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Mamata Banerjee: दीदी को लगा तगड़ा झटका, ममता की बुलाई बैठक में CM केजरीवाल और केसीआर ने बनाई दूरी 

नई दिल्ली। ये उन दिनों की बात है, जब 2014 के लोकसभा चुनाव संपन्न ही हुए थे और देश को एक नया रहनुमा मिला था, जिसका नाम नरेंद्र दामोदरदास मोदी है। 2014 के बाद देश में एक नई राजनीतिक परिधि का जन्म हुआ। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के बाद देश की राजनीति में बहुत कुछ परिवर्तन देखने को मिलने लगे। मसलन, देश की सबसे पुरानी पार्टी जिसकी तूती बोला करती थी, उसके जनाधार में एक तेज गिरावट देखने को मिली। 2014 के बाद से कांग्रेस पार्टी का संकुचन शुरू हो गया जिसका सिलसिला अभी तक जारी है। वहीं, मतदाताओं की राजनीतिक मनोदशा में भी आमूलचूल परिवर्तन भी देखने को मिला। इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ा और राष्ट्रीय राजनीति के साथ-साथ अब कांग्रेस राज्यों की राजनीति से भी सिमटती चली गई, लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि 2014 से पहले विपक्ष बिखरा हुआ था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के बाद विपक्ष एकजुट होने लगा। बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिए देश के सभी दल एक ही रथ की सवारी करने को राजी हो गए।

यह यकीनन रोचक था। जिसकी बानगी भी हमें कई मौकों पर देखने को मिल चुकी है। याद ही होगा आपको कर्नाटक का विधानसभा चुनाव, जब देश के सभी विपक्षी दल एक ही मंच पर नजर आएं थे। यह दृश्य रोचक था। लेकिन, अब सवाल यह है कि आखिर एकजुट हो रहे इन विपक्षी दलों का रहनुमा कौन होगा? चलिए, अगर एक पल के लिए मान भी लेते हैं कि विपक्षी दलों की एकजुटता पीएम मोदी के विजयी रथ को रोक भी देती है, तो विपक्ष की तरफ से देश का पथप्रदर्शक कौन होगा। बीजेपी का रूख इसे लेकर तो साफ है कि अगर  बीजेपी जीतती है, तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर विराजमान होंगे। जिससे देश की जनता भी परिचित है, लेकिन इस पर विपक्षी दलों का रूख स्पष्ट नहीं है। यह कहना उचित रहेगा कि विपक्षी दल दिगभ्रमित नजर आ रहे हैं। अब विपक्षियों क बीच ही इस बात को लेकर द्वंद छिड़ चुका है कि आखिर हमारा रहनुमा कौन होगा। क्या कांग्रेस की सोनिया गांधी या सपा के अखिलेश यादव या बसपा की मायावती या ममता बनर्जी या टीआरएस या कोई और। लिहाजा अब विपक्षी दलों में रहनुमा बनने की होड़ शुरू हो चुकी है।

जहां एक तरफ सोनिया गांधी विपक्षियों की रहनुमाई करने को बेताब हैं, तो वहीं ममता बनर्जी भी इस मामले में कम नहीं है। अब आप हाल ही में ममता बनर्जी द्वारा बुलाए गए विपक्षी दलों की बैठक को लेकर आमंत्रित किए गए नेताओं की सूची को ही देख लीजिए। बता दें कि आमंत्रित की गई सूची में कुल 22 नेताओं का नाम दर्ज है। जिसमें सोनिया गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक का नाम शामिल था। आज यानी की 15 जून को यह बैठक होनी थी। जिसमें सभी नेताओं ने अपनी मौजूदगी भी दर्ज कराई, लेकिन क्या आपको पता है कि केसीआर और अरविंद केजरीवाल इस बैठक से दूर रहे जिसे लेकर अब सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गुलजार हो चुका है। लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर इस बैठक में इन दोनों ही नेताओं की दूरी के क्या मायने निकाले जाएं। ध्यान रहे कि यह बैठक ऐसे वक्त में बुलाई गई थी, जब कुछ दिनों बाद राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि इस बैठक में विपक्षी कुनबे की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की घोषणा की जानी थी, लेकिन अफसोस ऐसा हो नहीं पाया है। हालांकि, पहले माना जा रहा था कि शरद पवार को विपक्षी दलों की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया जा सकता है, लेकिन अफसोस उन्होंने तो इस प्रस्ताव को साफ ठुकरा दिया है।

अब ऐसे में देखना होगा कि विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में किस नाम पर मुहर लगती है। लेकिन जिस तरह से आज इस बैठक में दोनों ही नेताओं ने अपनी दूरी बनाए रखी है, उसे लेकर चर्चाओं का बाजार गुलजार हो चुका है। कुछ सियासी प्रेक्षकों का मानना है कि ममता अब इस तरह से विपक्षी दलों की रहनुमाई करना चाहती है, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। आज ओवैसी ने तो यहां तक कह दिया कि अगर दीदी ने हमें बुलाया भी होता तो हम नहीं जाते। बहरहाल, इससे साफ जाहिर होता है कि वर्तमान में विपक्षी दलों के कनुबे में कलह है। अब कलह क्या रुख अख्तियार करता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। लेकिन इन परिघटनाओं ने एक बात साफ कर दी है कि विपक्षी दलों के कुबने में स्थिति कुछ दुरूस्त नहीं है। अब ऐसी स्थिति में आगामी दिनों में विपक्षी दलों की स्थिति क्या कुछ रुख अख्तियार करती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। तब तक के लिए आप देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों से रूबरू होने के लिए आप पढ़ते रहिए। न्यूज रूम पोस्ट.कॉम

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