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नई शिक्षा नीति 2020ः बिना भेदभाव सबको हासिल होगी उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा

ब्रिटिश शिक्षा नीति को ही आजाद भारत में रखा गया जिससे देश में साक्षर मनुष्य व अपना जीवन चलाने के लिए योग्य शिक्षित वर्ग तो पैदा हो गया, लेकिन समाज इस शिक्षा के बावजूद सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक रूप से अनपढ़ ही रहा। कोठारी शिक्षा आयोग 1968, नई शिक्षा नीति 1986 व 1992 के पाठ्यक्रमों से औपनिवेशिक मिश्रण को नहीं निकाल पाए जिससे सामाजिक असमानता, शोषण, जातीय भेदभाव तथा द्वेष व आर्थिक पिछड़ापन देश की आजादी के 73 वर्षों के बावजूद भी तन्मयता से कायम रहें है। आज भारत में एक राष्ट्रीय शिक्षा की आवश्यकता है जो ना केवल शिक्षित समाज को तैयार करें, बल्कि भारतीय परंपरा व विभिन्न ग्रंथों का विचार-धन शिक्षा का समावेश करते हुए एक उत्कृष्ट समाज की स्थापना करें।

भारत सरकार द्वारा घोषित नई शिक्षा नीति 2020 भी उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करने की घोषणा करती है जो कि 1968, 1986 व 1992 की नीतियों में भी लिखा था, परंतु आज की शिक्षा नीति उच्च गुणवत्ता की शिक्षा को न्याय संगत और जीवन ज्ञान के साथ जोड़ते हुए शोषित दलित समाज के दिनचर्या के जीवंत ज्ञान के अनुभवों को इस शिक्षा नीति में सम्मिलित करती है। उदहारण स्वरूप, स्कूल के प्रारंभिक दिनों में बाल छात्रों को नैतिक शिक्षा के खेलों के द्वारा दिया जा सके और हमारे परंपरागत खेल जैसे रस्सी खींच स्पर्धा, कब्बड़ी आदि में जहां शारीरिक व्यायाम करवाती है वही “एकता में बल” का संदेश भी देती है।

नई शिक्षा नीति भारतीय संविधान में शिक्षा संबंधी आरक्षण के प्रावधानों का सम्मान करती है। शोषित समाज के विशेष कार्यों को ध्यान में रखते हुए उसे शिक्षा के मूल ढांचे में सम्मिलित किया गया है। इससे यह समाज देश में व दुनिया के किसी भी हिस्से में रहकर नई शिक्षा को ग्रहण कर अपनी सार्थक भूमिका और पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों को निभा सकता है। इस नीति में शोषित समाज के कौशल मूल्यों को मानव अधिकार व स्थाई विकास की नीति से जोड़ा गया है ताकि वह वैश्विक नागरिक बन सकें।

मानव दक्षता को पुरानी शिक्षा नीतियों में अनदेखा किया गया था लेकिन इस शिक्षा नीति में शोषित समाज की दक्षता को सम्मान देते हुए इससे संबंधित पाठ्यक्रम, शिक्षा शास्त्र और नीति में विविध आयामों को प्रस्तुत करती है। दलित समाज की दक्षता को मान्यता मिलने से सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहन मिलेगा जिससे शिक्षा के विविध आयामों को सम्मान पूर्वक देखा जाएगा। वैश्वीकरण के दौर में दलित समाज में नवाचार सोच उत्पन्न होगी जिससे शिक्षा व समाज में तार्किक निर्णयों में रचनात्मकता अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इससे दलित पिछड़ा वर्ग शिक्षा की सतत समीक्षा के द्वारा नए अनुसंधान कर पाएंगे और एक मूल्यांकन को सामाजिक विकास के लिए रखेंगे। नई शिक्षा नीति दलित, पिछड़ा व गरीब समुदायों के लिए शिक्षा के सभी स्तरों पर सार्वभौमिक पहुंच को सुनिश्चित करता है। समाज में शोषित दलित समाज समुदाय को समानता के अधिकारों को परिपूर्ण करते हुए इस शिक्षा नीति में पाठ्यक्रमों को कम करते हुए बहुआयामी ढांचे की संरचना की है। इस ढांचे में अक्षर संरचना, विविध भाषाएं, अंकगणित, खेलो, पहेलियां, तार्किक सोच, दृश्य कला, शिल्प, नाटक, कठपुतली व संगीत जैसे विषयों को प्राथमिकता दी गई है।

