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Rahu Kaal: क्या राहु काल में भी हो सकता है किसी तरह का यज्ञ, पूजा और हवन?

नई दिल्ली। वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहों का हमारे जीवन पर शुभ और अशुभ दोनों असर होता है। ग्रह अगर स्वगृही हों अपनी राशी के घर में हों और उच्च के हों तो यह आपके जीवन पर अच्छा असर करता है। लेकिन यह भी तभी संभव है जब इस ग्रह पर दूसरी किसी शत्रु या दुष्ट ग्रह की टेढ़ी नजर नहीं पड़ रही हो। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मानव के जीवन की सभी अच्छी और बुरी स्थितियां उनकी कुंडली के ग्रहों की दशा उसकी कुंडली के घर में उपस्थिति और उसके मान पर निर्भर करता है। ज्योतिष के अनुसार 9 में से 7 ग्रह कुंडली में घड़ी की दिशा में जबकि दो ग्रह घड़ी की विपरीत दिशा में चलते हैं। इनको ज्योतिष के अनुसार मार्गी और वक्री ग्रह कहा जाता है।

जो दो ग्रह कुंडली में वक्री चलते हैं, जिनको अशुभ ग्रह माना जाता है। वह है राहु और केतु। राहु को सांप का मुंह और केतु को उसकी पूंछ कहा जाता है। ये ग्रह कभी-कभी मानव जीवन में दशा के अनुसार शुभ फल भी देते हैं लेकिन मुलत: इन दोनों ग्रहों को अशुभ ग्रह ही माना जाता है।

लेकिन राहु काल में एक फायदा यह भी है कि इस समयावधि में अगर आप राहु से संबंधित कोई भी कार्य या पूजा करते हैं तो आपको उसका अनुकुल परिणाम मिलता है। ऐसे में राहु को प्रसन्न करने के लिए किया जानेवाला यज्ञ, हवन, पूजा अगर उस मुहुर्त में संपन्न कराया जाए तो उसका फायदा मिलता है।

दक्षिण भारत में मुलतः राहु की पूजा को ज्यादा महत्व दिया जाता है। इस काल में विवाह, किसी प्रकार के अनुष्ठान, गृह प्रवेश के कार्यक्रम, नए व्यापार की शुरुआत से बचने की सलाह दी जाती है। लेकिन इस सब के साथ इस बात को भी ध्यान में रखा जाता है कि कोई यज्ञ, हवन, पूजा अगर उस मुहुर्त से पहले शुरू हुआ है तो उसे जारी रखा जा सकता है।

हर दिन राहु का एक समय होता है। इस समय पर किसी भी तरह के शुभ कार्य को करने से बचना चाहिए। दिनभर में इसे संक्रमण का समय कहा जाता है। कहता हैं कि इस समयावधि में अपने शुभाशुभ के लिए किए जानेवाले पूजा, हवन, यज्ञ आदि का विपरित प्रभाव होता है। मान्यता के अनुसार राहु काल में किए गए किसी भी शुभ कार्य का मनोवान्धित परिणाम प्राप्त नहीं होता है। इसलिए किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य को करने से पहले राहु काल का विचार ज्योतिष में आवश्यक होता है। इससे अच्छे परिणाम की उम्मीद बढ़ जाती है।

राहु काल हर दिन एक निश्चित समयावधि का होता है। यह हर दिन लगभग डेढ़ घण्टे (एक घण्टा तीस मिनट) का होता है। यह हर दिन सूर्योदय तथा सूर्यास्त के बीच दिन के आठ खण्डों में से एक खण्ड है। चूकि पूरे देश में सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय में अन्तर होता है ऐसे में राहु काल की समयावधि भी हर जगह अलग-अलग होती है। वहीं हर दिन एक स्थान के लिए भी राहु काल की समय व अवधि समान नहीं होती है। सूर्य के उदय के साथ पहले खंड में राहु काल हमेशा शुभ माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार मान्यता है कि इस खंड को हमेशा राहु के प्रभाव से माना गया है। इसके साथ ही इस बात को भी ज्योतिष में मान्यता प्राप्त है कि सोमवार को राहु का प्रभाव दूसरे खंड में, मंगलवार को सातवें खंड में, बुधवार को पांचवे खंड में, गुरुवार को छठे खंड में, शनिवार को तीसरे खंड में, रविवार को 8वें खंड में इसके प्रभाव से मुक्त माना गया है।

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