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Delhi: कॉलेजियम सिस्टम पर अब संसद और सुप्रीम कोर्ट में तलवार खिंचने के आसार, सीपीएम सदस्य लाए बिल, अदालत बता चुकी है असंवैधानिक

parliament and supreme court

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पद्धति से जजों की नियुक्ति को कानूनन सही बता चुका है, लेकिन संसद के जरिए इस पद्धति को बदलने की कवायद भी चल रही है। सीपीएम के सदस्य बिकास रंजन भट्टाचार्य ने शुक्रवार को राज्यसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया है। इस बिल का नाम राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग है। खास बात ये है कि राज्यसभा में ध्वनिमत से बिल को पेश करने की मंजूरी मिली है। अब इस मामले में संसद और सुप्रीम कोर्ट के बीच तलवारें खिंचने के आसार पैदा हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में मोदी सरकार से रुख साफ करने को कह सकता है।

बिकास रंजन भट्टाचार्य की तरफ से राज्यसभा में पेश बिल में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और अन्य जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाने का प्रावधान है। अगर ये बिल राज्यसभा और लोकसभा से पास हो जाता है, तो जजों की नियुक्ति और उनके कार्यों की जवाबदेही भी तय हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट इस व्यवस्था को अपने ही हाथ में रखना चाहता है। बता दें कि पहले मोदी सरकार भी ऐसा ही बिल संसद में लाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे गैर संवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था। संसद में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि सरकार अब उस बिल को फिर लाने का विचार नहीं रखती, लेकिन जजों की नियुक्ति के तौर-तरीकों के बारे में वो निजी तौर पर कई बार विरोध जता चुके हैं।

दरअसल, जजों की नियुक्ति, किसी गड़बड़ी पर कार्रवाई और तबादलों का काम सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम करती है। मौजूदा कॉलेजियम में चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ समेत 6 जज हैं। कॉलेजियम का मामला 1993 से शुरू हुआ था। कॉलेजियम पद्धति पर आरोप है कि इसमें जजों की नियुक्ति में पक्षपात होता है और उनकी जवाबदेही भी किसी के प्रति नहीं रहती है। इसी वजह से संसद में इस बारे में आयोग बनाने की मांग लगातार उठती रही है।

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