अल्पसंख्यकों के लिए दुनिया में अगर कोई सबसे बेहतर जगह है तो वो हिंदुस्तान है। ये वो देश है जहां वे अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग करते हुए देश के सर्वोच्च पदों तक पहुंच सकते हैं। उन्हें व्यवस्था से किसी भी किस्म की परेशानी नही है। संविधान के तहत उन्हें सबसे बेहतर अधिकार मिले हुए हैं। वे देश के तमाम महत्वपूर्ण पदों पर काबिज़ हैं। देश के रूपहले पर्दे पर उनका शासन है। वे यहां के एकछत्र सितारे हैं। उनकी अपनी पार्टियां भी हैं जो सिर्फ उनकी ही बात करती हैं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने जिस संविधान की रचना की थी, उसमें अल्पसंख्यकों को उनकी शिक्षा, रहन-सहन और अवसरों के समान और लोकतांत्रिक अधिकार दिए गए हैं। इस देश में मुस्लिम राष्ट्रपति हो चुके हैं। इस देश ने सिख राष्ट्रपति को भी देखा है। मुस्लिम एक नहीं बल्कि कई राज्यों के सीएम हो चुके हैं। वे कैबिनेट मंत्री और राज्यपाल बन चुके हैं। वे देश की खासी लोकसभा और विधानसभा सीटों का नतीजा तय करते हैं। देश में ऐसी एक नहीं, बल्कि अनेक सीटें हैं जहां जीत हार वे ही तय करते हैं। सवाल है कि फिर आखिर उन्हें किससे खतरा है। आखिर क्यों उनके नाम पर खतरे का हौवा खड़ा किया जा रहा है। आखिर इससे किसे फायदा है।
इस देश के लोकतंत्र का एक दुर्भाग्य रहा है कि यहां अल्पसंख्यकों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है। इस वोट बैंक की राजनीति ने उनके भीतर असुरक्षा की भावना को उकसाया है। उसे आंच दी है। उसे आगे बढ़ाया है। यही वजह है कि मुसलमानों में एक तबका ऐसा है जो ऐसी राजनीति का शिकार हो जाता है। इस देश में शाहबानो जैसी बेवा के नाम पर भयानक राजनीति का इतिहास है। एक ऐसी राजनीति जिसने एक शाहबानो ही नहीं, बल्कि कितनी ही मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी नर्क कर दी। एक बड़ी वजह राजनीति में धर्म की घुसपैठ की भी है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई मुस्लिम इदारे ऐसे हैं जिनके मुद्दे और राजनेताओं के मुद्दों में समानता के भी वाकए सामने आए हैं। इन इदारों में सिसायतदानों की घुसपैठ भी है। ये सभी बातें उन्हें उदारवाद की जगह हठवादिता और कट्टरता के रास्ते पर झोंकने की ताकत रखती हैं।
अब जरा दूसरे मुल्कों की भी बात कर लें।उससे ये समझने में आसानी होगी कि हिंदुस्तान में और दूसरे मुल्कों में बेसिक फर्क क्या है। हालात ये है कि पाकिस्तान, यमन, इराक, ईरान, अफग़ानिस्तान जैसे कट्टर इस्लामिक मुल्कों में अल्पसंख्यकों की दुर्गति हो चुकी है। उनके अधिकार पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। मुसलमानों के लिए भी वहां आजादी के मायने एकदम अलग हैं। लोकतंत्र की जगह शरिया कानून ही उनकी नियति हैं। पाकिस्तान में तो शिया और अहमदिया जैसे तबके अपने वजूद के लिए लड़ रहे हैं। उन्हें लगातार टारगेट किया जा रहा है। यूरोपीय देशों का भी यही हाल है। वहां भी कट्टरपंथियों की हिंसक हरकतों के चलते मुसलमानों से नफरत करने वाला एक वर्ग पैदा होता जा रहा है। फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड, स्वीडन जैसे देशों में ये तस्वीर दिखाई दे रही है। आधुनिकतावाद का दावा करने वाले इन देशों में आपसी लड़ाई, कट्टरता और हिंसा की तस्वीरें आम होती जा रही हैं।
चीन जैसे देशों में उइगर मुसलमानों के साथ जो हो रहा है, वो किसी से छिपा नहीं है। उन्हें भीषण यातनाओं का शिकार होना पड़ रहा है। हैरानी की बात है कि उस पर मुस्लिम मुल्क भी चुप हैं। उन्हें चीन के साथ अपने रिश्तों की अधिक परवाह है। वे इस पर एक शब्द भी नहीं बोल रहे। यही हाल गाजा का है। एक भी इस्लामिक मुल्क सिवाए ज़ुबानी जमाखर्च के वहां के लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं है। मिश्र जैसा नब्बे फीसदी सुन्नी मुस्लिम जनसंख्या वाला मुल्क गाजा के मुसलमानों के लिए अपना दरवाज़ा खोलने को तैयार नहीं है। ये सिर्फ हिंदुस्तान ही है जहां मुसलमान इतने सुकून से रह रहे हैं। उन्हें सारे अधिकार प्राप्त हैं। किसी तरह का भेदभाव नही है। हिंदुस्तान हर मायने में मुसलमानों के लिए सबसे बेहतर और सुरक्षित मुल्क है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)