लोकसभा चुनावों में तो झूठा विमर्श खड़ा करके, झूठे वायदे करके समाजवादी पार्टी 37 सीटें जीतने में कामयाब हो गई। साथ ही देश की सबसे बड़ी तीसरी पार्टी भी बन गई। लोकसभा चुनावों का परिणाम इस तरह का होगा इसका अनुमान राजनीतिक पंडितों के साथ सपा मुखिया अखिलेश यादव को भी नहीं था, बहरहाल आज उत्तर प्रदेश में 9 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने जा रहा है। सपा के लोकसभा में इतनी सारी सीटें जीतने के बाद यही अंदाजा लगाया गया था कि सपा का आगे भी प्रदर्शन ऐसा ही रहेगा, लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है।
दरअसल लोकसभा चुनावों में झूठ के दम पर लोगों को बरगलाकर और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के तहत वोटों का धुव्रीकरण कर सपा भले ही इतनी सीटें जीतने में कामयाब रही लेकिन उपचुनावों की स्थिति इससे बिल्कुल उलट है। 20 नवंबर को उत्तर प्रदेश की कुंदरकी, मीरापुर, गाजियाबाद, फूलपुर, कटेहरी, मझवा, खैर, सीसामऊ, करहल विधानसभा सीटों पर वोटिंग होनी हैं, लेकिन वोटिंग के पहले ही अखिलेश हार के डर से बौखलाए हुए हैं और बेतुकी बयानबाजी कर रहे हैं। भयमुक्त चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की जा रही पेट्रोलिंग पर भी उन्होंने सवाल उठाए हैं।
ये मणिपुर नहीं है, ये उप्र के सीसामऊ विधानसभा सभा क्षेत्र के उपचुनाव से आई तस्वीरें हैं। सवाल ये है कि क्या उप्र सरकार की नाकामी की वजह से जनता में अब इतना विश्वास नहीं रह गया है कि वो बेख़ौफ़ वोट डालने बाहर निकल सके, इसीलिए इस (तथाकथित) विश्वास को उपजाने के लिए ये क़वायद की जा… pic.twitter.com/zCZBmxOsc4
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) November 19, 2024
इसके अलावा उन्होंने यह मांग भी कर डाली है कि वोट डालने आने वाली मुस्लिम महिलाओं के बुर्के उठाकर उनकी जांच न की जाए। अखिलेश का कहना है कि जब महिलाओं के वोटर आईडी की जांच की जा रही है, तो फिर बुर्का उठाकर जांच करने की जरूरत नहीं है। यहां सवाल उठता है कि आईडी कार्ड होने का अर्थ यह तो नहीं कि आप मुंह पर कपड़ा ढककर आएं और आपको बिना पहचाने ही अंदर वोट डालने जाने दिया जाए। देश संवैधानिक तरीके से चलता है। चुनाव भी संवैधानिक तरीके से ही होते हैं, संविधान में सबके लिए नियम और कायदे हैं तो ऐसे में बुर्के वाली महिलाओं के लिए अलग नियम तो नहीं हो सकते हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा मतदान में गड़बड़ी की आशंका को लेकर यादव समाज के एक ठेकेदार को पुलिस ने नोटिस देकर चेताया कि वह चुनाव में कोई गड़बड़ी न करे तो उसके संबंध में उन्होंने नोटिस के साथ एक्स पर पोस्ट किया और कहा कि शासन—प्रशासन द्वारा पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है। भला यह क्या बात हुई पुलिस को यदि लगा कि फला व्यक्ति चुनावों में गड़बड़ कर सकता है तभी तो उसको चेतावनी दी गई। इसमें पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने वाली बात तो कुछ है ही नहीं, लेकिन यह भी उन्हें नागवार गुजरा और उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से पुलिस प्रशासन पर निशाना साधा।
चुनाव आयोग तुरंत इस बात का संज्ञान ले कि उप्र में शासन-प्रशासन पक्षपात पूर्ण रवैया अपना रहा है और मतदान को बाधित करने के लिए ‘नोटिस-चेतावनी’ के लाल कार्ड बाँटकर मतदाताओं पर दबाव बना रहा है। ये एक तरह से संविधान द्वारा दिये गये वोटिंग के अधिकार को छीनने का ग़ैर-क़ानूनी कृत्य है।… pic.twitter.com/XR5RqsbCAy
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) November 19, 2024
दरअसल यह कुछ और नहीं बल्कि उपचुनावों में अखिलेश यादव की हार का डर है। यदि प्रशासन सुचारू तरीके से चुनाव कराने के लिए आपराधिक प्रवृत्ति के किसी व्यक्ति को चेतावनी देता है तो इस पर भी उन्हें आपत्ति है। क्या सिर्फ इसलिए कि जिस व्यक्ति को नोटिस दिया गया वह उनके ही समाज से आता है इसलिए वह सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।
अखिलेश यादव ने उपचुनावों से पहले चुनाव आयोग को यह पत्र भी लिखा है कि पुलिस को वोटर का पहचान पत्र जांचने का अधिकार न दिया जाए। यहां सवाल उठता है कि यदि पोलिंग स्टेशन पर पुलिसकर्मी पहचान पत्र की जांच नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? क्या अखिलेश चाहते हैं कि बिना पहचान पत्र जांचें ही पोलिंग बूथ के अंदर लोगों को आने दिया जाए। ऐसे तो अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। जिस तरह के सवाल अखिलेश यादव खड़े कर रहे हैं और जिस तरह की मांग वह कर रहे हैं यह वह भी जानते हैं कि ऐसा हो पाना संभव नहीं है।
संभवत: अखिलेश यह समझ रहे थे कि लोकसभा चुनावों में जैसे झूठ और भ्रम फैलाकर कांग्रेस के साथ गठबंधन कर वह उम्मीद से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हो गए थे इस बार उपचुनावों में भी ऐसा ही होगा, लेकिन जब उन्हें दिखाई दिया कि ऐसा नहीं होने जा रहा है और वह उपचुनावों में हार रहे हैं तो उन्होंने अनर्गल बयान देने शुरू कर दिए। दरअसल अखिलेश की बयानबाजी सिर्फ और सिर्फ इसलिए है ताकि चुनाव हारने के बाद वह सफाई दे सकें और ढिंढोरा पीट सकें कि हम तो जीत रहे थे लेकिन चुनाव निष्पक्ष तरीके से नहीं हुए।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।