सामाजिक खोजपूर्ण गतिविधियां, कौशल आधारित शिक्षा व रचनात्मक क्रियाओं को पाठ्यक्रम में रखा जाएगा जिससे इस समाज की छुपी हुई विविध कलाओं को प्रोत्साहन के साथ-साथ शिक्षा पाठ्यक्रम में भी मान्यता मिलेगी। उदाहरण स्वरूप, खटपटिया संगीत, नट कला, चमड़े की रंगाई, भड़भूजे, रंगदार कला, हाथ पंखा व टोकरी बनाना, बान-जूट की चारपाई व परंपरागत वैज्ञानिक विधिया जैसे हजारों उदाहरण है जिन्हें नई शिक्षा नीति में ग्रीन टेक्नोलॉजी के अंतर्गत मान्यता मिलेगी । इस शिक्षा को जब मातृभाषा में पढ़ाया जाएगा तो शोषित दलित समाज के बच्चों को आगे बढ़ने का हौसला मिलेगा एवम् इसके साथ-साथ नई शिक्षा नीति 2020 अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग को नई पहचान देते हुए इस समुदाय की सामाजिक व सांस्कृतिक विरासत को समाज में महत्वपूर्ण स्थान मिलेगा।
सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए स्कूलों में नई शिक्षा नीति में शुल्क माफ, रियायत और छात्रवृत्ति का प्रावधान रखा गया है। भारतीय समाज की लोक विद्या के विचार-धन को उत्कृष्ट बनाने के लिए नई शिक्षा नीति ने इसे अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया है, जिससे इस देश की हजारों व्यवसायिक शिल्पों को पाठ्यक्रम में विकसित किया जाएगा और जिससे आजतक तक छुआछूत की मारी सभी रुकी हुई शोषित दलित समाज की शोषित कलाओं को विधिवत रूप से मान्यता मिलेगी और विकास की राह पर अग्रसर होगी।

निष्कर्ष रूप से यहां कहा जा सकता है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक एकल शिक्षा पद्धति जिसने हमारे देश की आजादी के 73 वर्षों तक हमारी पारंपरिक विश्व गुरु की महत्ता को कम किया हुआ था, नई शिक्षा नीति 2020 में देश के विचार-धन को सम्मिलित किया है। इससे विज्ञान पढ़ने वाले छात्र भी चतुर्वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, गीता, त्रिपिटका, गुरु ग्रंथ आदि को पढ़ सकते हैं, जिससे शिक्षा व शिक्षक दोनों ही मूल्यवान बनेंगे। हमारा शोषित दलित समाज भी अपने संप्रदायों के मूल्य विचारों को सामने लाएगा और इस शिक्षा दृष्टि-मूल्य बोध से निकले संस्कारों का अध्ययन, पठन-पाठन हमारी राष्ट्रीय नीति का अंग होंगी। हर छात्र जीवन में डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, कलाकार नहीं बन सकता है, क्योंकि उसके जीवन में उसकी एक क्षमता भी होती है, और रुचि भी होती है। उसे जो अच्छा लगता है उसे करने का इस शिक्षा नीति में मौका मिलेगा ताकि वह सर्वदा उत्कृष्ट करें और अपना और अपनी उत्कृष्टता से परिवार की प्रतिष्ठा को कायम करें। इसी भावना से ही सर्व-स्पर्शी भारतीय शिक्षा नीति 2020 तैयार की गई है।

इस लेख के लेखक प्रोफेसर सुरेश चौधरी, पूर्व अध्यक्ष, अफ्रीकी अध्ययन, दिल्ली विश्वविद्यालय, अकादमिक एडवाइजर, सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट (सीएसडी) हैं। इस लेख में व्यक्त सारे विचार इनके निजी हैं। 

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