नई दिल्ली। एक दौर था, जब जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के एक आह्वान पर लोगों की भीड़ सड़क पर उमड़ पड़ती थी, लेकिन बाद में कांग्रेस के नेता भीड़ को साथ खींचने में नाकाम ही होते दिखे। साल 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति के बाद जनता और उससे दूर होती जा रही है। पहले राहुल गांधी ने राफेल में गड़बड़ी और अब अडानी का बड़ा मुद्दा उठाया। राहुल गांधी को 2 साल की सजा हुई और उनकी संसद सदस्यता भी खत्म हुई। कांग्रेस समेत विपक्षी दल हर बार ऐसे मामलों को लेकर सड़क पर उतरे। अब भी वे आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन जनता कहीं साथ नहीं दिख रही।
ऐसे में कांग्रेस में चिंता है और ये चिंता घनघोर भी है। खुद पार्टी के बड़े नेता मान रहे हैं कि जनता का साथ आंदोलन में न मिलना बड़ी बात है। इंडिया टुडे से बात करते हुए कांग्रेस के बड़े नेता और यूपीए सरकार में वित्त और गृह मंत्रालय देख चुके पी. चिदंबरम ने इसी चिंता को जाहिर किया है। चिदंबरम ने एक सवाल के जवाब में कहा कि पिछले कुछ साल से लोग किसी भी मुद्दे को लेकर सड़क पर नहीं उतरे। सीएए-एनआरसी के विरोध में भी सिर्फ मुस्लिमों ने ही हिस्सा लिया। चिदंबरम ने कहा कि राहुल की संसद सदस्यता खत्म होने के मामले में भी जनता का कोई गुस्सा नहीं दिख रहा है। इससे वो चिंतित हैं।
किसी को शायद ही याद हो कि कांग्रेस के आह्वान पर पिछली बार जनता कब सड़क पर उतरी थी। आम तौर पर लोगों को ये जरूर याद होगा कि कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ जनता ने बड़े पैमाने पर नाराजगी जताई थी। चाहे वो इमरजेंसी का मामला हो या बोफोर्स का मामला। अब जबकि कांग्रेस और विपक्षी दल लगातार देश में लोकतंत्र खत्म होने और मोदी सरकार की हिटलरशाही के आरोप लगा रहे हैं, तब आम जनता का कोई तबका उनके साथ खड़ा नहीं हो रहा है। जाहिर है, इससे चिंता बढ़ेगी भी और बढ़नी भी चाहिए।