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Rath Yatra 2022: जगन्नाथ रथ यात्रा में सोने की झाड़ू से की जाती है सफाई, दुनिया की सबसे बड़ी रसोई में बनता है प्रसाद, जानिए मंदिर से जुड़े कई अद्भुत रहस्य

नई दिल्ली। देश में हर साल तमाम तरह के पर्व मनाए जाते हैं। उन्हीं में से एक तिथि आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि है। जब ओड़िशा के पुरी में भगवान जगन्‍नाथ की बड़े धूम-धाम से यात्रा निकाली जाती है। इसे देश भर के लोग उत्सव के रूप में मनाते हैं। इस यात्रा में श्री जगन्नाथ के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा की भी यात्रा निकाली जाती है। इसे ‘रथयात्रा’ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस यात्रा के द्वारा तीनों अपनी मौसी के घर जाते हैं। इस साल ये यात्रा 1 जुलाई को निकाली जाएगी। दो सालों बाद इस यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। दो सालों तक कोरोना के चलते इस यात्रा को केवल स्थानीय औपचारिकता निभाने भर के लिए निकाला गया था। लेकिन इस बार पूरी भव्यता और उत्साह के साथ फिर से निकाला जाएगा। इस रथ यात्रा को पुरी में जगन्‍नाथ मंदिर से निकाला जाएगा। यात्रा के दौरान सबसे आगे भगवान बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा और सबसे पीछे जगन्‍नाथजी का रथ निकाला जाएगा। रथ यात्रा का समापन 12 जुलाई को होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान हमेशा कई नियमों का पालन किया जाता है। साथ ही बहुत सी विधियां और परम्पराएं सदियों से निभाई जा रही हैं, जो काफी रोचक और अद्भुत हैं। उन्हीं परंपराओं में से एक है सफाई के लिए सोने की झाड़ू का इस्तेमाल करना। तो आइये जानते हैं आखिर क्या है इस प्रथा को निभाने के पीछे की कहानी, साथ ही जगन्नाथ मंदिर से जुड़े कुछ अन्य रोचक तथ्य…

1.कहा जाता है जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा झंडा काफी अनोखा है, क्योंकि यहां पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता रहता है।

2.यहां पर दोपहर के किसी भी समय मंदिर के शिखर की परछाई नहीं बनती है।

3.मंदिर परिसर में बनी रसोई को विश्व की सबसे बड़ी रसोई का दर्जा दिया जाता है, जहां पर कुल 752 चूल्हे मौजूद हैं, जिनमें महाप्रसाद का तैयार किया जाता है। इस प्रसाद को मिट्टी के सात बर्तनों में एक-दूसरे के ऊपर रखकर बनाया जाता है। इसमें सबसे खास बात ये है कि सबसे ऊपर के बर्तन का खाना पहले और सबसे नीचे रखे बर्तन का खाना बाद में पकता है। प्रसाद बनाने के लिए रसोईघर के पास स्थित दो कुएं जिन्हें गंगा व यमुना कहा जाता है, के पानी का इस्तेमाल किया जाता है।

4.यहां पर जलने वाली अग्नि कभी बुझती नहीं है।

5.कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर न तो कभी कोई पक्षी बैठता है और न ही कोई विमान मंदिर के ऊपर से निकलता है।

6.मंदिर के शिखर पर लगा सुदर्शन चक्र किसी भी कोने से देखने पर हमेशा एक जैसा ही लगा दिखाई पड़ता है।

7.तीनों रथों के तैयार होने के बाद इसकी पूजा की जाती है। इसके लिए पुरी के गजपति राजा की पालकी आती है, वो इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं। इस विशेष पूजा अनुष्ठान को ‘छर पहनरा’ कहते हैं। रथ मण्डप और यात्रा वाले रास्ते को ‘सोने की झाड़ू’ से साफ किया जाता है।

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