युद्धग्रस्त ईरान में हालात कैसे हैं, यह छिपा नहीं है। भारत अपने नागरिकों को वहां से निकाल रहा है। गत 20 जून को ईरान से दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे कश्मीरी छात्रों का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे दिल्ली हवाई अड्डे पर मौजूद खराब बसों का मामला उठा रहे थे। छात्रों का कहना था कि उन्हें कश्मीर जाने के लिए खराब बसें मुहैया कराई गई हैं। वे बड़ी मुश्किल से पहले आर्मेनिया गए, वहां से कतर और फिर दिल्ली पहुंचे। यहां एक बात याद दिला दें कि दिल्ली पहुंचे 110 छात्रों में 90 कश्मीर के रहने वाले हैं। जितने भी छात्रों को वहां से निकाला गया है, उन्हें भारत सरकार ने अपने खर्चे पर युद्धग्रस्त ईरान से सुरक्षित निकाला, ताकि वे लोग सुरक्षित रहें। अब ऐसे में दिल्ली से कश्मीर जाने के लिए भी उन्हें हवाई टिकट चाहिए, बस से जाने में उन्हें दिक्कत हो रही है।
जब आप इतना सब किए जाने के बाद भी व्यवस्थाओं पर सवाल उठाएंगे तो सवाल और भी उठेंगे। ईरान जब आप गए थे तो सरकार के नुमाइंदे बनकर नहीं गए थे। वहां आपने दाखिला अपनी मर्जी से लिया। इसके लिए पैसे भी खर्च किए। आप ईरान में रहते भी वहां के कानूनों के अनुसार ही हैं। आप दूसरे देश में फंसे, वहां से वापस लाने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है बावजूद इसके भारतीय होने के नाते केंद्र सरकार ने किसी तरह से आपको वहां से निकलने में मदद की। इसके बावजूद आप यदि यहां आकर बसों की खराब स्थिति होने का सवाल उठाते हैं तो आपसे क्यों न सवाल किए जाएं? साथ ही यह सवाल विपक्ष के उन नेताओं से भी है जिन्होंने खराब बसों का रोना रोया।
अमेरिका ने इजरायल के हमला करते ही तत्काल अपने नागरिकों को ईरान छोड़ने के लिए कह दिया था, अन्य देशों ने एडवाइजरी जारी कर तत्काल अपने लोगों को देश छोड़ने को कहा। भारत के अलावा बाकी किसी देश की सरकार ने क्या इतनी जिम्मेदारी दिखाते हुए अपने नागरिकों को वहां से निकाला? चीन ईरान की मदद कर रहा है तो उसने जरूर अपने नागरिकों को वहां से निकाला, लेकिन क्या कोई भी वीडियो इंटरनेट पर ऐसा है, जिसमें कोई चीनी नागरिक अपने देश की व्यवस्थाओं पर सवाल उठा रहा हो? तो इसका जवाब है, नहीं। शायद ही किसी देश का नागरिक अपनी सरकार के लिए ऐसा बोलेगा। लेकिन कश्मीर के कुछ छात्रों ने जरूर ऐसा किया, जिसका विपक्ष ने मुद्दा बनाने की कोशिश की लेकिन फिर खुद ही गिर गया।
केंद्र सरकार ने भारतीय नागरिक होने के चलते सभी छात्रों को वहां से निकाला। ऐसे में जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार को अपने राज्य के लोगों को दिल्ली से सकुशल उनके घरों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए थी, लेकिन वहां की राज्य सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। केंद्र सरकार तो बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभाती आई है। उदाहरण के तौर पर, जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ तो हजारों भारतीय छात्रों को केंद्र सरकार ने यूक्रेन से निकालकर सकुशल भारत पहुंचाया। जिन राज्यों के छात्र थे, उन राज्यों ने अपने यहां के लोगों को दिल्ली से उनके घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था की थी। लेकिन कश्मीरी छात्रों को विशेष व्यवस्था चाहिए थी, क्यों?
जहां उन्हें सरकार को धन्यवाद देकर आभार व्यक्त करना चाहिए था, वहीं वे सरकार पर ही सवाल उठा रहे हैं। दरअसल ऐसा करना वैचारिक संक्रमण की बात है, जहां अधिकारों की बात करने वाले अपने कर्तव्यों को ताक पर रख देते हैं। यही मानसिकता जब कुछ क्षेत्रों विशेषकर जम्मू-कश्मीर के कुछ वर्गों में गहराई से बस जाती है, तो वह सरकार द्वारा दिए गए हर सहयोग को अपना अधिकार मानने लगते हैं, और हर असुविधा को उत्पीड़न करार देने लगते हैं। इसको मुद्दा बनाने की विपक्ष की कोशिश भी बेहद ओछी है, जो संवेदनशील मुद्दों को भी राजनीतिक चश्मे से देखती है।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।