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Nupur Sharma: ‘फोरम फ़ॉर ह्यूमन राइट्स एन्ड सोशल जस्टिस’ ने सुप्रीम कोर्ट को सुना दी खरी-खरी, कहा- इस तरह से आप नूपुर शर्मा को….

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नई दिल्ली। जरा ध्यान दीजिएगा…पहले नूपुर शर्मा किसी टीवी डिबेट में पैगंबर मोहम्मद पर कथित तौर पर विवादास्पद टिप्पणी करती हैं…इसके बाद विशेष समुदाय के लोगों का गुस्सा अपने चरम पर पहुंच जाता है…जिसके बाद उनके खिलाफ एक्शन लेते हुए बीजेपी ने उन्हें निलंबित कर देती है….लेकिन आक्रोशित लोगों का रोष थमने का नाम ही नहीं लेता है और वो नूपुर की गिरफ्तारी की मांग पर उतर जाते हैं….उधर देखते ही देखते उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों मे नूपुर के बयान को लेकर लोग सड़कों पर हिंसा करने पर उतारू हो जाते हैं…जिसके बाद कुछ लोग नूपुर के बयान का समर्थन करते हैं, जिससे भड़के लोग उन सभी लोगों को जान से मारने की धमकी देते हैं, जो नूपुर के बयान का समर्थन करते हैं। यही नहीं, उदयपुर और अमरावती में तो नूपुर के बयान का समर्थन करने पर वीभत्स हत्याकांड को अंजाम भी दे दिया जाता है, जिसके बाद पूरे देश में सनसनी मच जाती है। इसके बाद यह पूरा मसला कोर्ट में पहुंचता है, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने नूपुर के कथित विवादास्पद टिप्पणी पर तल्ख टिप्पणी की थी। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि आज देश में जो कुछ भी आग लगी हुई है, उसकी जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि नूपुर शर्मा की ही है। लिहाजा, उन्हें टीवी पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए, लेकिन अब कोर्ट की इसी टिप्पणी को लेकर विवाद का सिलसिला शुरू हो चुका है।

आपको बता दें कि देश का एक बहुत बड़ा तबका कोर्ट की इस टिप्पणी का विरोध कर रहा है। कहा जा रहा है कि कोर्ट को इस तरह से टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। उधर, अब कई लोग सार्वजनिक रूप से सामने आकर नूपुर शर्मा की टिप्पणी का विरोध कर रहे हैं। तो इसी बीच ‘फोरम फ़ॉर ह्यूमन राइट्स एन्ड सोशल जस्टिस’ नाम की संस्था ने CJI को चिट्ठी लिखी है। जिसमें कोर्ट नूपुर शर्मा के संदर्भ में दी गई टिप्पणी को वापस लेने की मांग की गई है। फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस के मुताबिक, जिस तरह कोर्ट ने नूपुर की याचिका पर सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया, उससे उनके न्याय पाने के मौलिक अधिकारों पर भी कुठाराघात पहुंचा है।

फोरम ने बाकायदा एक पत्र जारी कर कहा कि भारत का संविधान सर्वोच्च है और जिस तरह से नूपुर शर्मा के मामले में हाई कोर्ट की तरफ से टिप्पणी की जा रही है, उससे एक बात उन्हें समझ लेनी चाहिए कि न्यायालय के न्यायाधीश भी कानून से ऊपर नहीं हैं। जिस तरह से कोर्ट की तरफ से नूपुर शर्मा के मामले में टिप्पणी की गई है, उसने उदयपुर सरीखे वीभत्स प्रकरण की मानवीयता को कम करने की कोशिश की है। फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस के मुताबिक, उदयपुर की घटना के उपरांत समाज में स्थिति तनावग्रस्त हो चुकी है, लिहाजा मुनासिब रहेगा कि कोर्ट को इस तरह के संवेदनशील मामलों में कोई भी टिप्पणी करने से पहले संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। बहरहाल, इन तमाम परिस्थितियों के बीच नूपुर शर्मा को लगातार जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं। ऐसे में पुलिस के समक्ष भी चुनौती है कि स्थिति किस तरह से काबू में किया जा सकें।

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