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Shardiya Navratri 2022 7th Day: मां कालरात्रि को समर्पित नवरात्रि के सातवें दिन इस विधि से करेंगे पूजा, तो प्राप्त होगी सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य

नई दिल्ली। देश भर में दुर्गा पूजा की धूम मची हुई है। वैसे तो दुर्गा पूजा बंगालियों का प्रमुख त्योहार है। लेकिन पूरे देश में इसे अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व पर भक्त व्रत रखकर नौ दिनों तक मां शक्ति के नौ स्वरूपों की उपासना करते हैं। आज नवरात्रि का सातवां दिन है और सप्तमी तिथि पर माता के 7वें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि की पूजा करने से हमेशा शुभ फल की प्राप्ति होती है यही कारण है कि इन्हें देवी ‘शुभंकरी’ के नाम से भी जाना जाता है। दुष्टों का विनाश करने वाली मां कालरात्रि तीन नेत्रों वाली देवी हैं। ऐसी मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा पूरे भक्ति भाव और विधि विधान से करने से भय, रोग अकाल मृत्यु, शोक आदि सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति मिलती है। तो आइए आपको बताते हैं कि माता की पूजा का शुभ मुहूर्त, मंत्र और पूजा-विधि क्या है…

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा ने शुम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज का वध करने के लिए कालरात्रि का रूप धारण किया था। उनका शरीर अंधकार की तरह काला है। मां कालरात्रि की श्वास से अग्नि निकलती है। उनके बाल लंबे और बिखरे हुए हैं। गले में मुंडों की माला है। मां के चार हाथ हैं, जिनमें से एक में तलवार, दूसरे में लौह अस्त्र, तीसरा हाथ अभय मुद्रा में और चौथा वरमुद्रा में है।

पूजा-विधि

1.सप्तमी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

2.इसके बाद पूजा स्थल को स्वच्छ कर गंगा जल छिड़कें।

3.इसके बाद माता के सामने घी का दीपक जलाएं।

4.अब माता को लाल रंग के फूल अर्पित करें।

5.मां कालरात्रि की पूजा में मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल, अक्षत, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ नैवेद्य आदि का शामिल करना आवश्यक होता है।

6.सप्तमी के दिन माता को गुड़ या उससे बने पकवान का भोग लगाना काफी शुभ होता है।

7.इसके बाद दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें।

8.अंत में माता के मंत्रों का जाप कर उनकी आरती कर उन्हें प्रणाम करें।

ध्यान मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।

वामपादोल्ल सल्लोहलता कण्टक भूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

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