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विज्ञान, चिकित्सा, आयुर्वेद के साथ ही इन हिंदू वैदिक मंत्रों का जाप बचा सकती है आपको संक्रमण से

किसी भी बीमारी से ग्रसित होने पर अक्‍सर लोग डॉक्‍टर के पास जाते हैं और उनकी सलाह के अनुसार दवाएं आदि लेते हैं। आज पूरी दुनिया जिस तरह से कोरोनावायरस के संक्रमण से कराह रही है। वैसे में हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शिव, माता शक्ति और मां गायत्री के मंत्रों के जाप से संक्रमण के प्रभाव को कम किया जा सकता है ऐसा वेदों में वर्णित है। ये मंत्र सकल जन के लिए कल्याणकारी और साथ ही मानवजन के हित में हैं ऐसा वेद बताते हैं। हमारे वेदों में देवताओं को इन खास मंत्रों के द्वारा प्रसन्न कर उनकी अराधना कर संपूर्ण समाज को आपदाओं से बचाने के तरीके बताए गए हैं।

आपने देखा होगा कि कई बार इलाज के बावजूद रोग दूर नहीं होते। बीमारी की मूल वजह दूर किए बिना केवल बाहरी इलाज कराने से ही ऐसे प्रयास बेकार जाते हैं। ऐसे में कुछ मंत्र बेहद कारगर सिद्ध हो सकते हैं। इसके साथ ही दुनिया में फैली महामारी भी जब भयंकर रूप ले लेती है तो फिर लोगों को परमात्मा की शरण में भी आना पड़ता है। ऐसे में विज्ञान, चिकित्सा, आयुर्वेद के साथ मंत्रों के सामंजस्य से हम इन संक्रामक बिमारियों से समाज की रक्षा कर सकते हैं। ऐसा हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्णित है। आयुर्वेद और वैदिक शास्त्र की मान्‍यता है कि जप, हवन, देवताओं का पूजन, ये भी रोगों की दवाएं हैं। ऐसे में रोगों के नाश के लिए पूजा और देवताओं के मंत्र की उपयोगिता स्‍पष्‍ट है।

ऐसे में हे मां विश्व में फैली इस विपदा(आपदा) से संपूर्ण विश्व को बाहर निकालकर जनमानस का कल्याण करें… ऐसी आराधना इस मंत्र के साथ करने को बताया गया है।

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।

जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा धात्री और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदंबे। आपको मेरा नमस्कार है। धार्मिक मान्यता है कि हर रोज इस मंत्र का यथासंभव 108 बार जप तन, मन व स्थान की पवित्रता के साथ करने से संक्रामक रोग सहित सभी गंभीर बीमारियों का भी अंत होता है। घर-परिवार रोगमुक्त होता है।

हे भोलेनाथ, हे महादेव, हे औघड़दानी आप इस संसार में फैले इस संक्रमण से पूरे मानव जाति की रक्षा करें।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। (शुक्लयजु. ३।६०)

‘मैं परमब्रह्म परमात्मा त्रिनेत्रधारी शंकर की वन्दना करता हूं, जिनका यश तीनों लोकों में फैला हुआ है और जो विश्व के बीज हैं एवं उपासकों के धन-धान्य आदि पुष्टि को बढ़ाने वाले हैं। जैसे पके हुए ककड़ीफल (फूट) की उसके वृक्ष से मुक्ति हो जाती है; वैसे ही काल के आने पर इस मन्त्र के प्रभाव से हम कर्मजन्य पाशबंधन से और मृत्युबंधन से मुक्त हो जाएं और भगवान त्र्यम्बक हमें अमृतत्व (मोक्ष) प्रदान करें।’

द: स्वप्नदु: शकुन दुर्गतिदौर्मनस्य, दुर्भिक्षदुर्व्यसन दुस्सहदुर्यशांसि।
उत्पाततापविषभीतिमसद्रहार्ति, व्याधीश्चनाशयतुमे जगतातमीशः।।

संपूर्ण जगत के स्वामी भगवान शिव मेरे सभी बुरे सपनों, अपशकुन, दुर्गति, मन की बुरी भावनाएं, भुखमरी, बुरी लत, भय, चिंता और संताप, अशांति और उत्पात, ग्रह दोष और सारी बीमारियों से रक्षा करें, धार्मिक मान्यता है कि शिव, अपने भक्त के इन सभी सांसारिक दु:खों का नाश और सुख की कामनाओं को पूरा करते हैं।

इसी तरह सर्वव्याधि निवारण हेतु हे शिव मैं आपका इस मंत्र के साथ आह्वान करता हूं आप संपुर्ण विश्व को अपने शरण में लें और सबकी रक्षा करें।

ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहिमाम् शरणागतम
जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीड़ितं कर्म बंधनः।

‘हे मृत्युंजय! महारुद्र! जन्म-मृत्यु, बुढ़ापा आदि विभिन्न रोगों एवं कर्मों के बन्धन से पीड़ित मैं आपकी शरण में आया हूं, मेरी रक्षा करो।’

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

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