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Targeted killing in Kashmir: आतंक के विरुद्ध युद्ध

पिछले कुछ दिनों से घाटी में ‘टार्गेटेड किलिंग’ की आतंकी घटनाएं बढ़ गई हैं। यह बर्बरता चारों ओर से घिरते जाते आतंकवादियों की बौखलाहट का नतीजा है। अभी हाल में राष्ट्रीय जांच एजेंसी की दिल्ली स्थित एक विशेष अदालत ने कुख्यात आतंकी और अलगाववादी मोहम्मद यासीन मलिक को ‘आख़िरी सांस तक जेल में रहने’ की सजा सुनायी है। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट नामक आतंकी संगठन के स्वयंभू सरगना यासीन मलिक को यह सजा 2017 में दर्ज मामले में सुनायी गयी है। ज्वाइंट रेजिस्टेंस लीडरशिप के बैनर तले उसने आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों के तंत्र-यंत्र विकसित करते हुए अनेक षड्यंत्र रचे। यह भी कहा जाता है कि पाकिस्तान में रहने वाली उसकी बीवी मुशाल हुसैन मलिक आईएसआई की एजेंट है। यासीन मलिक और उसका संगठन कश्मीर घाटी के गैर-मुस्लिम समुदाय के क्रूरतम नरसंहार और पलायन के गुनहगार हैं। अभी उन गुनाहों का भी हिसाब-किताब होना है। आतंकी फिर 1990 का इतिहास दुहराने की फिराक में हैं। इसलिए सरकार और सुरक्षा बलों को अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए उन्हें मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत है।

उल्लेखनीय है कि 30 मई, 2017 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कुछ नेताओं के ख़िलाफ़ गैर-नामजद मामला दर्ज करके जांच शुरू की। यह मामला उन नेताओं के खिलाफ दर्ज किया गया था जिनकी जम्मू-कश्मीर में सक्रिय कुख्यात आतंकी संगठनों के साथ सांठगाठ थी। इस केस में विभिन्न अवैध तरीकों से धन इकठ्ठा करना और उसे आतंकी संगठनों और उपद्रवियों की भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए मुहैय्या कराने की जांच भी शामिल थी। इस केस में सघन जांच करके सन् 2018 में आरोप-पत्र दायर करते हुए एनआईए ने पाया कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता पाकिस्तान के शिक्षण संस्थानों की मेडिकल और इंजीनियरिंग आदि की सीट बेचकर धन-संग्रह कर रहे थे और उस धन का उपयोग उपद्रवी और आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हुए भारत को अस्थिर और कमजोर करने के लिए किया जा रहा थाI वास्तव में हवाला आदि अवैध तरीकों से प्राप्त यह विदेशी धन भारत के विरुद्ध युद्ध संचालित करने में उपयोग किया जा रहा थाI हुर्रियत कॉन्फ्रेंस, पाकिस्तान और आतंकी संगठनों का एक “त्रिकोण” भारत के खिलाफ संगठित रूप में सक्रिय था। हालांकि, मुख्यधारा के सफेदपोश नेताओं के चौथे कोण का खुलासा होना अभी बाकी है। लम्बे समय से यह “चतुष्कोण” भारत के ख़िलाफ़ एक अघोषित युद्ध लड़ रहा है। फरवरी, 2019 में एनआईए ने अपनी जांच में पाया कि यासीन मलिक, शब्बीर शाह, मोहम्मद अशरफ खान, मसर्रत आलम, ज़फर अकबर भट, सैय्यद अली शाह गिलानी उसका बेटा नसीम गिलानी और आसिया अंद्राबी आदि इस युद्ध के सूत्रधार हैंI यासीन मलिक के सजायाफ्ता होने से अन्य आतंकियों और अलगाववादियों को भी सजा मिलने की आस जगी है। निश्चय ही, यासीन मलिक आतंक और अलगाववादी कॉकटेल का सबसे शातिर और दुर्दांत चेहरा है। अब यह उम्मीद भी की जानी चाहिए कि गैर-मुस्लिम कश्मीरियों के दिल दहला देने वाले कत्लों की फाइलें भी खुलेंगी। दशकों से धूल फांकती ‘कश्मीर फाइल्स’ को खोलकर और उनपर सही और समयबद्ध कार्रवाई करके ही आतंक के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सकती है।

