नई दिल्ली। पूरे देश में होली का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। लोग होली के कई दिन पहले से ही रंगों से सराबोर रहते हैं। होली न केवल कृष्ण नगरी मथुरा, वृंदावन, बरसाना में काफी पहले से मनानी शुरू हो जाती है, बल्कि धर्म की नगरी काशी में होली ‘रंगभरी एकादशी’ से ही शुरू हो जाती है। ये रंगभरी एकादशी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। वैसे तो सामान्य तौर पर इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी साल की अकेली ऐसी एकादशी है, जिसमें भगवान शिव की पूजा की जाती है। ये एकादशी ‘रंगभरी एकादशी’ के नाम से जानी जाती है। काशीवासी सबसे पहले अपने ईष्ट भोले बाबा के साथ महाशमशान पर चिता भष्म से होली खेलते हैं उसके बाद ही होली के त्योहार की शुरूआत करते हैं। कहा जाता है कि मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाशमशान हरिश्चंद्र घाट पर चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती, क्योंकि वहां हमेशा शवयात्राओं के आने का सिलसिला चलता रहता है और चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं। चारों ओर पसरे मातम के बीच साल में रंगभरी एकादशी का दिन ही ऐसा होता है, जब महाशमशान पर काफी हर्षोल्लास का माहौल होता है।
वाराणसी में आज यानी 14 मार्च सोमवार को रंग भरी एकादशी के मौके पर श्मशान घाट पर चिता की भस्म से होली खेली गई। होली के दौरान लगातार डमरू, घंटे, घड़ियाल और मृदंग बजते रहे। काशी में इस दिन रंग-गुलाल के अलावा चिता की भस्म उड़ाकर होली खेलने की प्रथा है। बताया जाता है कि रंगभरी होली की मान्यता 350 साल से भी पुरानी है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शंकर मां पार्वती का गौना कराकर काशी लाए थे। इसके बाद उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी, लेकिन श्मशान पर बसने वाले अपने प्रिय भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ वे होली नहीं खेल पाए थे।
Devotees celebrate Rangbhari Ekadashi at Kashi Vishwanath Temple in Varanasi. #rangbhariekadashi #kashi #varanasi pic.twitter.com/FAGSLDPQFH
— The Sanatan Uday (@TheSanatanUday) March 25, 2021
इसलिए रंगभरी एकादशी से शुरू होने वाले होली पर्व में विश्वनाथ इन्हीं के साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं। इस दिन खुशी में मां पार्वती का रंग-गुलाल उड़ाकर भव्य स्वागत किया जाता है। 6 दिन तक चलने वाले इस पर्व पर भगवान शंकर के साथ-साथ आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है, इसलिए रंगभरी एकादशी को ‘आमलकी एकादशी’ भी कहते हैं।
इस दिन पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भक्तों को अच्छे स्वास्थ्य और सौभाग्य की भी प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस दिन सोने या चांदी से बनी अन्नपूर्णा की मूर्ति के दर्शन करना भी काफी शुभ माना जाता है। काशी की इस होली की शुरूआत हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से होती है। इससे पहले बाबा की शोभायात्रा भी निकाली जाती है। बाबा की शोभायात्रा ‘कीनाराम आश्रम’ से निकलकर महाश्मशान ‘हरिश्चंद्र घाट’ आती है। इसके बाद महाश्मशान नाथ की पूजा और आरती होती है, इसके बाद बाबा अपने गणों के साथ चिताभस्म की होली खेलते हैं।