News Room Post

उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश में पहले ही लागू हो जाती समान नागरिक संहिता, लेकिन नेहरू की वजह से ऐसा नहीं हो सका

कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के चलते देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू नहीं हो पाई। यदि पंडित नेहरू चाहते तो कभी का देश में यूसीसी लागू हो गया होता लेकिन वह ऐसा नहीं चाहते थे। कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारें भी इसी नीति पर चलती रहीं

उत्तराखंड देश में सबसे पहला राज्य बनने जा रहा है जहां समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होगा। उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही उन्होंने इसकी घोषणा की थी। संभवत: 26 जनवरी से यहां पर समान नागरिक संहिता लागू भी हो जाएगी। उत्तराखंड की तर्ज पर राजस्थान सरकार भी इसकी तैयारी कर रही है। पिछले साल अगस्त में राजस्थान सरकार ने भी राज्य में भी समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने के लिए विधेयक पर विचार करने की बात कही थी। राज्य के कानून और संसदीय मामलों के मंत्री जोगाराम पटेल ने विधानसभा में इसकी घोषणा भी की थी। उत्तराखंड में यूसीसी का लागू होना एक ऐतिहासिक कदम भी होगा। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि यह सब कवायद राज्य सरकारों को क्यों करनी पड़ रही है? देश संविधान के हिसाब से चलता है, एक देश एक कानून, लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के चलते देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो सकी।

समान नागरिक संहिता की मांग देश में नई नहीं है। आज समान नागरिक संहिता को लागू किए जाने की लिए तमाम कवायद इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के चलते देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि देश में यूसीसी लागू हो। अगर मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते पंडित नेहरू ने इसका विरोध नहीं किया होता और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की बात उन्होंने मानी होती तो पूरे देश में समान नागरिक संहिता पहले ही लागू हो चुकी होती। देश की आजादी के बाद जब संविधान सभा का गठन हुआ था तभी से समान नागरिक संहिता को लागू किया जाना चाहिए था लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते ऐसा नहीं किया गया।

हिंदू पर्सनल लॉ बिल के लाए लाने से पहले 1951 में सिर्फ हिन्दू लॉ को कानून में पिरोने का विरोध करते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पंडित नेहरू से कहा था कि अगर मौजूदा कानून अपर्याप्त और आपत्तिजनक है तो सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू की जाती? 14 सितंबर 1951 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने हिन्दू कोड बिल लाने का विरोध करते हुए कहा था कि जो प्रावधान इस कानून के जरिए किए जा रहे हैं यदि वह लोगों के हित में हैं और इतने फायदेमंद हैं तो सिर्फ हिंदुओं के लिए ही क्यों लाए जा रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया था कि बाकी समुदायों को भी इसके लाभ से क्यों वंचित रखा जा रहा है ? उन्होंने इस बिल पर हस्ताक्षर करने से पहले इसे मेरिट पर परखने की बात कही थी। इस पत्र के जवाब में पंडित नेहरू ने उन्हें लिखा कि आपने बिल को मंजूरी देने से पहले उसे मेरिट पर परखने की जो बात कही है वह गंभीर मुद्दा है। इससे राष्ट्रपति और सरकार व संसद के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है। संसद द्वारा पास बिल के खिलाफ जाने का राष्ट्रपति को अधिकार नहीं है।

नेहरू का पत्र मिलने के बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने पंडित नेहरू को 18 सितंबर को एक और पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने संविधान के तहत राष्ट्रपति को मिली शक्तियां गिनवाई थीं और लिखा था कि वह इस मामले में टकराव की स्थिति नहीं लाना चाहते हैं वह सिर्फ सबके हित की बात कर रहे हैं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पंडित नेहरू के बीच हुए इस पत्राचार के बाद इस संबंध में तत्कालीन अटार्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ की राय ली गई। उन्होंने 21 सितंबर 1951 को दी गई अपनी राय में कहा कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से चलेंगे। मंत्रिपरिषद की सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी है। इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते अपना वोट बैंक बनाए रखने के लिए कभी समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश नहीं की। 1956 में ही हिन्दू पर्सनल लॉ बिल पास हो गया। इसके बाद लगातार देश में कांग्रेस की सरकार रही लेकिन देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई प्रयास नहीं हुआ।

 

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

Exit mobile version