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एनकाउंटर केस में 35 साल का इंतजार, फिर आया फैसला, 11 पुलिसकर्मी दोषी करार

मथुरा। मथुरा की जिला अदालत ने मंगलवार को 1985 में हुए एक एनकाउंटर केस मामले में 35 साल बाद फैसला सुनाते हुए 11 पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया। राजा मानसिंह आज के 35 साल पहले भरतपुर में एक पुलिस एनकाउंटर में मारे गए थे।

उत्तर प्रदेश के मथुरा कोर्ट में चल रहे इस मामले में की सुनवाई पूरी हो गई है। मंगलवार को कोर्ट ने 11 पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया है। वहीं तीन आरोपियों को बरी कर दिया गया है। आरोपी पुलिसकर्मियों को कोर्ट से जेल भेजा गया है। अब कोर्ट इस मामले में सजा बुधवार को सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को राजस्थान से मथुरा ट्रांसफर कर दिया था।

20 फरवरी 1985 को विधानसभा चुनाव के दौरान झंडा हटाने को लेकर विवाद हुआ था। कहा जाता है कि विवाद में भरतपुर के पूर्व राजा मानसिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के हेलिकॉप्टर में जीप से टक्कर मार दी थी। यह मामला कोर्ट पहुंचा था। कोर्ट में सरेंडर के दौरान हुई मुठभेड़ में पुलिस ने उन्हें गोली मार दी थी।

राजा मानसिंह हत्याकांड के 27 साल बाद इस मामले की सुनवाई में तेजी आई थी। मुख्य आरोपी कान सिंह भाटी की ओर से आखिरी बहस 2012 में ही पूरी कर ली गई थी। बाकी आरोपियों की ओर से पैरवी जारी थी।

राजस्थान में साल 1985 में असेंबली चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरन माथुर अपने प्रत्याशियों के पक्ष में लगातार चुनावी सभाएं कर रहे थे। उन दिनों डीग असेंबली सीट से भरतपुर के राजा मानसिंह इंडिपेंडेंट चुनाव मैदान में थे और उनका काफी वर्चस्व भी था। उस समय राजा मानसिंह अपने समर्थकों के साथ प्रचार करने में जुटे थे।

21 फरवरी 1985 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरन माथुर अपने प्रत्याशी के समर्थन में डीग में चुनावी सभा को संबोधित करने आए थे। कहा जाता है कि मंच से मुख्यमंत्री ने राजा के बारे में कुछ बातें कहीं। उसी समय जब मानसिंह को यह पता चला तो वो अपने समर्थकों के साथ मुख्यमंत्री के सभास्थल पर पहुंच गए। बताया गया है कि उन्होंने अपनी जीप से टक्कर मारकर मंच को धराशाई कर दिया था। इसके बाद मुख्यमंत्री को सभा बीच में ही छोड़कर जाना पड़ा था। मुख्यमंत्री के मंच को तोड़ने के दौरान मचे घमासान में गोली लगने से राजा मानसिंह और और उनके दो समर्थक सुम्मेर सिंह और हरि सिंह की मौत हो गई थी।

राजनैतिक दबाव के चलते राजस्थान सरकार ने 15 जुलाई 1985 को सरकारी कर्मचारियों पर केस चलाने की अनुमति दी थी। 15 जुलाई 1985 से पांच साल तक यह मामला भरतपुर कोर्ट में विचाराधीन रहा। इसके बाद राजा की बेटी ने विशेष याचिका दायर कर जनवरी 1990 में केस को मथुरा जिला एवं सत्र न्यायालय में ट्रांसफर करा लिया।

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