दुर्दांत आतंकी से ‘गांधीवादी’ बन बैठे यासीन मलिक को सजा मिलना तो स्वागतयोग्य है, मगर उसको और उसके जैसे अनेक अन्य आतंकियों और अलगाववादियों को दशकों से लंबित मामलों में सजा न मिलना चिंताजनक है। अकेले यासीन मलिक पर ही देश के विभिन्न थानों में 60 से अधिक मुकद्दमे लंबित हैं। इनमें से कुछ मामले 35 साल से भी अधिक पुराने हैं। इन मुकद्दमों में दिसम्बर 1989 में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की छोटी बेटी रुबिया सईद का अपहरण, 25 जनवरी,1990 को स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना और उनके साथी चार वायुसेना अधिकारियों की निर्मम हत्या, 1983 में भारत-वेस्टइंडीज मैच को बाधित करने के लिए पिच खोदना, 1989 से 1994 के बीच सैकड़ों निर्दोष गैर-मुस्लिम कश्मीरियों की जघन्य हत्या के मामले विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। यासीन मलिक को आजीवन कारावास मिलने पर स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना की धर्मपत्नी निर्मल खन्ना की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा है कि ‘मलिक को उसके पापों की सजा मिलना बाकी, यह तो शुरुआत भर है।’ उन्होंने न्याय मिलने में हो रही देरी पर अपनी निराशा और नाराजगी व्यक्त करते हुए उसे, उसके साथियों और उसके मददगार बने ‘जयचंदों’ को जल्द मौत की सजा देने की जरूरत भी बताई। निर्मल खन्ना का यह बयान आतंक के खिलाफ अबतक की लड़ाई को संदिग्ध साबित करने के लिए काफी है। वे न्याय की प्रतीक्षा में एक युवती से वृद्धा हो गयी हैं।

आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध को अंजाम तक पहुंचाने के क्रम में इस बात का भी खुलासा होना चाहिए कि इतनी ज्यादा संगीन आतंकी/आपराधिक वारदातों में संलिप्तता के बावजूद यासीन मलिक को 1994 में क्यों और किसके इशारे पर रिहा किया गया? साथ ही, आतंकियों के पनाहगार बने हुए सफेदपोश जयचंदों का भी पर्दाफाश किया जाना चाहिएI यह भी जाँचा जाना चाहिए कि क्या आतंकियों/अलगाववादियों के तार मुख्यधारा के राजनेताओं और सेक्युलर-लिबरल मानवाधिकारवादियों से भी जुड़े रहे हैं? यासीन मलिक को सजा इसलिए मिल सकी क्योंकि वर्तमान केंद्र सरकार ने आतंकवाद की कमर तोड़ने का बीड़ा उठा रखा हैI अन्यथा पहले की तरह गिरफ़्तार होने के बाद जमानत पर छूट जाने का इतिहास इस बार भी दुहराया जाता और यासीन मलिक और उनके साथी जमानत पर रिहा होकर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते देश की नींव को खोखला कर रहे होते!

