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गंगा तेरा पानी निर्मल, पर कितना?

भारतवर्ष में गंगा नदी को मोक्षदायिनी कहा जाता है। गंगा को देश की सबसे पवित्र नदी का दर्जा प्राप्त है। यूं तो गंगा के अलावा भी बहुत सी नदियां जैसे यमुना, नर्मदा, सरयू, गोमती आदि नदियों को भी पूजा जाता है लेकिन गंगा के प्रति लोगों के मन में एक अलग ही आस्था बसती है। बावजूद इसके समय-समय पर गंगा के पानी की पवित्रता पर सवाल उठाती एनजीटी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट हमें सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या वाकई गंगा का पानी उतना ही निर्मल है जितना हम सोचते हैं। कुछ समय पूर्व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा देश के विभिन्न स्थानों से लिए गए गंगा के पानी की जांच करने के बाद ऐसा कहा गया था कि गंगा का जल कई जगह पर पीने तो दूर आचमन करने लायक भी नहीं बचा है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की ओर से बीती चार मार्च को एक बार फिर यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि सिर्फ वाराणसी में लगभग 12.8 करोड़ लीटर (128 मिलियन लीटर) अशोधित अपशिष्ट जल गंगा नदी में प्रतिदिन प्रवाहित हो रहा है।

गोमुख से निकल भागीरथी देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा बन जाती है और ऋषिकेश, हरिद्वार होते हुए गंगासागर तक बहती है। गंगा नदी का न सिर्फ़ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है बल्कि देश की लगभग 40 प्रतिशत तक आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। साल 2014 में न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “अगर हम गंगा को साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है।” इस सोच को कार्यान्वित करने के लिए मोदी सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए जल जीवन मिशन के तहत ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए पर 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की केंद्र की प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दी और इसे 100 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना का रूप दिया। अभी तक नमामि गंगे मिशन के अंतर्गत 30,000 करोड रुपए से अधिक की परियोजनाएं या तो पूर्ण हो चुकी हैं या प्रगति पर हैं। इन्हीं परियोजनाओं में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी शामिल हैं। नमामि गंगे परियोजना न सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है बल्कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी गंगा सफाई को लेकर बहुत सजग हैं। बावजूद इसके आए दिन ऐसी खबरें सामने आती हैं जिससे पता चलता है कि शासन स्तर पर कई लोग इस योजना को पलीता लगाने में जुटे हैं।

राष्ट्रीय हरित पैनल (एनजीटी) वाराणसी में गंगा में घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल छोड़े जाने, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, के संबंध में एक मामले की सुनवाई कर रहा था जिसमें ये रिपोर्ट सामने आई। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और इसके न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की पीठ ने वाराणसी नगर निगम की एक रिपोर्ट पर गौर किया, जिसके अनुसार लगभग 28 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) अनुपचारित मल-जल गंगा में प्रवाहित हो रहा है। विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल और अफरोज़ अहमद की सदस्यता वाली पीठ ने कहा, “रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि वाराणसी नगर निगम और इसके विस्तारित क्षेत्र के भीतर 522 एमएलडी अपशिष्ट उत्पन्न होता है जबकि सात ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ (एसटीपी) मौजूद हैं जिनकी निर्धारित क्षमता लगभग 422 एमएलडी है।” पीठ ने पिछले महीने पारित अपने आदेश में कहा, “इसलिए, यदि हम मान लें कि सभी एसटीपी अपनी निर्धारित क्षमता के अनुरूप काम कर रहे हैं, तो भी करीब 100 एमएलडी का अंतराल है।”

हरित पैनल द्वारा यह कहने के बाद कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया है, बोर्ड के वकील ने दोषी निकायों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा। एनजीटी ने कहा, “इसलिए यूपीपीसीबी को सुनवाई की अगली तारीख (चार अप्रैल) से कम से कम एक सप्ताह पहले ताजा कार्रवाई की रिपोर्ट दाखिल करने दें।” एनजीटी की ये रिपोर्ट सिर्फ वाराणसी की है। कानपुर में भी गंगा का हाल बेहाल है, यहां भी टेनरियों और अन्य औद्योगिक इकाइयां का हजारों लीटर दूषित जल रोजाना गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है जिसकी रिपोर्ट समय-समय पर देखने और सुनने को मिलती है। अगर हम देश भर से जहां-जहां गंगा का प्रवाह है जैसे उत्तराखंड, यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों से डाटा इकट्ठा करें तो स्थिति निश्चित तौर पर गंभीर होगी। ये वाकई चिंता का विषय है कि अगर ऐसा ही हाल रहा तो ऐसे कैसे हमारी गंगा निर्मल होंगी?  गंगा की दशा सुधारने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से तो व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं मगर आम जन को भी इसमें अपनी भागीदारी समझनी होगी।

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