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CJI DY Chandrachud: चुनाव नजदीक आते ही ये लोग…’, न्यायालय को राजनीतिक अखाड़ा बनाने वाले राजनेताओं पर बरसे CJI , इस तरह दिखाया आईना

नई दिल्ली। बहुधा नेताओं द्वारा दिए जाने वाले बयान तो सुर्खियों में बने ही रहते हैं, लेकिन इस रिपोर्ट में हम आपको चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा दिए गए एक बयान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने आगामी लोकसभा चुनाव से पहले सियासी गलियारों में सियासी पारा चढ़ा दिया है। आखिर क्या कहा है सीजेआई ने? आइए, आगे इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं।

क्या बोले सीजेआई

आपको बता दें कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने बयान में कहा कि चुनाव से पहले न्यायालय राजनीतिक अखाड़े में तब्दील हो जाते हैं। राजनेता अपने सियासी मुनाफे के लिए निर्मूल मुद्दों को अदालत की चौखट तक ले आते हैं। इससे ना महज अदालत का समय जाया होता है, बल्कि जनता के हितों पर भी कुठाराघात होता है। उन्होंने आगे कहा कि नेताओं द्वारा इस तरह की प्रवृत्ति में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है। खासकर किसी भी चुनाव से पहले राजनेताओं द्वारा किसी भी मुद्दे को अदालत में ले जाने की कोशिशें तेज हो जाती हैं, जिससे बेवजह मामलों की फेहरिस्त दिन ब दिन लंबी हो जाती है। यही नहीं, जब चुनाव खत्म हो जाते हैं, तो यही मामले ठंडे बस्ते में चले जाते हैं, जिससे साफ जाहिर होता है कि चुनाव से ठीक पहले न्यायालय को राजनीतिक अखाड़े के रूप में तब्दील करने की जद्दोजहद शुरू हो जाती है।

क्यों दिया सीजेआई ने ये बयान

ध्यान दें, सीजेआई ने यह बयान दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर जारी खींचतान के संदर्भ में दिया है। बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार के कार्यकाल को 6 माह के लिए विस्तारित करने की केंद्र की मांग को मंजूरी दे दी थी। दरअसल, दिल्ली सरकार केंद्र सरकार की इस मांग के विरोध में याचिका भी दाखिल की थी, जिस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए केंद्र के पक्ष में फैसला सुनाकर नरेश कुमार का कार्यकाल 6 माह के लिए बढ़ा दिया है।

इसके साथ ही कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि मुख्य सचिव की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। ध्यान दें, बीते दिनों एक सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार को दिल्ली का असली बॉस बताया था, जिसके विरोध में केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर केजरीवाल सरकार की संवैधानिक शक्तियों को कम करने का प्रयास किया। इतना ही नहीं, दिल्ली सेवा विधेयक लेकर आ गई, जो कि आगे चलकर संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया। इस तरह से राजनीतिक मोर्चे पर दिल्ली सरकार के लिए बड़ा झटका साबित हुआ।

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