दरअसल, भारतीय न्यायिक प्रक्रिया की गति बहुत धीमी है। शातिर और साधन-संपन्न अपराधी इसका भरपूर लाभ उठाते हैं। कई बार अपराधी से अधिक ‘सजा’ उत्पीड़ित को मिल जाती है। कम-से-कम आतंकवाद जैसी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से सम्बद्ध मामलों का निपटान त्वरित गति से होना चाहिए। उनकी सुनवाई सामान्य अदालतों की जगह विशेष अदालतों/फ़ास्ट ट्रैक न्यायालयों में होनी चाहिए, ताकि निर्दोष नागरिकों के नरसंहारियों को समुचित और समयबद्ध सजा देकर उनके सरपरस्तों, साथियों और समाज को सही सन्देश दिया जा सकेI पूर्ववर्ती सरकारों ने आतंकवाद की अनदेखी की और यासीन मलिक जैसे आतंकी सरगनाओं, शह-कारों और सरपरस्तों को सम्मान और स्वीकार्यता प्रदान की। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलने वाले कश्मीरी प्रतिनिधिमंडल और अप्रैल 2005 में शुरू हुई ‘कारवां-ए-अमन’ बस सेवा से पाकिस्तान जाने वालों में यासीन मलिक भी शामिल था। उसे ‘कश्मीर समस्या’ पर बात करने के लिए अमेरिका भी भेजा गयाI कश्मीर समस्या के जबरिया स्टेकहोल्डर बने ये आतंकी अलगाववादी दिल्ली में भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता की बात करते थे; जम्मू में सेकुलरिज्म और स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाते थे और श्रीनगर में पहुंचते-पहुंचते पाकिस्तानपरस्ती पर उतर आते थे। विदेशी पैसे पर पलने वाले इन राष्ट्रद्रोहियों ने सदैव दहशतगर्दी और खून-खराबे की फसल बोई और काटी है। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आबंटित जमीन के विरोध में 2008 में, भारतीय सेना द्वारा तीन आतंकियों के एनकाउंटर के विरोध में 2010 में और आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद 2016 में इन्होंने घाटी में घेराव-पथराव, आगजनी, तोड़फोड़, बम-बंदूक से कहर बरपाते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि खराब करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। दरअसल, ये लोग न सिर्फ भारत के; बल्कि अमन-चैन और तरक्की के दुश्मन हैं। इन्हें इनकी करतूतों की सजा देकर ही आतंकवाद का खात्मा किया जा सकता और जम्मू-कश्मीर में खुशहाली लायी जा सकती है।

लगता है अब इस दिशा में काम हो रहा है। यासीन मलिक की सजा पर गुपकार गैंग की प्रतिक्रिया उसके असल चेहरे और मंसूबों को उजागर करती है। गुपकार गैंग के प्रवक्ता युसूफ तारिगामी ने इससे कश्मीर के लोगों के अलगाववादियों से जुड़ाव बढ़ने की बात कही है। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने इस तरह हालात के न बदलने की बात कहते हुए कहा है कि पहले भी लोगों को फांसी दी गयी पर उससे हालात बिगड़े ही हैं। उनका इशारा संसद हमले के मास्टरमाइंड अफज़ल गुरु को दी गयी फांसी की ओर है। लगता है सत्ता से बेदखल होने के बाद से महबूबा मुफ़्ती का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है और वे देश के दुश्मनों की खुलेआम पैरवी करने लगी हैं। उन्हें राष्ट्रविरोधी करतूतों से बाज आना चाहिए अन्यथा उनके भड़काऊ बयानों का गंभीर संज्ञान लेकर उन्हें फिर नज़रबंद कर दिया जाना चाहिए।

दशकों बाद इसबार इतनी बड़ी संख्या में सैलानी कश्मीर घूमने निकले हैं। 5 अगस्त, 2019 के बाद हुए तमाम सुधारों और सकारात्मक परिवर्तनों ने आतंकियों और उनके हिमायतियों को बेचैन और बदहवास कर डाला है। सरकार और सुरक्षा बलों को अपने आतंक विरोधी अभियान को और भी अधिक धारदार, त्वरित और चाक-चौबंद बनाना चाहिए। साथ ही, नागरिकों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करते हुए उनके भरोसे और मनोबल को बनाये रखना जरूरी है। यह मनोबल की लड़ाई भी है। पंजाब और श्रीलंका का उदाहरण हमारे सामने है। यह समझने की जरूरत है कि ढिलाई बरतने और आतंकियों/अपराधियों को सही समय पर सख्त सजा न देने से अतिवाद और आतंकवाद बढ़ता ही है। अब देश के दुश्मनों की आवभगत का अंदाज़ बदल रहा हैI यह देर से ही सही पर दुरुस्त आयद है।

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