की कार्यप्रणाली का वहां की आर्थिक स्थिति पर आगे चलकर क्या कुछ असर पड़ता है। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा।

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