नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध अब एक खतरनाक मोड़ ले सकता है। खबर है कि इस युद्ध में Biological War यानी जैविक हमले तक बात पहुंच चुकी है। रूस का आरोप है कि यूक्रेन ने अमेरिका के मदद से जैविक हथियारों का निर्माण कर लिया है, और अब वह उसके खिलाफ उन जैविक हथियारों का प्रयोग कर सकता है। हालांकि, इस बात में कितनी सच्चाई है अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। यूक्रेन के पास जैविक हथियार हैं या नहीं, ये बात पूरी तरह से साफ नहीं है। हालांकि, ये साफ है कि यूक्रेन में अमेरिका की मदद से कई बायोजिकल लैब्स चल रही हैं, इस बात को अमेरिका की सरकार भी मान चुकी है। लेकिन यहां हमें यह जान लेना चाहिए कि आखिर जैविक हथियार होते क्या हैं? और ये कितने घातक हो सकते हैं? आज की कहानी इसी पर केंद्रित..
हथियारों में विस्फोटक नहीं बल्कि इन चीजों का होता है इस्तेमाल
दरअसल, जैविक हथियार वे हथियार होते हैं, जिनमें विस्फोटक के बदले विभिन्न प्रकार के घातक सूक्ष्म से सूक्ष्म हानिकारक जीवों का इस्तेमाल होता है। इनमें वायरस, बैक्टीरिया, फंग्स के अलावा जहरीले पदार्थों का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार के जैविक हथियारों के हमलों से लोग गंभीर रूप से बीमार होने लगते हैं, काफी बड़ी संख्या में लोग मौत के मुंह में समाने को अभिशप्त हो जाते हैं। इस प्रकार के हमले से शरीर पर खतरनाक रिएक्शंस होने शुरू हो जाते हैं, इसकी वजह से होने वाले भयानक नतीजों में मनुष्य विकलांग हो सकता है, मानसिक रूप से विक्षिप्त हो सकता है। और एक बात कि इसका असर काफी कम समय में बहुत बड़े क्षेत्र पर होता दिखाई देता है।
और आसान भाषा में समझिए जैविक हथियारों को
ऊपर में तो हमने जैविक हथियारों के तकनीकी भाषा को आसान भाषा में आपको समझाने की, अब आपको उदाहरण के साथ व्यवहारिक भाषा में समझाने का प्रयास करते हैं। आपको कोरोना तो याद ही है, हम इसी का उदाहरण जैविक हथियारों को समझने के लिए ले सकते हैं। चीन के वुहान लैब से निकला कोरोना वायरस पूरी दुनिया को अपना असर दिखा चुका है। करोड़ो लोगों को मौत के मुंह में समा देने वाले इस वायरस को आप चीन द्वारा बनाया गया जैविक हथियार कह सकते हैं, हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। लेकिन आप एक मिसाल लें कि यदि चीन किसी देश के साथ युद्ध में उलझा होता और उसने बजाय विस्फोटक हथियारों के इस्तेमाल के, इसी वायरस को जो उसके वुहान शहर के एक लैब में विकसित हुआ था का इस्तेमाल कर देता तो चीन के साथ युद्ध में उलझा वह देश इस वायरस से उत्पन्न दुश्वारियों में फंस जाता और वहां त्राहि-त्राहि मच जाता। आप देखिए की चीन के वुहान शहर के एक लैब से निकला वह अकेला वायरस कितना खतरनाक हो सकता है कि पूरी दुनिया को उसके प्रभाव के सामने मतमस्तक होना पड़ा है।
सैकड़ों साल पुराना है जैविक हथियारों का इतिहास
पुराने ज़माने में आपने जरूर युद्ध के दौरान दुश्मन के इलाको के तालाबों और कुओं में ज़हर मिलाने की घटना सुनी होंगी, लेकिन पहली बार जैविक हमले की बात छठी शताब्दी से आती है जब मेसोपोटामिया के अस्सूर साम्राज्य के सैनिकों ने दुश्मन इलाके के कुओं में एक ज़हरीला फंगस डाल दिया था, जिससे बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा यूरोपीय इतिहास में तुर्की और मंगोल साम्राज्य ने भी जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया था। सन् 1347 में मंगोलियाई सेना ने बीमार जानवरों को दुश्मन इलाके में तालाब और कुओं में फिकवा दिया था जिससे प्लेग महामारी फैल गई थी, इतिहास में इसे ब्लैक डेथ (Black Death) के नाम से जाना जाता है। इससे 4 साल के अंदर यूरोप में ढाई करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद 20वीं शताब्दी में हुए पहले विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी ने पहली बार जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया था, इस हमले के लिए जर्मनी ने एंथ्रेक्स और ग्लैंडर्स बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया था। इसके बाद 1939 से 1945 के दौरान घटे दूसरे विश्वयुद्ध में जापान ने चीन के खिलाफ जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया था। और अब रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में एक बार फिर इसकी आहट होने लगी है।
जैविक हथियारों के निर्माण और प्रयोग पर रोक को लेकर हो चुके हैं कई कंवेशंस
जैविक हथियारों के भयावहता को लेकर सबसे पहले 1925 में जिनेवा प्रोटोकॉल के तहत कई देशों ने इन हथियारों के नियंत्रण के लिए बातचीत शुरू की, इसके बाद 1972 में BWC यानी बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन की स्थापना की गई। 26 मार्च 1975 को 22 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए। आज करीब 183 देश इसके सदस्य देश हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। हालांकि, देखा जाए तो जैविक हथियारों के उपयोग न करने की कसम खाने वाले देश आज भी इस तरह के हथियारों के निर्माण में लगे हुए हैं।