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सीमा पर तैनात एक फौजी का अनकहा प्रेमपत्र

मेरी प्रिया,

तुम्हारी सदा शिकायत रहती है कि मैं तुम्हें कम पत्र लिखता हूं। तुम्हारी शिकायत सही है, तुम्हें मैं इसलिए पत्र नहीं लिखता की कहीं भूले से भी तुम्हें मेरे तकलीफ का अंदाजा न हो जाए पर एक सीक्रेट बताऊं, मैं रोज तुमसे बात करता हूं।

इस समय मैं बंकर में बैठा हूं। कंकरीली-पथरीली जमीन है, ऊपर से झाड़ियों का पर्दा बना रखा है ताकि दुश्मन को हमारे यहां होने का अंदाजा न हो जाए। खतरे की तलवार हर समय लटकती रहती है, अब तुम्हीं बताओ ये सारी बातें तुम्हें कैसे बता सकता हूं?

ऐ चांद! तू गवाह बन मेरी अनकही कहानी का। तू जा मेरी प्रिया के पास। इस समय वह छत पर टहल रही होगी क्योंकि खाना खाने के बाद हमेशा वह छत पर टहलने जाया करती है। उसपर मेरा प्यार बरसाना, हवा बनकर उसकी लटों को छेड़ना, कभी उसकी चुन्नी को उड़ा देना। अगर वह परेशान होकर बालों को बांध ले तो धीरे से उसके गालों को सहलाकर मेरे प्यार का संदेश दे देना। शायद उसका विरह कुछ कम हो जाए।

अपनी दिनचर्या के बारे में बताऊं! सुबह होते ही पी.टी. के लिए जाना, वहां से आकर नहा-धोकर सुबह के नाश्ते के लिए मेस पहुंचना फिर अपने-अपने काम पर लग जाना, पैरों में भारी-भारी बूट, तपती चिलचिलाती गर्मी में मोटे कपड़े की आर्मी ड्रेस, कंधे पर पूरे दिन लटकती बंदूक, दुश्मनों से लड़ते समय कई बार भोजन का न मिलना, कई-कई किलोमीटर पैदल चलना, जहरीले जीव-जंतुओं से भी आमना-सामना होना-ये सब हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं।

दुनिया मुझे वीर कहती है। शहादत पर तमगे पहनाती है पर सच कहूं तो सच्ची वीरांगना तुम हो। मैंने देश सेवा को सहर्ष चुना है और तुमने तो मुझे चुना था और पाया विरह। मैं कर्मयोगी बन प्रशंसा पाता रहा तुम दीपशिखा सी जलती रही। मैं देश सेवा में शहीद हो जाऊं तो मेरी प्रशंसा में कहानियां गढ़ी जाती है और तब आरंभ हो जाती है पग-पग पर तुम्हारी परीक्षा। मैं देश सेवा में निरत वीर सिपाही अपने कर्तव्य का वहन इसलिए कर पा रहा हूं क्योंकि तुम वहां मेरे परिवार का संबल बनी हुई हो। मैं धरती मां की सेवा इसलिए कर पा रहा हूं क्योंकि तुम मेरे माता-पिता की सेवा कर रही हो।

देखो तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते सुबह हो गई। पूरब में सूरज की लालिता बिखरने लगी। जब तुम्हारे बारे में सोचता हूं तो कष्ट कम हो जाता है। कम नहीं हो जाता बल्कि पता ही नहीं चलता। तुम्हारी यादें मेरे लिए आराम का तकिया हैं। तुम्हारी बातें मेरे लिए अकेलेपन में भी साथ का अहसास दे जाती हैं। अरे रे, ये मत सोचना कि तु्म्हारे बारे में सोचते-सोचते मैं कर्तव्य पथ से डिग जाऊंगा।

मैं उस पथ का राही हूं जिसने बस चलना ही सीखा है, आंधी आएं या तूफान कभी न डिगना सीखा है।

ऐसी अनेक बातें हैं जो प्रतिदिन मैं सोचता हूं पर लिख नहीं पाता। आज भी नहीं लिख पा रहा हूं। शायद अनेक पत्रों की तरह ये भी मेरा अनकहा प्रेमपत्र बनकर रह जाएगा।

तुम्हारा,

कप्तान साहब

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